नई दिल्ली : उत्तरकाशी के सिल्कयारा टनल से बाहर आए मजदूरों का स्वागत पूरा देश कर रहा है। यहां हमें स्वागत उन रैट माइनर्स का भी करना चाहिए जो ‘रैट-होल’ तकनीक के जरिए मजदूरों को बाहर ला पाने में सफल हुए हैं। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के एक सदस्य ने मंगलवार को कहा कि यह तकनीक अवैध हो सकती है, लेकिन सिलक्यारा सुरंग का एक हिस्सा ढह जाने से उसमें फंसे 41 श्रमिकों को बचाने के लिए जारी बचाव अभियान में ‘रैट-होल’ खनिकों की प्रतिभा और अनुभव का इस्तेमाल किया गया।
क्या बोले अधिकारी?
एनडीएमए के सदस्य लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) सैयद अता हसनैन ने कहा कि ‘रैट-होल’ मजदूरों ने 24 घंटे से भी कम समय में 10 मीटर की खुदाई करके अभूतपूर्व काम किया है। उन्होंने यहां एक प्रेसवार्ता में कहा कि रैट-होल खनन अवैध हो सकता है लेकिन खनिकों की प्रतिभा, अनुभव और क्षमता का उपयोग किया गया है।
लगा दिया गया था बैन
राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने 2014 में मेघालय में ‘रैट-होल’ खनन तकनीक का उपयोग करके कोयला खनन पर प्रतिबंध लगा दिया था। ‘रैट-होल’ खनन में श्रमिकों के प्रवेश तथा कोयला निकालने के लिए आमतौर पर 3-4 फुट ऊंची संकीर्ण सुरंगों की खुदाई की जाती है। क्षैतिज सुरंगों को अक्सर ‘चूहे का बिल’ कहा जाता है, क्योंकि प्रत्येक सुरंग लगभग एक व्यक्ति के लिए उपयुक्त होती है। उत्तरकाशी में सिलक्यारा सुरंग में मुख्य संरचना के ढह गए हिस्से में क्षैतिज रूप से ‘रैट-होल’ खनन तकनीक का इस्तेमाल करने के लिए ट्रेंचलेस इंजीनियरिंग सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड और नवयुग इंजीनियर्स प्राइवेट लिमिटेड द्वारा कम से कम 12 विशेषज्ञों को बुलाया गया था। वे दिल्ली, झांसी और देश के अन्य हिस्सों से आए थे।
भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआइ) के सदस्य विशाल चौहान ने बताया कि एनजीटी ने उस तकनीक से कोयला खनन, सुरंग में जाकर कोयला निकालने पर रोक लगा दी है, लेकिन इस तकनीक का उपयोग अब भी निर्माण स्थलों पर किया जाता है। उन्होंने कहा, ‘यह एक विशेष स्थिति है, यह जीवन बचाने वाली स्थिति है…वे तकनीशियन हमारी मदद कर रहे थे।’