सौरभ कुमार
केरल में मछली पकड़ने और सिक्स पैक एब्स दिखाने के बाद राहुल गाँधी राजनीति में वापस आ गए हैं. घूम फिर के आये तो आते ही अपने दिमाग में जमा विध्वंसकारी जहर उड़ेलने लग गए. अर्थशास्त्री कौशिक बसु के साथ हो रही वीडियो चर्चा में कांग्रेस के राजकुमार राहुल गाँधी ने कहा कि “आरएसएस ने अपने स्कूलों के जरिए हमला शुरू किया। जैसे पाकिस्तान के कट्टरपंथी इस्लामवादी अपने मदरसों का इस्तेमाल करते हैं, काफी कुछ उसी तरह आरएसएस अपने स्कूलों में एक खास तरह की दुनिया दिखाता है।”
राहुल गाँधी शिशु मंदिर की तुलना पाकिस्तान के मदरसों से कर के आरएसएस नहीं बल्कि उन लाखों माता-पिता का अपमान कर रहे हैं जो अपने बच्चों को शिक्षा और संस्कार के लिए शिशु मंदिर में भेजते हैं. राहुल गाँधी की आँखों पर पड़ा नफरत का चश्मा इस कदर हावी हो चुका है कि वो राजनीतिक लाभ के लिए भारत के बच्चों की तुलना पाकिस्तानी आतंकवादियों से कर रहे हैं.
राहुल गाँधी कह रहे हैं कि “आरएसएस अपने स्कूलों में एक खास तरह की दुनिया दिखाता है।” जी हाँ! सही कह रहे हैं, आरएसएस अपने अपने स्कूलों में एक खास तरह की दुनिया दिखाता है। वो दुनिया जहाँ अपने पूर्वजों और संस्कृति का अपमान नहीं बल्कि उन पर गर्व करना सिखाया जाता है. एक ऐसी दुनिया जहाँ सुबह उठते हीं रॉक और पॉप म्यूजिक नहीं, अपने माता-पिता और धरती माँ को प्रणाम करना सिखाया जाता है. एक ऐसी दुनिया जहाँ छात्र एक दूसरे को भैया-दीदी कह कर संबोधित करते हैं, एक ऐसी दुनिया जहाँ राष्ट्र के लिए अपना सर्वस्व समर्पण करने की प्रेरणा दी जाती है.
खैर राहुल गाँधी संसद के रिकॉर्ड में स्वयं कह चुके हैं कि “मुझे सब नहीं आता, मुझसे गलती हो जाती है”, तो उनके इस दुर्भावनापूर्ण बयान को भी उनकी गलती मानते हुए हम एक बार उन्हें बता देते हैं कि जिन छात्रों की तुलना वो मदरसों में पलने वाले आतंकवादियों से कर रहे हैं वो इस समाज के लिए क्या कर रहे हैं, जिन्हें वो कट्टरपंथी बता रहे हैं उनके मन की भावना क्या है. विद्या भारती से पढ़े छात्र आज पूरी दुनिया में अपना परचम लहरा रहे हैं, समाज जीवन का कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है जहाँ विद्या भारती के छात्र न हों. ऐसे में उनकी सारी उपलब्धियों और सेवाओं की सूची तो राहुल गाँधी द्वारा अपने सम्पूर्ण जीवन में कहे गए शब्दों से भी ज्यादा है, तो हम सिर्फ कोरोना काल में विद्या भारती और उसके छात्रों एवं शिक्षकों द्वारा मध्यभारत प्रान्त किये गए कार्यों को चर्चा करेंगे. राहुल गाँधी एक बार इस पर नजर डालें तो शायद उनके ज्ञान और दृष्टि दोनों में कुछ बढ़ोतरी हो.
सेवा कार्यों के लिए सौंप दी भवन और वाहनों की चाभी
कोरोना के शुरुआत में कोई भी सरकार व्यवस्थाओं के लिए तैयार नहीं थी, अधोसंरचना की कमी थी और हजारों की संख्या में लोगों को आइसोलेशन में रखना था. इस समय राहुल गाँधी राजनीति में लगे थे लेकिन वहीँ विद्याभारती समाज की पीड़ा में साथी था. विद्या भारती ने मध्य भारत प्रांत के 16 जिलों के 80 से ज्यादा विद्यालयों को शासन की सहायता हेतु पूरे तरीके से खोल दिया. इस विद्यालय परिसरों का इस्तेमाल प्रशासन में आइसोलेशन सेण्टर के तौर पर किया.
लॉकडाउन में हीं देश ने एक और संकट देखा, जब लाखों की संख्या में प्रवासी श्रमिक अपने घरों की तरफ लौटने लगे. लोगों का समंदर सड़कों पर उतरा था, प्रियंका गाँधी उस समय उत्तरप्रदेश में राजनीति की बिसातें जमा रही थीं वहीँ दूसरी तरफ सिर्फ मध्यभारत प्रान्त में विद्याभारती के लगभग 800 छात्र, 1100 स्थानों पर लोगों की सहायता के लिए तैनात थे. विद्याभारती ने अपनी बसों से प्रवासी श्रमिकों को उनके गंतव्य तक पहुचायां. अपने भवनों को विश्राम गृह में बदल दिया. 82,000 से ज्यादा लोगों को भोजन करवाया, 15,000 खाने के पैकेट बांटे. प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री राहत कोष में 03 लाख रूपए से ज्यादा की सहायता दी.
जनजातीय अंचलों में पहुँचाए मास्क
विद्या भारती अपने स्कूलों में ऐसी दुनिया दिखाता है, जिसमें मानव, मानव की सेवा के लिए सदैव तत्पर रहे. कोरोना काल में जब अचानक लाखों की संख्या में मास्क की आवश्यकता पड़ी तो संस्था से जुडी शिक्षिकाएं में अपने घरों में बैठकर निर्धन असहाय नागरिकों के लिए मास्क बनाने का कार्य करने लगीं। कुछ अन्य शिक्षिकाएं इन मास्कों को सेवा बस्तियों में जाकर नागरिकों के मध्य वितरित करने की भी जिम्मेदारी उठाई। इसी प्रकार से सरस्वती शिशु मंदिर के शिक्षक भी बस्तियों में जाकर नागरिकों के बीच कोरोना से बचाव करने के लिए जन जागरूकता अभियान चला रहे थे। विद्या भारती की शिक्षिकाओं द्वारा लाखों मास्क बनाये और वितरित किये गए.
लॉकडाउन में घर-घर जाकर बच्चों को पढाया
कोरोना वायरस के कारण जब देश भर में लॉकडाउन लगाया गया तो एक सबसे बड़ी चिंता तो सामने आई की बच्चों की पढाई कैसे होगी? शहरों में तो डिजिटल माध्यमों से पढाई शुरू हो गयी लेकिन वनवासी, ग्रामीण अंचलों का क्या? ऐसी स्थिति में लोग जब संक्रमण के डर से अपने घरों से नहीं निकल रहे थे, तब विद्या भारती के शिक्षण संस्थानों में कार्यरत लगभग 2365 आचार्य पूरे प्रांत भर में मोहल्ला पाठशाला के माध्यम से लगभग 40,000 विद्यार्थियों को पढ़ा रहे थे.
यही नहीं बच्चों की शैक्षणिक गुणवत्ता में सुधार आए इसके लिए लगातार बच्चों से टेस्ट लिए गए और सोशल मीडिया के माध्यम से भी कई प्रकार की प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिताएं आयोजित करके बच्चों का सामाजिक व धार्मिक ज्ञान बढ़ाने का प्रयास किया गया.
लेकिन राहुल गाँधी की आँखें उनका साथ नहीं दे रहीं, नफरत की परत इतनी मोटी हो गयी है कि उन्हें इन सेवा भावी छात्रों और आचार्य/दीदियों में उन्हें आतंकवादी दिखाई दे रहे हैं. या हो सकता है उनके परेशानी की वजह कुछ और हो, दर्द की वजह कुछ और हो. कहीं ये तो नहीं कि विद्या भारती के संस्कारों से अब मिशनरी स्कूलों का षडयंत्र असफल हो रहा है? कहीं ये तो नहीं कि विद्या भारती के संस्कारयुक्त छात्र इनके जाल में नहीं फँस रहे हैं?