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PM मोदी के इस एक दांव से राहुल-तेजस्वी-अखिलेश हुए चारों खाने चित?

Jitendra Kumar by Jitendra Kumar
30/04/25
in राष्ट्रीय, समाचार
PM मोदी के इस एक दांव से राहुल-तेजस्वी-अखिलेश हुए चारों खाने चित?
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नई दिल्ली। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने अगली जनगणना के साथ ही जाति जनगणना कराने का फैसला किया है। इसके साथ ही पीएम मोदी ने विपक्षी दलों के इंडिया गठबंधन के सियासी तरकश से एक और तीर निकाल लिया है। इंडिया गठबंधन के कई नेता और खासकर लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी लगातार अपनी सभाओं और पदयात्राओं में जाति जनगणना की मांग कर रहे थे लेकिन अचानक इसका फैसला कर प्रधानमंत्री मोदी ने विपक्षी दलों से उसका मुद्दा छीनने की कोशिश की है।

‘जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी’ की बात राहुल गांधी और कई अन्य विपक्षी दलों के नेता लंबे समय से करते रहे हैं। इसके लिए जाति जनगणना को पहली सीढ़ी बताते रहे हैं। कांग्रेस शासित कुछ राज्यों में इस तरह का जातीय सर्वे कराने का निर्देश भी राहुल गांधी दे चुके हैं लेकिन देशव्यापी जाति जगगणना कराने का फैसला कर मोदी सरकार ने कांग्रेस के सामने लंबी लकीर खींच दी है। कर्नाटक ने हाल ही में इस तरह की कोशिश की लेकिन उस रिपोर्ट को सदन के टेबल पर नहीं रखा जा सका और उस पर विवाद हो उठा है।

बिहार चुनाव में मिल सकेगा त्वरित लाभ

माना जा रहा है कि इसका त्वरित सियासी लाभ इस साल होने वाले बिहार विधानसभा चुनावों में भाजपा और उसके सहयोगी दलों को मिल सकेगा। इसके बाद अगले साल होने वाले बंगाल और तमिलनाडु चुनावों में भी भाजपा इसे भुनाने की कोशिश करेगी। कांग्रेस समेत राजद, समाजवादी पार्टी और डीएमके सरीखी पार्टियां भाजपा को जाति जनगणना का विरोधी करार देती रही हैं लेकिन पीएम मोदी के इस एक दांव ने उनके आरोपों की धज्जियां उड़ा दी हैं।

भाजपा ने किया था जाति गणना का समर्थन

बिहार में जब महागठबंधन की सरकार ने जाति गणना कराई थी, तब उस वक्त विपक्ष में रहते हुए भी भाजपा ने उसका समर्थन किया था। बिहार अकेला ऐसा राज्य बना था जो इस तरह जाति सर्वे कराकर उसकी रिपोर्ट विधानसभा में पेश की गई और उस संख्या के आधार पर राज्य में आरक्षण लागू किया। हालांकि, कोर्ट के आदेश की वजह से उस पर रोक लग गई है। माना जा रहा है कि जाति गणना की दिशा में अगला कदम बढ़ाकर भाजपा ने आगे की राह भी खोल दी है और जिसका जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी का भी वादा कर सकती है। इससे विपक्षी महागठबंधन को मुश्किलें हो सकती हैं।

बिहार में क्या कहते हैं जातीय आकंड़े

बिहार में हुई जातीय गणना के आधार पर राज्य में पिछड़ी जातियों की कुल आबादी करीब 63.14 फीसदी है। इसमें अत्यंत पिछड़ा वर्ग की आबादी 4,70,80,515 और जबकि पिछड़ा वर्ग की आबादी 3,54,63,936 है। इसके अलावा अनुसूचित जाति की जनसंख्या 2,56,89,820 है। अनारक्षित जातियों की आबादी 2,02,91,679 और अनुसुचित जनजाति की आबादी 21,99,361 है।

विपक्ष के नैरेटिव को नाकाम करने की कोशिश

इतना ही नहीं, भाजपा द्वारा अब इस तरह का देशव्यापी जनगणना कराने के ऐलान से विपक्षी दलों का संविधान और आंबेडकर नैरेटिव फेल हो सकता है। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश में सपा प्रमुख अखिलेश यादव, जो हाल के कुछ महीनों से PDA यानी पिछड़ा-दलित और अल्पसंख्यक नैरेटिव सेट करते रहे हैं, उन्हें भी झटका लग सकता है। यूपी में 2027 में चुनाव होना है। संभव है कि 2026 में ही सरकार अगली जनगणना कराए। अगर ऐसा होता है तो उत्तर प्रदेश में भी अखिलेश यादव और मायावती के सियासी दांव को झटका लग सकता है। बहरहाल, कांग्रेस इसे अपनी जीत करार दे रही है।

कांग्रेस पर सियासी स्ट्राइक

बीजेपी ने इसका ऐलान करते हुए भी एक सियासी स्ट्राइक की है और आरोप लगाया है कि कांग्रेस ने आजतक इसे सिर्फ राजनीतिक हथियार ही बनाया है। कैबिनेट की बैठक की जानकारी देते हुए केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि 2010 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आश्वासन दिया था कि जाति जनगणना पर विचार किया जाएगा, इसके लिए मंत्रियों के एक समूह का भी गठन किया गया था लेकिन जाति गणना नहीं कराई गई और 2011 की जनगणना में सिर्फ सामाजिक-आर्थिक सर्वे कराया गया लेकिन उसकी भी रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई। संविधान के अनुच्छेद 246 में इस तरह की जनगणना का उल्लेख है।

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