राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस, 2025 में अपनी यात्रा के 100 वर्ष पूरे कर लेगा। यह किसी भी संगठन के लिए महत्वपूर्ण बात होती है कि इतने लंबे कार्यकाल में उसका निरंतर विस्तार होता रहे। अपने 100 वर्ष की यात्रा में संघ ने समाज का विश्वास जीता है। यही कारण है कि जब मीडिया में आरएसएस को लेकर भ्रामक जानकारी आती है, तब सामान्य व्यक्ति चकित हो उठता है, क्योंकि उसके जीवन में आरएसएस सकारात्मक रूप में उपस्थित रहता है, जबकि आरएसएस विरोधी ताकतों द्वारा मीडिया में उसकी नकारात्मक छवि प्रस्तुत की जाती है। संघ ने लंबे समय तक इस प्रकार के दुष्प्रचार का खण्डन नहीं किया। अब भी बहुत आवश्यकता होने पर ही संघ अपना पक्ष रखता है। दरअसल, इसके पीछे संघ का विचार रहा है कि- ‘कथनी नहीं, व्यवहार से स्वयं को समाज के समक्ष प्रस्तुत करो’। 1925 के विजयदशमी पर्व से अब तक संघ के स्वयंसेवकों ने यही किया। परिणामस्वरूप, सुनियोजित विरोध, कुप्रचार और षड्यंत्रों के बाद भी संघ अपने ध्येय पथ पर बढ़ता रहा। इसी संदर्भ में यह भी देखना होगा कि जब भी संघ को जानने या समझने का प्रश्न आता है, तब वरिष्ठ प्रचारक यही कहते हैं- ‘संघ को समझना है तो शाखा में आना होगा’। अर्थात् शाखा आए बिना संघ को नहीं समझा जा सकता। यह सत्य है कि किसी पुस्तक को पढ़ कर संघ की वास्तविक प्रतिमा से परिचित नहीं हुआ जा सकता। किंतु, संघ को नजदीक से देखने वाले लेखक जब कुछ लिखते हैं, तब उनकी पुस्तकें संघ के संबंध में प्राथमिक और सैद्धांतिक परिचय करा ही देती हैं। इस क्रम में सुप्रसिद्ध लेखक रतन शारदा की पुस्तक ‘आरएसएस 360’ हमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के और नजदीक ले जाती है। यह पुस्तक संघ पर उपलब्ध अन्य पुस्तकों से भिन्न है। दरअसल, पुस्तक में संघ के किसी एक पक्ष को रेखांकित नहीं किया गया है और न ही एक प्रकार के दृष्टिकोण से संघ को देखा गया है। पुस्तक में संघ के विराट स्वरूप को दिखाने का प्रयास लेखक ने किया है।
लेखक रतन शारदा ने संघ की अविरल यात्रा का निकट से अनुभव किया है। उन्होंने संघ में लगभग 50 वर्ष विभिन्न दायित्वों का निर्वहन किया है। इसलिए उनकी पुस्तक में संघ की यात्रा के लगभग सभी पड़ाव शामिल हो पाए हैं। चूँकि संघ का स्वरूप इतना विराट है कि उसको एक पुस्तक में प्रस्तुत कर देना संभव नहीं है। इसके बाद भी यह कठिन कार्य करने का प्रयास किया गया है। यह पुस्तक भ्रम के उन जालों को भी हटाने का महत्वपूर्ण कार्य करती है, जो हिटलर के प्रचार मंत्री गोएबल्स की संतानों ने फैलाए हैं। आज बहुत से लोग संघ के संबंध में प्रामाणिक जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं। ऐसे जिज्ञासु लोगों के लिए यह पुस्तक बहुत महत्वपूर्ण है। स्वयं लेखक ने लिखा है कि “इस पुस्तक का जन्म मेरी उस इच्छा से हुआ था कि जो लोग संघ से नहीं जुड़े हैं या जिनको जानकारी नहीं है, उन्हें आरएसएस के बारे में बताना चाहिए”। पुस्तक पढ़ने के बाद संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं से लेकर प्रबुद्ध वर्ग की प्रतिक्रियाएं भी इस बात की पुष्टी करती हैं कि पुस्तक अपने उद्देश्य की पूर्ति करती है। सुप्रसिद्ध लेखिका मधु पूर्णिमा किश्वर ने पुस्तक की प्रस्तावना लिखी है। उन्होंने भी उन ताकतों की ओर इशारा किया है, जो संघ के विरुद्ध तो दुष्प्रचार करती ही हैं, संघ की प्रशंसा करने वाले लोगों के प्रति भी घोर असहिष्णुता प्रकट करती हैं।
पुस्तक की सामग्री को तीन मुख्य भागों में बाँटा गया है। भाग-1 को ‘आत्मा’ शीर्षक दिया गया है, जो सर्वथा उपयुक्त है। लेखक ने इस भाग में संघ के संविधान का सारांश प्रस्तुत किया है और संघ की आवश्यकता को रेखांकित किया है। इसी अध्याय में उस पृष्ठभूमि का उल्लेख आता है, जिसमें डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने संघ की स्थापना की और संघ की स्थापना के उद्देश्य को स्पष्ट किया। संघ का उद्देश्य क्या है? अकसर इस बात को लेकर कुछेक लोगों द्वारा खूब अपप्रचार किया जाता है। संघ का उद्देश्य उसकी प्रार्थना में प्रकट होता है, जिसे संघ स्थान पर प्रतिदिन स्वयंसेवक उच्चारित करते हैं। उस प्रार्थना के भाव को भी इस अध्याय में समझाने का प्रयत्न किया गया है। भाग-2 ‘स्वरूप’ शीर्षक से है, जिसमें संघ के विराट स्वरूप को सरलता से प्रस्तुत किया गया है। शाखा का महत्व, आरएसएस की संगठनात्मक संरचना और प्रचारक पद्धति पर लेखक ने विस्तार से लिखा है। यह अध्याय हमें संघ की बुनियादी संरचना और जानकारी देता है। ‘अभिव्यक्ति’ शीर्षक से भाग-3 में आरएसएस के अनुषांगिक संगठनों की जानकारी है, जिससे हमें पता चलता है कि वर्तमान परिदृश्य में संघ के स्वयंसेवक कितने क्षेत्रों में निष्ठा, समर्पण और प्रामाणिकता से कार्य कर रहे हैं। ‘राष्ट्र, समाज और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ में लेखक रतन शारदा ने संघ के उन कार्यों का उल्लेख किया है, जिनको अपना कर्तव्य मान कर संकोचवश संघ बार-बार बताता नहीं है। 1947 में विभाजन की त्रासदी में लोगों का जीवन बचाने का उपक्रम हो, या फिर 1948 और 1962 के युद्ध में सुरक्षा बलों का सहयोग, संघ के स्वयंसेवक सदैव तत्पर रहे। देश में आई बड़ी आपदाओं में भी संघ ने आगे बढ़ कर राहत कार्य किए हैं। कोरोना महामारी का यह दौर हमारे सामने है ही, जब सबने देखा कि कैसे संघ ने बड़े पैमाने पर सेवा और राहत कार्यों का संचालन किया। बहरहाल, सामाजिक समरसता और सेवा के क्षेत्र में किए गए कार्यों का प्रामाणिक विवरण ‘आरएसएस 360’ में हमें मिलता है। इसके अतिरिक्त ‘आपातकाल में लोकतंत्र के लिए संघ की लड़ाई’ और ‘संघ कार्य में मील के पत्थर’ जैसे महत्वपूर्ण विवरण के साथ पुस्तक का आरंभ होता है और अंत में पाँच अत्यंत महत्वपूर्ण परिशिष्ट शामिल किए गए हैं। इनमें संघ के अब तक के सरसंघचालकों की संक्षिप्त जानकारी, 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में संघ की भूमिका, 1948 में संघ पर प्रतिबंध की पृष्ठभूमि, प्रतिबंध के विरुद्ध सत्याग्रह के साथ ही संघ, पटेल और नेहरू के पत्राचार को शामिल किया गया है।
निस्संदेह लेखक रतन शारदा की पुस्तक ‘आरएसएस 360’ पाठकों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संबंध में न केवल आधारभूत जानकारी देती है बल्कि उसके दर्शन, उसकी कार्यपद्धति और उसके उद्देश्य का समीप से परिचय कराती है। आरएसएस के संघर्षपूर्ण इतिहास के पृष्ठ भी हमारे सामने खोलती है। समाज, देश और लोकतंत्र को मजबूत बनाने में संघ के कार्यों का विवरण भी देती है। पूर्व में यह पुस्तक अंग्रेजी में ‘सीक्रेट्स ऑफ आरएसएस डिमिस्टिफायिंग-संघ’ शीर्षक से आई थी, जिसे बहुत स्वागत हुआ। हिन्दी जगत में ऐसी पुस्तक की आवश्यकता थी, इसलिए यहाँ भी यह भरपूर सराही जाएगी। पुस्तक का प्रकाशन ब्लूम्सबरी भारत ने किया है। पुस्तक में लगभग 350 पृष्ठ हैं और इसका मूल्य 599 रुपये है।
(लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल में सहायक प्राध्यापक हैं और विश्व संवाद केंद्र, भोपाल के कार्यकारी निदेशक हैं।)