नई दिल्ली l फ्लैगशिप जल जीवन मिशन के तहत दूषित पानी से बचने के लिए एक ऐप-आधारित डिजिटल प्लेटफॉर्म अब देश भर में 2,200 जल प्रयोगशालाओं में काम कर रहा है. सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि नई सुविधाओं से स्वास्थ्य परिणामों में भी सुधार करने में मदद मिलेगी. विशेष रूप से बच्चों, निजी व्यक्तियों, सार्वजनिक स्वास्थ्य इंजीनियरिंग अधिकारियों और पंचायतों को भी पानी की गंदगी छुटकारा मिल सकेगा.
इस प्रकार उत्पन्न जल-गुणवत्ता परीक्षण रिपोर्ट पानी का नमूना देने वाले व्यक्ति को ऑनलाइन बांटा जाएगा और निरंतर निगरानी के लिए एक केंद्रीय डेटाबेस भी फीड होगा. यह उच्च प्रदूषण वाले क्षेत्रों में जीवन रक्षक साबित हो सकता है. अधिकारी ने कहा कि डिजिटल प्लेटफॉर्म को भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के स्वास्थ्य इनपुट और सुरक्षित जल मानकों के साथ विकसित किया गया है.
क्या है मिशन का उद्देश्य
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के अनुमान के मुताबिक, पानी से पैदा होने वाले रोटावायरस सालाना 8,72,000 बच्चों के अस्पताल में भर्ती होने का कारण बनते हैं और भारत में अनुमानित 78,000 इससे मर जाते हैं. सॉफ्टवेयर प्लेटफॉर्म, पेयजल गुणवत्ता निगरानी और निगरानी, को राज्य द्वारा संचालित राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र द्वारा विकसित किया गया है. जल जीवन मिशन जल गुणवत्ता प्रभावित बस्तियों में नल के पानी की आपूर्ति के प्रावधान को प्राथमिकता देता है. अब तक, 27,544 आर्सेनिक और फ्लोराइड प्रभावित बस्तियों में से, राज्यों ने 26,492 में पेयजल आपूर्ति का प्रावधान किया है.
मिशन के तहत, स्थानीय समुदायों को भी पानी की गुणवत्ता की निगरानी का नेतृत्व करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है. “स्थानीय लोगों को फील्ड टेस्ट किट का उपयोग करके पानी की गुणवत्ता परीक्षण पर प्रशिक्षित (Trained) किया जा रहा है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने फरवरी 2019 में 7 जिलों झांसी, महोबा, ललितपुर, जालौन, हमीरपुर, बांदा और बुंदेलखंड क्षेत्र में चित्रकूट के ग्रामीण क्षेत्रों के लिए पाइप जलापूर्ति योजनाओं की शुरुआत की थी. नवंबर 2020 में विंध्याचल क्षेत्र के मिर्जापुर और सोनभद्र जिलों के लिए भी ग्रामीण पेयजल आपूर्ति परियोजनाओं की आधारशिला रखी गई थी. ये पानी की कमी वाले इलाके हैं. इन परियोजनाओं के पूरा होने पर क्षेत्र के 6,742 गांवों के लगभग18.88 लाख परिवारों को लाभ हुआ.
खबर इनपुट एजेंसी से