गौरव अवस्थी ‘आशीष’
रायबरेली
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के समकालीन पंडित माधव राव सप्रे की स्मृति में देश के प्रखर पत्रकार और मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में लंबे समय तक पत्रकारिता करने वाले पद्मश्री विजय दत्त श्रीधर जी ने 40 वर्ष पहले भोपाल में सप्रे संग्रहालय की स्थापना के साथ पत्रकारिता और पत्रकारों की दशा-दिशा सुधारने के लिए “आंचलिक पत्रकार” नाम से मासिक पत्रिका प्रारंभ की थी। आंचलिक पत्रकार पत्रिका आज देशभर के पत्रकारों में एक आदर्श के रूप में स्थापित हो चुकी है। गैर व्यवसायिक पत्रिका का 40 वर्षों तक अनवरत प्रकाशन अपने में एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। मिसाल है। इस मिसाल यूं ही नहीं बनी है। इसके पीछे मशाल है। एक मशाल को जलाए रखना आसान नहीं होता। जुनून को जिंदा रखना पड़ता है। परिस्थितियां अनुकूल हो या प्रतिकूल। उपलब्धि पहाड़ सी हो या राई सरीखी। मौसम ठंडा हो या गरम। तारीफ की ठंडी हवाएं हो या निंदा के गर्म थपेड़े। इन सबसे परे रहने वाले “दिया-बाती” ही अंधेरे से लड़ पाते हैं। उजाले बिखेर पाते हैं। थोड़े समय में विजयदत्त श्रीधर की जो छवि मन में अंकित हुई है, वह है उनका “जुनूनी” होना। 70 पार की उम्र में भी उनका जुनून जिंदा है। जिसका जुनून जिंदा रहता है समाज में उसकी जिंदाबाद अपने आप होती ही है।
आंचलिक पत्रकार पत्रिका एक ऐसा जंक्शन है, जहां आज का पत्रकार पूर्वज संपादकों-पत्रकारों की छांव में बैठ-सुस्ताकर आगे की नई नवेली राह बना सकता है। चाह पैदा कर सकता है। नई पीढ़ी की नई-नई योजनाओं से पुरानी पीढ़ी भी परिचित होने का मौका पाती है। उम्मीदें कभी जगती है और कभी बुझती भी है। यह जगना-बुझना ही जिंदादिली की निशानी है। ऐसा कोई समाज ही वर्ग तो आज तक बना ही नहीं जिसकी सभी उम्मीदें पूरी हुई हो, या एक भी पूरी ना हुई हो।
हम पत्रकारों के लिए आंचलिक पत्रकार ज्ञानवर्धक भी है और उत्साहवर्धक भी। इस 40 साल के इस शानदार सफर का सहयात्री होना हमारे ऐसे अकिंचन पत्रकार के लिए कम गौरवपूर्ण नहीं है। जिस पत्रिका में राजेंद्र माथुर जी, प्रभाष जोशी जी, गणेश मंत्री, लक्ष्मी शंकर व्यास, डॉक्टर नंदकिशोर त्रिखा, डॉ शंकर दयाल शर्मा, विद्यानिवास मिश्र, गौरा पंत शिवानी, मावली प्रसाद श्रीवास्तव, कुलदीप नैयर, नारायण दत्त, राम बहादुर राय श्रवण गर्ग जैसे स्वनामधन्य लेखकों-पत्रकारों के आलेख प्रकाशित होते रहे हो, इन नामों की श्रंखला में अपना नाम देखना हमारे लिए “आठवें आश्चर्य” से कम नहीं। यह विजयदत्त श्रीधर जी की सरलता-सहजता ही मानी जानी चाहिए। विजयदत्त श्रीधर जी ने पत्रिका के 4 दशक पूरे होने पर एक अनोखा प्रयोग किया है। ऐसा प्रयोग भी हमारे जानने सुनने और समझने में अभी कहीं भी सामने नहीं आया है।
सप्रे संग्रहालय ने अपनी प्रतिष्ठित आंचलिक पत्रकार पत्रिका में चार दशक में प्रकाशित चुनिंदा लेखकों के लेखों का “विवरणी विशेषांक” प्रकाशित किया है। वर्ष 2019, 2020 और 2021 के एक-एक अंक में हमारे लेखों को स्थान देकर सप्रे संग्रहालय भोपाल के संस्थापक विजयदत्त जी ने हम जैसे लोगों के उत्साह में श्रीवृद्धि की है। इसके लिए हम दिल से विजय दत्त श्रीधर जी और आंचलिक पत्रकार पत्रिका के प्रकाशन से जुड़े सप्रे संग्रहालय के सभी सदस्यों के प्रति आभार व्यक्त करते हैं।