Saturday, May 10, 2025
नेशनल फ्रंटियर, आवाज राष्ट्रहित की
  • होम
  • मुख्य खबर
  • समाचार
    • राष्ट्रीय
    • अंतरराष्ट्रीय
    • विंध्यप्रदेश
    • व्यापार
    • अपराध संसार
  • उत्तराखंड
    • गढ़वाल
    • कुमायूं
    • देहरादून
    • हरिद्वार
  • धर्म दर्शन
    • राशिफल
    • शुभ मुहूर्त
    • वास्तु शास्त्र
    • ग्रह नक्षत्र
  • कुंभ
  • सुनहरा संसार
  • खेल
  • साहित्य
    • कला संस्कृति
  • टेक वर्ल्ड
  • करियर
    • नई मंजिले
  • घर संसार
  • होम
  • मुख्य खबर
  • समाचार
    • राष्ट्रीय
    • अंतरराष्ट्रीय
    • विंध्यप्रदेश
    • व्यापार
    • अपराध संसार
  • उत्तराखंड
    • गढ़वाल
    • कुमायूं
    • देहरादून
    • हरिद्वार
  • धर्म दर्शन
    • राशिफल
    • शुभ मुहूर्त
    • वास्तु शास्त्र
    • ग्रह नक्षत्र
  • कुंभ
  • सुनहरा संसार
  • खेल
  • साहित्य
    • कला संस्कृति
  • टेक वर्ल्ड
  • करियर
    • नई मंजिले
  • घर संसार
No Result
View All Result
नेशनल फ्रंटियर
Home कला संस्कृति

परीक्षाओं का दौर

Frontier Desk by Frontier Desk
05/03/20
in कला संस्कृति, साहित्य
परीक्षाओं का दौर
Share on FacebookShare on WhatsappShare on Twitter

दीपशिखा गुंसाईं l


आजकल बच्चों की परीक्षाओं का दौर चल रहा है। वैसे तो हमें अपने पूरे जीवन काल में हर मोड़ पर कई तरह की परीक्षाओं से गुजरना होता है, और अपने अनुभवों के अनुसार उन इम्तिहानों को पास भी कर जाते हैं। बिलकुल वैसे ही आजकल बच्चे उसी पहली सीढ़ी को पार करने और अपने सुनहरे भविष्य की नींव रख रहे हैं।

ये परीक्षाएं बच्चों में हमेशा टेंशन लेकर ही आती हैं। अगर हम अभिभावक उनको थोड़ा सपोर्ट करें तो शायद कुछ हद तक आसानी हो बच्चों को। हम भी ये जतायें कि हम खुद ही कितने परेशान हैं तो मुश्किलें बढ़ेंगी ही। शायद हर दौर में बच्चों और अभिभावकों की मानसिक स्थिति एक सी ही रही हो चाहे बदलाव कितना भी आया हो समय के साथ पर कुछ बातें कभी नहीं बदलती।
कुछ यादें मेरी भी ताजा हो आई। जब वही स्थिति सामने आ जाती। हमारे बोर्ड के एग्जाम थे और हमसे ज्यादा चिंता पापा को रहती।
“खुद तो नींद आती नहीं हमें भी उठा देते इतनी सुबह”

ये शब्द हुआ करते जब पापा अलसुबह उठा देते पढाई के लिए। रात को देर तक पढ़ने की आदत होने की वजह से सुबह उठना मुश्किल होता।

पापा को आदत थी सबसे पहले ब्रम्ह मुहूर्त में उठकर चाय के साथ हाजिर होते उठाने को। पर हम भी मजाल जब तक चाय एक दो बार ओर गर्म न हो उठते ही नहीं। उस पर झल्लाते भी, क्योंकि सुबह के वक़्त नींद ज्यादा अच्छी आती थी। कहते पापा बेटा बोर्ड के एग्जाम है सुबह का पढ़ा जल्दी याद होता है। हाँ अगर सिर्फ गणित के क्वेश्चन सॉल्व करने हों तो कभी भी उठ जायें पर इतने सारे सब्जेक्ट होते क्यों थे। काश एक ही सब्जेक्ट पढ़ना होता यही सोचती। पापा जब भी देखते फिर से सिर्फ मैथ्स। कहते बेटा पास क्या इसी में होना है। वैसे पढाई में बचपन में अच्छी ही रही हूँ। और उसपर गणित में हमेशा बेस्ट रही।

आज जब बेटी कहती ममा आपका फेवरेट होगा मैथ्स जरुरी नहीं सबका भी हो, बात भी सही है।
यहाँ बातें बचपन की, क्यूंकि हम बच्चों के संग अपना बचपन जी रहे हैं। जो गलतियां हम कर चुके वो बच्चे न करें उसका ख्याल तो रखते ही हैं अपने अनुभवों से।

ध्यान दिया होगा कई बार हम घर पर कैसा भी पढ़ा लें पर बच्चे हमसे उम्मीद करते जैसा क्लास टीचर ने पढ़ाया वही विधि से उन्हें सिखाया जाये और टीचर कभी गलती कर ही नहीं सकती। बेटी भी कई बार इसी वजह से झगड़ती है। याद आया फिर अपना किस्सा उस वक़्त में शायद सेकंड में थी उत्तरकाशी बड़कोट में। पापा हर्षिल में कहीं पोस्टेड थे और हम बड़कोट शिशु मंदिर में पढ़ते थे वही हमारे पूर्व मुख्यमंत्री “निशंक” जी हिंदी के आचार्य हुआ करते थे, उस वक़्त मेरी गणित बहुत अच्छी हुआ करती थी। जिस वजह से ही एक क्लास प्रमोट किया गया था मुझे, और 2nd से सीधे 3rd में। अपने क्लास की सबसे कम उम्र की स्टूडेंट। तब क्लास में किसी बच्चे ने मुझे बैठने नहीं दिया पर धीरे-धीरे सब मुझे अपने बगल वाली सीट ऑफर करने लगे क्योंकि सबको मेरी कॉपी चाहिए होती थी।

एक दिन मुझे गणित की टेबल लिखनी थी तो याद नहीं आया आचार्य जी ने कैसे सिखाया बस रो पड़ी। पापा साथ न थे तब माँ और दी ने सारी विधियां बता दी पर मुझे तो स्कूल वाली ही विधि से सॉल्व करना था। रात को किसी को भेजकर आचार्य जी बुलवाये गए कैसे करवाया था आपने आज इसने न सोना न खाना किया। जब मेरा कार्य पूरा हुआ तब जाकर सबको चैन पड़ा। हाँ समय और परिस्थियाँ बहुत कुछ बदल देती हैं इंसान भी और…

शायद ही कोई माँ बाप हों जो अपने बच्चों के लिए किसी भी चीज की कमी होने दें। बल्कि अपनी सामर्थ्य से अधिक करने की कोशिश करते हैं तब भी और आज भी। हाँ पापा हमारे ज्योग्राफी के लेक्चर थे पर पांचों भाई बहिनों में किसी ने भी ज्योग्राफी ली ही नहीं। यही बात बेटी भी कहती आपको मैथ्स और हिंदी पसंद पर जरुरी नहीं मुझे भी हो। बात भी सही है हम अपनी पसंद क्यों थोपें बच्चों पर। और यही होना भी चाहिए हम आजकल जबरन अपनी पसंद थोपते हैं, जबकि कभी हमारे माँ बाप ने ऐसा नहीं किया, जिस वजह से आज बच्चे ज्यादा डिप्रेस हो रहे, बस बच्चों का अपना बेस्ट खुद से देने दें वो देंगे भी, आप उन्हें उनकी जरुरत की सुविधाएँ दें पर इतनी नहीं कि उन्हें जरूरतें क्या होती ये पता ही न चले, माहौल दें एक शांत, बोझिल नहीं।

आज बहुत कुछ बदला है पर भावनाएं एक बच्चे के लिए माँ बाप की वैसी ही और रहेंगी भी हमेशा वैसी ही ,,,,,
“दीप”


दीपशिखा गुसाईं कौलागढ़ देहरादून उत्तराखंड की रहने वाली है। दीपशिक्षा एक सामाजिक कार्यकर्ता है। वर्तमान में वो अपनत्व फाउंडेशन, समाज सशक्तिकरण केंद्र की कोफाउंडर है। इनसे ईमेल आई gusaindeepshikha@gmail.com के माध्यम से संपर्क किया जा सकता है।

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

About

नेशनल फ्रंटियर

नेशनल फ्रंटियर, राष्ट्रहित की आवाज उठाने वाली प्रमुख वेबसाइट है।

Follow us

  • About us
  • Contact Us
  • Privacy policy
  • Sitemap

© 2021 नेशनल फ्रंटियर - राष्ट्रहित की प्रमुख आवाज NationaFrontier.

  • होम
  • मुख्य खबर
  • समाचार
    • राष्ट्रीय
    • अंतरराष्ट्रीय
    • विंध्यप्रदेश
    • व्यापार
    • अपराध संसार
  • उत्तराखंड
    • गढ़वाल
    • कुमायूं
    • देहरादून
    • हरिद्वार
  • धर्म दर्शन
    • राशिफल
    • शुभ मुहूर्त
    • वास्तु शास्त्र
    • ग्रह नक्षत्र
  • कुंभ
  • सुनहरा संसार
  • खेल
  • साहित्य
    • कला संस्कृति
  • टेक वर्ल्ड
  • करियर
    • नई मंजिले
  • घर संसार

© 2021 नेशनल फ्रंटियर - राष्ट्रहित की प्रमुख आवाज NationaFrontier.