नई दिल्ली: निष्पक्ष पत्रकारिता की पहचान करना एक व्यक्तिगत और जटिल विषय हो सकता है, क्योंकि यह इस बात पर निर्भर करता है कि कोई व्यक्ति निष्पक्षता को कैसे परिभाषित करता है। फिर भी, भारत में कुछ पत्रकार और मीडिया पेशेवर ऐसे हैं जो अपनी स्वतंत्रता, खोजी रिपोर्टिंग और सत्ता या पक्षपात से प्रभावित न होने की कोशिश के लिए जाने जाते हैं।
इसके साथ ही अगर निष्पक्ष पत्रकारिता कैसे करें ? कैसे हम अपनी पत्रकारिता को एक नई दिशा में ले जाए? किस प्रकार से हम समाज से दबे कुचले, गरीबी से जूझ रहे आदि लोगों की आवाज़ को बुलंद कर सकें। इसी पर आधारित प्रकाश मेहरा की पुस्तक “वे टू जर्नलिज्म” का हिंदी संस्करण एक नए अंदाज में अप्रैल माह में आपको और लाखों पत्रकारों को पढ़ने को मिलेगी। जिससे पत्रकारिता को एक नई राह और नई दिशा मिलेगी।
पुस्तक को लेकर जब एक पॉडकास्ट में पत्रकार और पुस्तक के लेखक प्रकाश मेहरा से पूछा
1. पुस्तक लिखने के पीछे का क्या मकसद ?
“पुस्तक लिखने के पीछे का मकसद मेरा सिर्फ ये नहीं था कि एक निष्पक्ष पत्रकारिता क्या होती है बल्कि ये भी था कि संघर्षों के बिना कुछ भी संभव नहीं और जिसने मेहनत और संघर्ष किया है वहीं आगे बढ़ा है। पत्रकारिता से देश की जनता को कई उम्मीदें होती हैं जिस पर खरा उतरना हर किसी के बस की बात नहीं पर निष्पक्ष पत्रकारिता से हर किसी को न्याय जरूर मिल सकता है।”
2. हम जनता की उम्मीदों पर खरा कैसे उतरें ?
पत्रकार जनता का भरोसा बनाए रखने का प्रयास करते हैं, क्योंकि भरोसे की नींव पर ही सूचना एकत्रित और आदान-प्रदान की जाती है। जनता को पत्रकारों पर भरोसा करना चाहिए कि वे सटीक और मूल्यवान जानकारी प्रदान करेंगे, अन्यथा पत्रकारों के कामों की न तो तलाश की जाएगी और न ही उन पर विश्वास किया जाएगा।
सूचना के स्रोतों को पत्रकारों पर भरोसा करना चाहिए कि वे अपनी पहचान की रक्षा करेंगे, जहाँ लागू हो, और उन्हें या उनके विचारों को गलत तरीके से प्रस्तुत नहीं करेंगे। इसे एक नैतिक मूल्य के रूप में देखा जा सकता है, लेकिन यह एक व्यावहारिक मूल्य भी है: एक मीडिया आउटलेट व्यवसाय नहीं कर सकता है यदि वह स्रोत प्राप्त नहीं कर सकता है या जनता द्वारा उस पर विश्वास नहीं किया जा सकता है।
3. आपको कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा और कहां से मिली आपको प्रेरणा ?
मुझे पत्रकारिता के 12 सालों में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। सिर्फ मैं ही नहीं बल्कि मुझे लगता है हजारों पत्रकार इस रास्ते से गुज़र रहे हैं कभी किराए के लिए पैसे न होना तो कभी खाने के लिए, कभी नौकरी के लिए दर-बदर भटकना और नौकरी न मिलना मीडिया संस्थानों की स्थिति कभी-कभी ऐसी भी होती थी। कहते हैं कि जहां रास्ते कठिन होते हैं वहां मंजिल उतनी ही सुंदर होती है ये भी एक सच्चाई है क्योंकि मेरे साथ भी यही हुआ।
मेरे लिए मेरे परिवार के बाद मेरे प्रिय भाई आज तक के वरिष्ठ और लोकप्रिय पत्रकार रोहित सरदाना का साथ बहुत अहम रहा क्योंकि पत्रकारिता के इस सफ़र में जो उन्होंने मुझे प्रेरणा दी और में यहां तक पहुंचाया। निष्पक्ष पत्रकारिता की रास्ता मुझे उन्होंने ही दिखाया उनके जाने के बाद मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे जीवन में मानो तो तूफ़ान सा आ गया। पुस्तक की प्रेरणा में योगदान और मेरा साथ मेरे प्रिय मित्र अमनप्रीत, मेरे भाई वासु (पवन गोयल), वरिष्ठ पत्रकार शूरवीर नेगी, अनिल भैया जिन्होंने मेरा साथ मेरे रोहित भाई के रूप में दी और दे रहे हैं।
“वे टू जर्नलिज्म” का हिंदी संस्करण अपने नाम के अनुरूप आधुनिक युग में पत्रकारिता के लिए निर्धारित मानकों और उसके व्यापक वैश्विक परिप्रेक्ष्य को पहचानने का एक सफल प्रयास है। पत्रकारिता से देश के असंख्य लोगों की अपेक्षाएं जुड़ी हुई हैं। सफल पत्रकारिता की पहचान जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरना है। यह समाज में बदलाव लाने का एक प्रभावी माध्यम भी है। प्रकाशित होने जा रही पुस्तक “वे टू जर्नलिज्म” पत्रकारिता के पथ पर चल रहे युवाओं को इसकी व्यापकता और समग्रता से परिचित कराने तथा शोधार्थियों के लिए भी उपयोगी होगी।