वे सिर्फ एक कामयाब चिकित्सक ही नहीं बल्कि एक विनम्र और मृदुभाषी इंसान थे। आज जब मेडिकल केयर आम आदमी की जेब से बाहर होती जा रही है, चार दशक से ऊपर होने को आए वे किफायती मूल्य पर रोगी का इलाज करते रहे। हमेशा स्कूटर से चलते रहे। उनका सफारी सूट और स्कूटर एक पीढ़ी में उनका ट्रेडमार्क बना रहा।
डॉक्टर के परचे में जो आरएक्स(Rx) लिखा जाता है, आयनिक ग्रीक में लिखी गई उस हिप्पोक्रेटिक ओथ के वे जीते- जागते उदाहरण थे। इस शपथ का हिन्दी अनुवाद इस प्रकार है-
‘मैं अपोलो वैद्य, अस्क्लीपिअस, ईयईआ, पानाकीआ और सारे देवी-देवताओं की कसम खाता हूँ और उन्हें हाज़िर-नाज़िर मानकर कहता हूँ कि मैं अपनी योग्यता और परख-शक्ति के अनुसार इस शपथ को पूरा करूँगा।
जिस इंसान ने मुझे यह पेशा सिखाया है, मैं उसका उतना ही गहरा सम्मान करूँगा जितना अपने माता-पिता का करता हूँ। मैं जीवन-भर उसके साथ मिलकर काम करूँगा और उसे अगर कभी पैसों की ज़रूरत पड़ी, तो उसकी मदद करूँगा। उसके बेटों को अपना भाई समझूँगा और अगर वे चाहें, तो बगैर किसी फीस या शर्त के उन्हें सिखाऊँगा। मैं सिर्फ अपने बेटों, अपने गुरू के बेटों और उन सभी विद्यार्थियों को शिक्षा दूँगा जिन्होंने चिकित्सा के नियम के मुताबिक शपथ खायी और समझौते पर दस्तखत किए हैं। मैं उन्हें चिकित्सा के सिद्धान्त सिखाऊँगा, ज़बानी तौर पर हिदायतें दूँगा और जितनी बाकी बातें मैंने सीखी हैं, वे सब सिखाऊँगा।
रोगी की सेहत के लिये यदि मुझे खान-पान में परहेज़ करना पड़े, तो मैं अपनी योग्यता और परख-शक्ति के मुताबिक ऐसा अवश्य करूँगा; किसी भी नुकसान या अन्याय से उनकी रक्षा करूँगा। किसी के माँगने पर भी उसे विषैली दवा नहीं दूँगा और ना ही ऐसी दवा लेने की सलाह दूँगा। उसी तरह मैं किसी भी स्त्री को गर्भ गिराने की दवा नहीं दूँगा। मैं पूरी शुद्धता और पवित्रता के साथ अपनी ज़िंदगी और अपनी कला की रक्षा करूँगा।
मैं किसी की सर्जरी नहीं करूँगा, उसकी भी नहीं जिसके किसी अंग में पथरी हो गयी हो, बल्कि यह काम उनके लिए छोड़ दूँगा जिनका यह पेशा है। मैं जिस किसी रोगी के घर जाऊँगा, उसके लाभ के लिए ही काम करूँगा, किसी के साथ जानबूझकर अन्याय नहीं करूँगा, हर तरह के बुरे काम से, खासकर स्त्रियों और पुरुषों के साथ लैंगिक संबंध रखने से दूर रहूँगा, फिर चाहे वे गुलाम हों या नहीं।
चिकित्सा के समय या दूसरे समय, अगर मैंने रोगी के व्यक्तिगत जीवन के बारे में कोई ऐसी बात देखी या सुनी जिसे दूसरों को बताना बिलकुल गलत होगा, तो मैं उस बात को अपने तक ही रखूँगा, ताकि रोगी की बदनामी न हो। अगर मैं इस शपथ को पूरा करूँ और कभी इसके विरुद्ध न जाऊँ, तो मेरी दुआ है कि मैं अपने जीवन और कला का आनंद उठाता रहूँ और लोगों में सदा के लिए मेरा नाम ऊँचा रहे; लेकिन अगर मैंने कभी यह शपथ तोड़ी और झूठा साबित हुआ, तो इस दुआ का बिलकुल उल्टा असर मुझ पर हो।’
एक आम चिकित्सक के तौर पर उन्होंने ऋषिकेश ग्रामीण क्षेत्र में कैसे-कैसे रोगियों का रोग-निदान नहीं किया। खास तौर पर बालरोगियों का वे जिस तरह से उपचार करते, सीधे-साधे ग्रामीण अभिभावक उनके व्यवहार से ही निहाल हो जाते। उन्हें कभी गरजते-बरसते नहीं देखा गया। रोगी से बेहतर रिश्ते की बुनियाद और कम खर्चे पर पुख्ता इलाज वैश्वीकरण के जमाने में भी उनका बुनियादी मूल्य और शगल बना रहा। अधिकांश परिवारों को वे फेमिली डॉक्टर जैसे लगते रहे। बाजारवाद के इस युग में चमचमाते क्लीनिक के बजाय उनका वही सुभागा चिकित्सालय आज भी बाईपास मार्ग पर दिखाई पड़ता है।
उस समय मैट्रिक में पढ़ता रहा हूंगा, क्लास टीचर पढ़ाई में कमजोर एक छात्र को उसके गलत उत्तर पर डांट लगा रहे थे- क्या काला डॉक्टर ने ऐसा कहा है? तीमारदारों का उन पर अटूट विश्वास था। रोगी की बिगड़ती हालत देखकर बोलते- “येफर काल़ा डॉक्टरकि दवै लग्दिन।”
ये जुमले आमजन के मध्य उनकी लोकप्रियता को दर्शाते हैं। गोरा-चिट्टा, लालिमा लिए चेहरा और उस पर मृदु मुस्कान। अचूक स्मरणशक्ति। आधे रोग का निदान तो उनका व्यवहार ही कर लेता था। बरसात का सीजन रहा हो या संक्रामक रोगों का सीजन उनके यहां भीड़ का अंबार लगा होता। ग्रामीण काश्तकार लोग, व्यवहार में सीधे-साधे, कुछ हद तक रुखे लेकिन डॉ काला को कभी झुंझलाते हुए नहीं देखा गया।
ये उनका सेवा का जज्बा और व्यापक तजुर्बा था जो गैर स्पेशलाइजेशन के बावजूद उन्हें जाने-माने स्पेशलिस्ट्स से ज्यादा मान-सम्मान और आदर का पात्र बना गया।
ईश्वर उन्हें सद्गति दे और उनके परिवार को इस दारुण दु:ख को सहने की शक्ति प्रदान करे।