नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में ‘राजनीतिक दलों के घोषणा पत्र में मतदाताओं को आर्थिक सहायता देने की घोषणा को उस पार्टी के उम्मीदवार का ‘भ्रष्ट आचरण’ मानने से इनकार कर दिया है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि ‘इस तरह की दलील ‘बहुत दूर की कौड़ी है।’ जस्टिस सूर्यकांत और के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने ‘चुनाव याचिका खारिज करने के कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली अपील रद्द करते हुए यह फैसला दिया।
पीठ ने हाईकोर्ट के फैसले में किसी तरह के दखल देने से इनकार कर दिया है, जिसमें राजनीतिक दल द्वारा चुनावी घोषणा पत्र में दी गई मतदाताओं को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से आर्थिक सहायता देने की गारंटी को उस पार्टी के उम्मीदवार का भ्रष्ट आचरण घोषित करने की मांग की थी।
इस दलील को स्वीकार नहीं किया जा सकता
शीर्ष अदालत ने कहा कि ‘एक राजनीतिक दल द्वारा अपने घोषणा पत्र में जनता को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से वित्तीय सहायता देने की गारंटी को उम्मीदवार का भ्रष्ट आचरण घोषित करने की दलील को स्वीकार नहीं किया जा सकता। पीठ ने कहा कि इस तरह का तर्क ‘बहुत दूर की कौड़ी’ है।’ शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कहा कि किसी भी मामले में, इन मामलों के तथ्यों और परिस्थितियों में, हमें इस तरह के प्रश्न पर विस्तार से विचार करने की आवश्यकता नहीं है। हालांकि पीठ ने यह साफ कर दिया कि इस तरह के कानूनी सवाल को उचित मामले में निर्णय लेने के लिए अभी खुला छोड़ दिया है।
यह है मामला
पिछले साल कर्नाटक विधानसभा चुनाव में चामराजपेट विस क्षेत्र से कांग्रेस के उम्मीदवार बी.जेड. जमीर अहमद खान जीते थे। एक मतदाता शशांक जे. श्रीधरा ने कर्नाटक हाईकोर्ट में चुनाव याचिका दाखिल कर खान की विधायकी को चुनौती दी थी। श्रीधरा ने कहा था कि कांग्रेस पार्टी ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में मतदाताओं को आर्थिक सहायता सहित कई तरह की गारंटी देने की घोषणा की थी, ऐसे में पार्टी के चुनावी घोषणा पत्र में दी गई गारंटी को उम्मीदवार का भ्रष्ट आचरण के समान माना जाए। इसी को आधार बनाते हुए श्रीधरा ने विधायक खान के चुनाव को रद्द करने की मांग की थी। हालांकि हाईकोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कांग्रेस विधायक का चुनाव रद्द करने से इनकार कर दिया था।
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में यह कहा
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि ‘किसी पार्टी द्वारा उस नीति की घोषणा जिसे वे लाने का इरादा रखते हैं, को जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 123 के प्रयोजन के लिए भ्रष्ट आचरण नहीं माना जा सकता है। हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व के फैसले का हवाला देते हुए कहा था कि ‘कांग्रेस की 5 गारंटी को सामाजिक कल्याण नीतियों के रूप में माना जाना चाहिए। वे आर्थिक रूप से व्यवहार्य हैं या नहीं, यह पूरी तरह से एक मुद्दा है।
हाईकोर्ट ने यह भी कहा था कि यह अन्य दलों को दिखाना है कि किस प्रकार उक्त योजनाओं का कार्यान्वयन राज्य के खजाने के दिवालियापन के समान है और इससे केवल राज्य में कुशासन हो सकता है।’ हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ शशांक जे. श्रीधरा ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल की थी।
कांग्रेस विधायक की दलील
इस मामले में प्रतिवादी और कांग्रेस विधायक बीजेड जमीर अहमद खान ने दलील देते हुए कहा कि पार्टी द्वारा चुनाव घोषणा पत्र में की गई गारंटी नीतिगत फैसला है और इसे उम्मीदवार का भ्रष्ट आचरण नहीं माना जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता ने उनके खिलाफ कोई व्यक्तिगत आरोप नहीं लगाया है। उन्होंने कहा था कि पार्टी के घोषणापत्र के आधार पर उनके चुनाव को रद्द नहीं किया जा सकता है।
चुनावी वादे को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका लंबित
राजनीतिक दलों द्वारा चुनावी घोषणा पत्र में मतदाताओं को आर्थिक सहायता सहित मुफ्त में सरकारी सेवाएं व सुविधाएं देने का वादा करने पर रोक लगाने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में पहले से ही जनहित याचिका लंबित है।