नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) अपनी संगठनात्मक ताकत को बढ़ाने के मामले में पहले से कहीं ज्यादा शक्तिशाली बनकर उभरा है. हरियाणा और महाराष्ट्र में हाल ही में भाजपा को मिली सफलताएं इसके बढ़ते प्रभाव और जमीनी स्तर पर पहुंच को दर्शाती हैं. अपने बेजोड़ जमीनी नेटवर्क का लाभ उठाकर, संघ ने न केवल हिंदुत्व के मुद्दे पर मतदाताओं की नाज़ुक भावनाओं को छुआ है, बल्कि स्थानीय मुद्दों को निर्णायक चुनावी नैरेटिव्स (आख्यान) में बदल दिया है.
संघ ने ‘बूथ पर विश्वास’, ‘जाति से ऊपर उठकर वोट करें’ और हिंदुत्व के जरिए महाराष्ट्र में भाजपा की जीत को सुनिश्चित किया. आरएसएस के वरिष्ठ पदाधिकारियों ने दावा किया कि संगठन ने अपने ‘सजग रहो’ अभियान को व्यक्तिगत रुप से घर-घर जाकर संपर्क कार्यक्रम में बदल दिया, जिसने जातिगत सीमाओं से परे हिंदू मतदाताओं को संगठित करने में अद्भुत काम किया.
हालांकि, विपक्षी और सत्तारूढ़ गठबंधन के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी रहा. लेकिन इन सबके बीच महिला मतदाताओं को लक्षित करने वाली विशिष्ट नीतिगत पहल जैसे- ‘लाडली बहना’ जैसी योजनाओं सहित अन्य कारकों ने भी भाजपा की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, लेकिन आरएसएस के बूथ स्तर के काम ने स्थिति को बदल दिया.
RSS का ये मूव सबसे बड़ा टर्निंग पॉइंट रहा. भाजपा की जीत की रणनीति बनाने में शामिल रहे आरएसएस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा कि बूथ-टू-बूथ ‘संपर्क’ ने सफलता की कहानी लिखी है, क्योंकि आरएसएस ने ‘स्पष्ट इस्लामी आक्रामकता (Visible Islamic Aggression)’, अवैध माइग्रेशन के कारण ‘आजीविका का नुकसान’ और ‘जातिगत रेखाओं से ऊपर उठकर हिंदुओं को एकजुट होने के लिए प्रेरित करने’ के मुद्दों को उठाया, जिससे हिंदुओं को संगठित करने में मदद मिली.
सजग रहो: जमीनी स्तर पर लामबंदी का जादू
महाराष्ट्र वो राज्य है, जहां से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की उत्पत्ति हुई और ये एक संगठन के रुप में आगे बढ़ा. महाराष्ट्र के नागपुर में संघ का मुख्यालय भी है. ऐसे में संघ के कार्यकर्ताओं ने एक बार फिर साबित कर दिया कि वे राजनीतिक और सांस्कृतिक रूप से क्यों एक मजबूत ताकत बने हुए हैं. साथ ही, वे कैसे हिंदुत्व की कहानियों को स्थानीय स्तर पर पहुंचाकर अपने वैचारिक राजनीतिक मोर्चे, भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं.
मुंबई के औद्योगिक केंद्रों से लेकर विदर्भ के कृषि क्षेत्रों तक, आरएसएस कार्यकर्ताओं द्वारा जमीनी स्तर पर लामबंदी ने हिंदू वोटों को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिसने हाल ही में स्थापित जातिगत सीमाओं को तोड़कर एक नया चुनावी गणित बनाया है.
RSS की राष्ट्रीय कार्यकारी समिति के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा, “संघ का नेटवर्क बूथ स्तर पर चुपचाप काम कर रहा था, साथ ही ‘सजग रहो’ मंत्र के साथ घर-घर तक पहुंच सुनिश्चित की जा रही थी. इस दौरान हम हिंदुओं को एकजुट करने में सफल रहे, खासकर विदर्भ, कोंकण, मराठवाड़ा और पश्चिमी महाराष्ट्र जैसे क्षेत्रों में, जहां जाति फैक्टर अक्सर मतदान पैटर्न को निर्धारित करती हैं.”
उन्होंने कहा, “हिंदुत्व के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करके और सड़कों पर दिखाई देने वाली मुस्लिम आक्रामकता से जुड़ी चिंताओं के बारे में संबोधित करके, संघ ने मिडिल क्लास अपने पक्ष में मोड़ने का काम किया. इससे महत्वपूर्ण 4-5 प्रतिशत वोट भाजपा से जुड़ गए और उसका आधार अपने पारंपरिक वोटर्स के आधार और गढ़ों से ज्यादा हो गया.”
हरियाणा चुनाव के नतीजों का विश्लेषण भी यह दर्शाता है कि कैसे ग्रामीण और शहरी इलाकों में RSS की पैठ ने शासन और जमीनी स्तर की चिंताओं के साथ-साथ विरोधी जातियों के बीच की खाई को सफलतापूर्वक पाट दिया और भाजपा को अपने राजनीतिक नतीजों को आकार देने में मदद की. बेरोजगारी, जातिगत या सांस्कृतिक पहचान से शुरू होने वाले क्षेत्रीय असंतोष का फायदा उठाने की संगठन की क्षमता ने लोगों को भाजपा के पक्ष में मोड़ा. संघ का अनुशासित और कैडर-संचालित दृष्टिकोण ने यह भी सुनिश्चित किया कि मुद्दे न केवल उठाए जाएं, बल्कि उनका समाधान भी किया जाए.
इसी तरह, महाराष्ट्र में संघ ने रणनीतियों को फिर से निर्धारित करने में अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया, जिसका असर इस चुनाव में भाजपा गठबंधन को प्रचंड बहुमत के रुप में देखने को मिला. भाजपा में गठबंधन चुनौतियों के बावजूद, संघ का जमीनी स्तर का कार्य मतदाताओं को संगठित करने में सहायक रहा है. इसने मराठी गौरव, कृषि संकट, वित्तीय योजनाओं के साथ महिला मतदाताओं की सहायता और युवाओं की आकांक्षाओं को आकर्षित करने वाले आख्यानों को बढ़ावा दिया है.
शहरी लोगों के चिंता को यूं किया पक्ष में
RSS ने देश की आर्थिक राजधानी मुंबई के कई क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे, बेरोजगारी के मुद्दों, आर्थिक स्थिरता और कानून-व्यवस्था से जुड़ी मध्यम वर्ग की चिंताओं का फायदा उठाया. संघ की ‘ऑर्गनाइजर’ मैगजिन के संपादक प्रफुल केतकर ने कहा, “कांग्रेस और उद्धव ठाकरे की शिवसेना द्वारा अपनाए गए उद्योग-विरोधी और व्यापार-विरोधी रुख ने शहरी मतदाताओं को वास्तव में नाराज कर दिया था.
इसके विपरीत, मुंबई पेरिफेरल रोड परियोजना और अन्य विकास कार्य सहित लाडली बहना जैसी लक्षित नीतियों ने महिलाओं और शहरी गरीबों सहित अन्य लोगों को भाजपा के पक्ष में मोड़ने का काम किया.” बता दें कि प्रफुल केतकर महाराष्ट्र चुनावों से पहले और चुनावों के दौरान जमीनी स्तर पर आरएसएस (RSS) के प्रभाव का अध्ययन और विश्लेषण करने के लिए राज्य में कई दिन बिताए.