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जानलेवा मानी जाती है ‘रैट-होल’ तकनीक, जो बनी 41 मजदूरों की आखिरी उम्मीद

Jitendra Kumar by Jitendra Kumar
28/11/23
in उत्तराखंड, समाचार
जानलेवा मानी जाती है ‘रैट-होल’ तकनीक, जो बनी 41 मजदूरों की आखिरी उम्मीद
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उत्तरकाशी: उत्तराखंड सुरंग हादसे में रेस्क्यू के दौरान कुछ शब्दों की काफी चर्चा रही है। ऑगर मशीन, मैन्युअल ड्रिलिंग, वर्टिकल ड्रिलिंग और रैट माइनिंग। इन शब्दों में से रैट माइनिंग एक ऐसा कार्य है, जिसपर भारत में प्रतिबंध लगा हुआ है, लेकिन जब मशीनें, मजदूरों को निकालने में नाकामयाब हो गईं, टूट गईं, तब इसी रैट माइनिंग ने मजदूरों को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

क्या है रैट माइनिंग
रैट माइनिंग मुख्य रूप से कोयला खदानों में प्रयोग होता है। सालों पहले, जब मशीनें नहीं थीं तब कोयला हाथों से निकाला जाता था। बाद में मशीनें आईं तो इसमें कमी आई, लेकिन छोटे और संकरे कोल ब्लॉकों में यह आज भी कई जगहों पर प्रयोग होता है। भारत में मेघायल एक ऐसा राज्य है, जहां इसका प्रयोग होते आया है। कोयला निकालने की इस पद्धति में छोटे-छोटे सुरंगों के सहारे कोयला निकाला जाता है, यह पद्धति चूहों के बिलों से काफी मिलती-जुलती है, उनके खोदने के तरीके से मिलता है, यही कारण है कि इसे रैट माइनिंग कहा जाता है।

मेघालय के लिए अभिशाप कैसे

मेघायल में कोयले का काफी भंडार है। हालांकि ये कोयला उच्च क्वालिटी का नहीं है, साथ ही ये खदानें काफी संकरी हैं। यहां के कोयले में उतना मुनाफा नहीं है। यही कारण है कि यहां कोयला निकालने के लिए मशीनों की जगह ये रैट माइनर्स का प्रयोग होता है। यहां कई गैरकानूनी कोयले की खानें हैं, जहां से रैट माइनिंग करके कोयला निकाला जाता है। रैट माइनिंग में ज्यादातर कम उम्र के लोग या बच्चे होते हैं, जो आसानी से छोटे से बिलों या सुरंगों में जाकर कोयला निकालते हैं। ये रैट माइनर्स कई बार इन खदानों में फंस चुके हैं। दर्जनों की मौत हो चुकी है। कई बार मौत और फंसने की खबरें सामने आती रही हैं, तो कई बार इसके बारे में पता भी नहीं चलता है। इन्हीं कारणों के कारण एनजीटी ने 2014 में रैट माइनिंग पर प्रतिबंध लगा दिया। हालांकि इस प्रतिबंध के बाद भी रैट माइनिंग की खबरें आती रही हैं।

मेघायल के लिए अभिशाप बन चुका ये रैट माइनिंग, उत्तराखंड की सुरंग में फंसे 41 मजदूरों के लिए वरदान साबित हुआ। दरअसल जब इन 41 मजदूरों को निकालने के लिए अमेरिकी ऑगर मशीनें एक के बाद एक खराब होती रहीं, उसके ब्लेड टूटते रहे और जब इन मशीनों के सहारे बचाव दल मजदूरों को निकालने में असफल हो गए, तब रैट माइनिंग की याद आई। रैट माइनर्स बुलाए गए और बाकी बची हुई खुदाई हाथों से की गई। जिसके बाद अब मजदूरों तक बचाव दल पहुंच गए हैं, जहां से उन्हें अब जिंदा बचाकर निकाल लिया जाएगा।

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