नई दिल्ली: अठारहवीं लोकसभा के चुनाव परिणाम ने देश में आशंका व्याप्त कर दी थी कि नई संसद के आगामी सत्रों में हंगामा भी होगा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार पर अनिश्चितता की तलवार भी लटकती रहेगी. अनिश्चितता की इस तलवार की धार को चमकाने के लिए विपक्ष ने NEET परीक्षा में पेपर लीक, अग्निवीर, रेल दुर्घटनाओं और मणिपुर की हिंसा के मुद्दों पर सरकार के ख़िलाफ़ बयानों की बौछार शुरू कर दी थी, लेकिन बजट सत्र न केवल इन आशंकाओं को दूर कर गया, बल्कि एक नए रिकॉर्ड के साथ उम्मीद की एक नई किरण भी लेकर आया.
दरअसल, कांग्रेस ने संसद के बजट सत्र के पहले चरण की शुरुआत में ही अपनी मंशा साफ़ करते हुए कह दिया कि इस सत्र में प्रधानमंत्री की सरकार को मुद्दों और सवालों से पूरी तरह बेनकाब किया जाएगा. कांग्रेस की प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने 18 जून को प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कहा था, “सरकार जिस सदन में राहुल जी को नहीं संभाल पा रही थी, वहां पर अब प्रियंका जी आने वाली हैं… INDI गठबंधन के प्रबल नेता, प्रखर वक्ता आने वाले हैं, क्या होगा बेचारों का, मैं तो BJP को अग्रिम सिम्पैथी, कन्डोलेंस देना चाहती हूं, अब सदन उस गुंडई से और उस तानाशाही से नहीं चल पाएगा…” लेकिन बजट सत्र का जब 9 अगस्त को अवसान हुआ, तो सत्र ने लोकतंत्र में इतिहास रच दिया. इस सत्र में बजट पर रिकॉर्ड समय तक चर्चा हुई, जो अभी तक किसी भी लोकसभा के किसी भी बजट सत्र में नहीं हुई थी. यह सब उस सत्र में हुआ, जहां वक्फ़ बोर्ड से जुड़े दो बिल भी पेश किए गए और चर्चा भी हुई.
बजट सत्र में बना इतिहास
प्रधानमंत्री मोदी के तीसरे कार्यकाल के पहले संसद सत्र के दौरान लोकसभा में 123 प्रतिशत कामकाज हुआ, तो राज्यसभा में 110 प्रतिशत कामकाज हुआ. लोकसभा में दोनों चरणों के दौरान 22 दिन और राज्यसभा में 20 दिन कामकाज हुआ. इस सत्र में सबसे महत्वपूर्ण काम आम बजट का पेश होना और पारित होना रहा. बजट पर सत्र के दौरान 27 घंटे चर्चा हुई, जो इस विषय पर देश के लोकसभा के इतिहास में सबसे अधिक समय तक हुई चर्चा है. 1952 में देश के पहले बजट पर मात्र पांच घंटे की चर्चा हुई थी, वहीं 1971 में यह चर्चा करीब 23 घंटे की थी. वहीं UPA के 2004 से 2014 के शासनकाल के दौरान बजट पर चर्चा मात्र 8 से 12 घंटों के बीच ही हुई. प्रधानमंत्री मोदी के पिछले दो कार्यकालों के दौरान बजट पर चर्चा 15 से 25 घंटों के बीच हुई थी, लेकिन तीसरे कार्यकाल के पहले बजट पर चर्चा के समय का यह रिकॉर्ड भी टूट गया.
अठारहवीं लोकसभा के पहले बजट सत्र में प्रश्नकाल को लेकर भी रिकॉर्ड बना. प्रश्नकाल संसद में एक अवसर होता है, जब सदन के सदस्य सरकार से जनहित से जुड़े किसी भी सवाल का सीधा जवाब मांगते हैं. पिछले कुछ सालों के दौरान यह देखने को मिला कि प्रश्नकाल की ज़्यादातर अवधि विपक्ष के शोर-शराबे और हंगामे की भेंट चढ़ गई, लेकिन इस बार बजट सत्र में प्रश्नकाल लगभग पूरी तरह से सुचारु ढंग से चला और सदस्यों के सवालों का जवाब सरकार ने दिया. लोकसभा में प्रश्नकाल के लिए निर्धारित समय का 97 प्रतिशत समय इसी काम के लिए दिया गया, वहीं राज्यसभा में प्रश्नकाल के लिए निर्धारित समय का 99 प्रतिशत समय इसी काम को दिया गया. प्रश्नकाल के दौरान सरकार के मंत्रियों ने 31 प्रतिशत सवालों का जवाब सदन में मौखिक रूप से दिया, वहीं शेष सवालों का जवाब लिखित रूप से सदस्यों को दिया गया. बजट सत्र के दौरान कुल 11 विधेयक सरकार ने सदन के पटल पर रखे.
स्पीकर के चुनाव पर रार
लोकसभा चुनाव परिणाम से जिस तरह कांग्रेस का INDI गठबंधन उत्साहित था और प्रधानमंत्री मोदी की नैतिक हार बताते नहीं थक रहा था, उससे यही लग रहा था कि अठारहवीं लोकसभा का पहला सत्र बहुत हंगामेदार और शोर-शराबे से भरा होगा. ऐसे में सरकार के सामने स्पीकर के चुनाव के साथ-साथ बजट को पारित कराने की भी चुनौती दिखाई दे रही थी. लोकसभा में प्रोटेम स्पीकर भर्तृहरि महताब के चयन पर जिस तरह विपक्ष ने हंगामा किया और कांग्रेस के सांसद के. सुरेश को प्रोटेम स्पीकर बनाए जाने की मांग को लेकर सरकार पर संविधान की अनदेखी का नैरेटिव बनाया, उससे लगा कि सरकार विपक्ष के जाल में फंस गई है, लेकिन सत्तासीन गठबंधन NDA की एकजुटता और प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व ने इस चुनौती को भी पार कर लिया.
NDA के सामने दूसरी बड़ी चुनौती विपक्ष ने तब खड़ी कर दी, जब NDA स्पीकर के पद पर ओम बिरला का सर्वसम्मति से चुनाव चाहता था. विपक्ष का कहना था कि इसके लिए NDA को डिप्टी स्पीकर का पद INDI गठबंधन को देना होगा. विपक्ष की इस शर्त को NDA मानने को तैयार नहीं हुआ और आखिर में भारत के लोकतंत्र में वह भी ऐतिहासिक घटना हुई, जब लोकसभा के स्पीकर पद के लिए चुनाव हुए. इस चुनाव में NDA की तरफ से ओम बिरला और INDI गठबंधन की तरफ से कांग्रेस के उम्मीदवार के. सुरेश आमने-सामने थे. लोकसभा में NDA की तरफ से स्पीकर पद के लिए ओम बिरला के नाम का प्रस्ताव प्रधानमंत्री मोदी ने किया, जबकि INDI गठबंधन की तरफ से कांग्रेस के सांसद के. सुरेश के नाम का प्रस्ताव शिवसेना (उद्धव) के सांसद अरविंद सावंत ने किया. लेकिन INDI गठबंधन ने स्पीकर पद के चुनाव के लिए मतदान की मांग नहीं की और ओम बिरला का चुनाव ध्वनिमत द्वारा किया गया.
विपक्ष की घेराबंदी
INDI गठबंधन के प्रोटेम स्पीकर और स्पीकर के चुनाव पर किए गए हंगामे से स्पष्ट हो चुका था कि विपक्ष इस बार सरकार को न केवल सदन में हर मुद्दे पर घेरने के लिए उतावला है, बल्कि पूरी तैयारी भी कर चुका है. ऐसा होना स्वाभाविक भी था, क्योंकि विपक्ष के पास मुद्दों की एक पूरी फेहरिस्त तैयार थी. संसद सत्र शुरू होने से पहले ही विपक्ष के नेता राहुल गांधी मणिपुर की यात्रा कर प्रधानमंत्री मोदी को मणिपुर की हिंसा पर घेरने की पूरी तैयारी कर चुके थे.
NEET पेपर लीक मामले ने भी विपक्ष को बैठे-बिठाए एक मुद्दा दे दिया था. NEET पेपर लीक में सरकार पर दबाव बनाने के लिए विपक्ष, संसद से सड़क तक संग्राम कर रहा था. NEET पेपर लीक का मामला तूल पकड़ ही चुका था कि उस दौरान अग्निवीर से जुड़ी एक और घटना सामने आ गई. राहुल गांधी ने एक अग्निवीर सैनिक की सेवा के दौरान मृत्यु होने पर शहीद का दर्जा और आर्थिक मदद न देने का मुद्दा उठाकर सरकार को घेरने का प्रयास किया. संसद का सत्र शुरू होने से पहले INDI गठबंधन के नेताओं और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने जैसा माहौल बनाया, उससे लग रहा था कि संसद सत्र में सरकार की फजीहत तय है. ऐसे में ही यह आशंका घर कर रही थी कि संसद के अंदर कामकाज कैसे पूरा होगा?
सरकार का फ़ोकस
संसद का बजट सत्र शुरू होने से पहले विपक्ष की घेराबंदी में सरकार बैकफुट पर थी, लेकिन सरकार और प्रधानमंत्री मोदी के काम करने के तरीके और जनहित से जुड़े मुद्दों पर फ़ोकस ने विपक्ष की इस घेराबंदी को कमज़ोर कर दिया. सरकार ने विपक्ष द्वारा उठाए जा रहे हर मुद्दे पर लीपापोती करने की जगह उन मुद्दों पर सही और उचित कदम उठाया. सरकार की इस रणनीति के तहत जहां मणिपुर की हिंसा को खत्म करने के लिए कारगर कदम उठाए गए, वहीं NEET पेपर लीक मामले में निष्पक्ष तरीके से विद्यार्थियों के हित में भी हर ज़रूरी कदम उठाया गया. इसे बाद में सुप्रीम कोर्ट ने भी स्वीकार किया और NEET परीक्षा को सुचारु ढंग से जारी रखने का आदेश दे दिया. यह सरकार द्वारा काम पर फ़ोकस करने का ही परिणाम था कि प्रधानमंत्री मोदी के तीसरे कार्यकाल के पहले बजट सत्र में न सिर्फ इतिहास बना, बल्कि भारत का लोकतंत्र भी और मज़बूत हुआ.