नई दिल्ली: रूस-यूक्रेन युद्ध को शुरू हुई ढाई साल से ज्यादा हो चुका है. युद्ध को रोकने की तमाम कोशिशें बेकार हो चुकी हैं. पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों, संयुक्त राष्ट्र के आदेशों के बावजूद रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन झुकने को तैयार नहीं है. वहीं, यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की भी पीछे हटने के मूड में नहीं हैं.
यूक्रेन इस युद्ध में भले ही कमजोर नजर आए, लेकिन बीते ढाई सालों में उसकी ओर से रूस को मुंहतोड़ जवाब देने में कोई कमी नहीं की गई है. पश्चिमी देशों से मिल रहे हथियारों और समर्थन के सहारे जेलेंस्की अभी तक पुतिन के आगे टिके हुए हैं. इस युद्ध के वैश्विक प्रभाव को नजरअंदाज करते हुए दोनों ही देश आपस में भिड़े हुए हैं.
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोनों ही देशों के नेताओं के साथ मिलकर बातचीत के जरिए इस युद्ध को खत्म करने के समाधान पर आगे बढ़ने का प्रस्ताव दे चुके हैं. हालांकि, पुतिन हों या जेलेंस्की… कोई भी झुकने को तैयार नहीं है. इन सबके बीच सबसे अहम सवाल ये है कि आखिर रूस-यूक्रेन जंग कब खत्म होगी?
जेलेंस्की की NATO में शामिल होने की चाहत!
इस सवाल का जवाब पाने के लिए हमें रूस-यूक्रेन युद्ध की सबसे बड़ी वजह जाननी होगी. इस युद्ध की शुरुआत का सबसे बड़ा कारण वोलिदिमीर जेलेंस्की का यूक्रेन को नाटो (NATO) में शामिल होने के लिए उठाया गया कदम था. व्लादिमीर पुतिन ने इसी का विरोध किया था. पुतिन क्यों यूक्रेन को इस संगठन में शामिल नहीं होने देना चाहते थे, ये सवाल भी अहम है.
दरअसल, नाटो (NATO) एक सैन्य संगठन है, जिसका पूरा नाम उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (North Atlantic Treaty Organization) है. बेल्जियम के ब्रुसेल्स में नाटो का गठन 1949 में किया गया. इस संगठन में बेल्जियम, कनाडा, डेनमार्क, आइसलैंड, इटली, लक्जमबर्ग, नीदरलैंड्स, नॉर्वे, पुर्तगाल, अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस शामिल हैं.
सोवियत संघ पर नकेल डालने के लिए बना संगठन NATO!
इस संगठन का उद्देश्य सोवियत संघ (रूस समेत अन्य देश) के विस्तार पर रोक लगाने का था. इसके बाद सोवियत संघ ने नाटो का जवाब देने की कसम खाई. 1955 में सोवियत संघ ने सात पूर्वी यूरोपीय राज्यों के साथ एक सैन्य गठबंधन बनाया, जिसे वारसा पैक्ट के नाम से जाना जाता है. हालांकि, बर्लिन की दीवार गिरने और 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद इसमें शामिल कई देश इससे अलग होकर नाटो के सदस्य बन गए.
नाटो का सदस्य बनना सामरिक और रणनीतिक तौर पर रूस के लिए एक बड़े खतरे जैसा है. दरअसल, यूक्रेन के नाटो में शामिल होते ही पश्चिमी देशों की सेनाएं रूस के मुहाने पर आ खड़ी होंगी. इस स्थिति से बचने के लिए ही व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की से नाटो में शामिल होने की इच्छा छोड़ने को कहा था.
अगर जेलेंस्की मान लें पुतिन की बात तो खत्म हो जाएगा युद्ध!
जेलेंस्की की आकांक्षा के आगे पुतिन की धमकी काम नहीं आई, यही वजह है कि रूस ने यूक्रेन के खिलाफ जंग छेड़ दी. इसके साथ ही रूस ने उन जगहों पर कब्जा करना शुरू कर दिया, जिन पर रूस अपना अधिकार मानता है. दरअसल, यूक्रेन भी एक समय तक सोवियत संघ का ही हिस्सा रहा है. फिलहाल यूक्रेन के साथ बोस्निया-हर्जेगोविना और जॉर्जिया भी नाटो में शामिल होने की कतार में हैं.
रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के साथ ही व्लादिमीर पुतिन ने शर्त रखी थी कि अगर जेलेंस्की नाटो में शामिल होने की अपनी जिद छोड़ देते हैं तो जंग तुरंत खत्म कर दी जाएगी. हालांकि, जेलेंस्की इसके लिए राजी नहीं हुए और ये युद्ध अभी तक जारी है.