गौरव अवस्थी
गुरु केवल वह नहीं जो किताबी ज्ञान दे. वह भी नहीं जो परिवर्तन संवर्धित कर दे. गुरु तो हर वह जीव है जो कोई गुर दे दे या सीख. लॉकडाउन के दौरान आंखों के सामने से गुजरे दो ऐसे वाकए आंखें खोलने वाले रहे. दोनों दो तरह के वाकए बेजुबानो से जुड़े हुए हैं. यह बेजुबान सीख दे गए कि संकट में फंसे अपनों के लिए आखिर तक कैसे जूझा जाता है? कैसे किया जाता है? “विचार” को “आचार” में उतारकर दूसरे को शिक्षित-दीक्षित करने वाला ही “असली गुरु” का दर्जा प्राप्त करने का अधिकारी माना जाता है. आज गुरु पूर्णिमा के अवसर विशेष पर ऐसे ही 2 गुरुओं का जिक्र जरूरी है.
- वह सुबह का वक्त था. काले और मटमैले भूरे रंग वाली मैना चिड़ियों का एक झुंड दाना-पानी की तलाश में उड़ते-उड़ते घर के बाहर के बिजली के तारों पर आकर बैठा. अचानक एक चिड़िया करंट से फड़फड़ा कर नीचे गिर गई. नीचे कुत्तों का झुंड उस चिड़िया पर झपट रहा था. सभी चिड़िया कुत्तों पर अपनी अपनी तरह से प्रहार कर साथी चिड़िया की जान बचाने को आखिर तक प्रयास करती रही. सवाल यह नहीं कि उसकी जान बची है नहीं सवाल यह है कि प्रयास और प्रयास… यह प्रयास ही तो अपने हाथ में है और साथी चिड़ियों ने यही सिखाया इस संकट में साथी का साथ आखिर तक निभाना.
- खाने की तलाश में अक्सर बंदरों का एक झुंड मोहल्ले और घर की तरफ से होकर आता जाता है. कहां से आता और कहां जाता? इसका कोई अनुमान हम आज 10 वर्षों में नहीं कर पाए. इसमें बुजुर्ग बंदर भी होते हैं और छोटे-छोटे बच्चे भी. किसी-किसी बंदरिया के पेट और पीठ से चिपके दो-दो बच्चे भी दिखते हैं. लॉकडाउन के दरमियां बंदरों का यह झुंड फिर खाने की तलाश में निकला. न जाने कैसे! एक बंदर का बिल्कुल छोटा सा बच्चा दोमंजिले से अचानक नीचे आकर गिरा. यकीन मानिए अपने उस बच्चे को बचाने के लिए देखते ही देखते दो मंजिले से बंदरिया ने पलक झपकते छलांग लगाई और अचेत गिरे पड़े बच्चे को उठाकर फिर दोमंजिले पर जा पहुंची. यह उड़ने और छलांग लगाने वाले बेजुबान हमें सीख दे गए कि संकट में फंसे अपने लोगों को बचाने की जद्दोजहद या ज़िद अपनी जान से ज्यादा कैसे हो सकती है? गुरु पूर्णिमा पर इन अनाम और बेजुबान गुरुओं को भी नमन है.
जान बचाने की यह कोशिश अगर इंसान भी करे तो न जाने कितनी जिंदगी असमय काल के मुंह में जाने से बच जाएं. वैसे अभी-अभी गुजरी महामारी की दो लहरों के बीच तमाम ऐसे किरदार सामने आए, जिन्होंने अपने या गैर का फर्क किए बिना संकट में फंसे लोगों की मदद कर अनुकरणीय मिसाले पेश की, पर प्रतिशत के चश्मे से देखने पर ऐसे प्रयास नाकाफी ही कहे जाने चाहिए. फिर भी ऐसे अनुकरणीय कार्य करने वाले लोग भी आज के इस दौर में “गुरु” समान ही है. अपने-अपने हिस्से का अपने-अपने हिस्से से दूसरों का भला करने वाले इन महानुभावों ने भी सीख दी है कि धर्म-जाति-क्षेत्र से ऊपर उठकर कैसे सबके भले की सोचे और सबके भले की करें.
जीवन के हर मोड़ और कदम पर छोटी-बड़ी सीख देते चलने वाले ऐसे सभी नामधारी और अनाम जीवो-प्राणियों, छोटे और बड़े सभी गुरुओं का गुरु पूर्णिमा पर सादर वंदन-अभिनंदन.