-पांच दिन चलेंगे विभाग के सुपरस्पेशलिटी क्लिनिक, शुक्रवार को चलेगा स्ट्रेस यूरिनरी इनकंटीनेंस क्लिनिक
ऋषिकेश : विश्व की पहली रिकंस्ट्रक्टिव एवं कॉस्मेटिक गायनेकोलॉजी की डिवीजन जो कि अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, एम्स ऋषिकेश में स्थापित है ने हर सप्ताह सोमवार, बुधवार और शुक्रवार को सुबह 8.30 बजे से दोपहर 1 बजे तक अपनी ओपीडी शुरू की है। पूर्व में विभाग की ओपीडी सेवाएं कोविड-19 वैश्विक महामारी के कारण भारत सरकार के नियमानुसार स्थगित की गई थी। रिकंस्ट्रक्टिव एवं कॉस्मेटिक गायनेकोलॉजी ने नारी कल्याण के मद्देनजर अपनी ओपीडी सेवाएं संस्थान के निदेशक पद्मश्री प्रोफेसर रवि कांत जी के मार्गदर्शन में कोविड 19 नियमावली के पालन के साथ फिर से शुरू की हैं। रिकंस्ट्रक्टिव एवं कॉस्मेटिक गायनेकोलॉजी डिवीजन के प्रमुख डॉक्टर नवनीत मग्गो ने बताया कि अपनी ओपीडी सेवाओं के माध्यम से नारी सेवा करना उनके लिए बहुत गौरव की बात है। गौरतलब है कि डा. मग्गो एक सुप्रसिद्ध अंतराष्ट्रीय कॉस्मेटिक शल्य चिकित्सक हैं, जो कि अमेरिका और यूरोप से इस चिकित्सा में प्रशिक्षित हैं, लिहाजा उन्होंने अपना जीवन महिलाओं की निजी चिकित्सकीय समस्याओं के मद्देनजर नारी कल्याण के लिए समर्पित किया है। उन्होंने जुलाई सन् – 2019 में एम्स निदेशक पद्मश्री प्रोफेसर रवि कांत की दूरदृष्टिता व मागर्दशन के चलते संस्थान में रिकंस्ट्रक्टिव एवं कॉस्मेटिक गायनेकोलॉजी डिवीजन की स्थापना की थी। यह डिवीजन एक सुपर स्पेशलिटी डिवीजन है, जिसका उद्देश्य महिलाओं की निजी स्वास्थ्य समस्याओं का निवारण करना है। ऐसी समस्याओं में स्ट्रेस यूरिनरी इनकंटीनेंस, संबंध बनाने में परेशानी, योनि के रास्ते से शरीर के हिस्से का बाहर आना, फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन आदि मुख्यरूप से शामिल हैं। एम्स निदेशक पद्मश्री प्रोफेसर रविकांत ने बताया कि रिकंस्ट्रक्टिव एवं कॉस्मेटिक गायनेकोलॉजी डिवीजन की ओपीडी सेवाएं महिलाओं के लिए अत्यंत लाभदायक सिद्ध होंगी। उन्होंने उम्मीद जताई कि ऋषिकेश एम्स में दुनियाभर में अपनी तरह की इस पहली चिकित्सा ओपीडी में इस तरह की समस्याओं से पीड़ित महिलाएं आएंगी और विशेषज्ञों को अपनी निजी परेशानियों से अवगत कराकर इन सुपर स्पेशलिटी सेवाओं का लाभ लेंगी। यह सेवाएं ग्रसित महिलाओं को नवजीवन प्रदान करेंगी।
जानें, कब कौन सी ओपीडी होगी संचालित-इस सुपरस्पेशलिटी विभाग की पेल्विक ऑर्गन प्रोलैप्स क्लिनिक सोमवार को दोपहर 2 बजे से 4 बजे तक चलेगा। बताया गया कि उत्तराखंड में बहुत सी महिलाएं बच्चेदानी के बाहर निकलने की समस्या से पीड़ित हैं, क्योंकि यह पहाड़ी क्षेत्र है। लिहाजा इस तकलीफ का सबसे आधुनिक उपचार उत्तराखंड में पहली बार एम्स ऋषिकेश द्वारा स्थापित रिकंस्ट्रक्टिव एवं कॉस्मेटिक गायनेकोलॉजी डिवीजन में उपलब्ध कराया गया है, जिसे साइट स्पेसिफिक रिपेयर कहते हैं, इसमें चिकित्सा विशेषज्ञों द्वारा अमेरिका से दक्षता हासिल की गई है।
फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन क्लिनिक, मंगलवार दोपहर 2 बजे से 4 बजे तक चलेगा। बताया गया कि समाज के कुछ समुदाय इस समस्या से ग्रसित हैं, जिसमें एक महिला के बाहरी यौन अंग नष्ट करके उसका जीवन नष्ट कर दिया जाता है। डॉक्टर नवनीत मग्गो अंतराष्ट्रीय स्तर पर इस समस्या का उपचार करने के लिए दक्षता हासिल हैं, जो कि इस तरह की समस्या से पीड़ित महिलाओं के लिए वरदान है।
-फीमेल सेक्सुअल डिस्फंक्शन क्लिनिक, बुधवार को दोपहर 2 बजे से 4 बजे तक रिकंस्ट्रक्टिव एवं कॉस्मेटिक गायनेकोलॉजी विभाग की ओपीडी में संचालित किया जाएगा। बताया गया है कि समाज में लगभग 40 प्रतिशत महिलाएं वैवाहिक परस्पर संबंध बनाने की परेशानी से ग्रस्त हैं, मगर वह चुप्पी साधे रहती हैं। जिसका दुष्प्रभाव अमूमन पारिवारिक ढांचे पर पड़ता है और परिवार टूट जाते हैं। विभाग के चिकित्सकों का इस समस्या से ग्रसित महिलाओं से अनुरोध किया है कि वह अपनी समस्या का समय रहते संपूर्ण इलाज कराएं।
-वजाइनल रिजूवनेशन क्लिनिक, शनिवार सुबह 10 से 12 बजे तक संचालित होगा। जिन महिलाओं की योनि का रास्ता बच्चा होने या उम्र के साथ साथ ढीला हो जाता है, वह रिकंस्ट्रक्टिव एवं कॉस्मेटिक गायनेकोलॉजी के इस क्लिनिक का लाभ उठा सकती हैं। बताया गया कि विभाग के विशेषज्ञों द्वारा रेडियोफ्रीक्वेंसी और लेज़र जैसी आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल करके महिलाओं की इस समस्या का स्थायी निवारण किया जाएगा।
-स्ट्रेस यूरिनरी इनकंटिनेंस क्लिनिक, शुक्रवार दोपहर 2 से 4 बजे तक शुरू किया जा रहा है। चिकित्सकों ने बताया कि स्ट्रेस यूरिनरी इनकंटीनेंस की समस्या में महिलाओं के खांसने, छींकने, हंसने, वजन उठाने पर पेशाब स्वत: छूट जाता है। उन्होंने बताया कि प्रत्येक तीन में से एक महिला इस परेशानी से पीड़ित है और विज्ञान के अनुसार, इसका सबसे आधुनिक इलाज रिकंस्ट्रक्टिव एवं कॉस्मेटिक गायनेकोलॉजी में उपलब्ध है। डॉ. नवनीत मग्गो के द्वारा इस विषय में लिखे गए विज्ञान पत्र अंतरराष्ट्रीय जर्नल्स और पुस्तकों में प्रकाशित हुए हैं।