महान संत शिरोमणी श्री रविदास जी महाराज की जयंती पर विशेष लेख
संत श्री रविदास ने सामाजिक समरसता के लिए अपना जीवन अर्पित किया था
ग्वालियर : “मन चंगा तो कठौती में गंगा”, ये कहावत आपने जरूर सुनी होगी। क्या आप जानते हैं ये कहां से आई, इसके पीछे एक दिलचस्प घटना है, जिसका संबंध मिलजुल कर रहने, भेदभाव मिटाने और सबके भले की सीख देने वाले सामाजिक समरसता के महान संत शिरोमणी श्री रविदास जी महाराज से है। प्रति वर्ष माघ पूर्णिमा के दिन संत रविदास जी महाराज की जयंती मनाई जाती है। आपका जन्म सम्वत् 1433 में माघ पूर्णिमा रविवार के दिन वाराणसी के पास गोवरधनपुर गांव में हुआ था। इस स्थान को आज श्री गुरु रविदास जन्म स्थान के रूप में जाना जाता है। आपके माता का नाम श्रीमती कलसा माता एवं पिता का नाम श्री संतोखदासजी था।
संत श्री रविदास जी महाराज ने बचपन से ही साधु संतो की संगति में पर्याप्त व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त किया। वे जूते बनाने का काम किया करते थे और अपना काम पूरी लगन तथा परिश्रम से करते थे और समय से काम को पूरा करने पर विशेष ध्यान देते थे। संत श्री रामानन्द जी महाराज के शिष्य बनकर उन्होंने आध्यात्मिक ज्ञान अर्जित किया। संत श्री रविदास जी महाराज ने स्वामी श्री रामानन्द जी महाराज को, श्री कबीर साहब जी के कहने पर, अपना गुरु बनाया था, जबकि उनके वास्तविक आध्यात्मिक गुरु श्री कबीर साहब जी ही थे। उनकी समयानुपालन की प्रवृत्ती तथा मधुर व्यवहार के कारण उनके सम्पर्क में आने वाले लोग उनसे बहुत प्रसन्न रहते थे। प्रारम्भ से ही संत श्री रविदास जी महाराज बहुत परोपकारी तथा दयालू थे और दूसरों की सहायता करना उनका स्वभाव बन गया था। साधु-संतों की सहायता करने में उनको विशेष आनंद मिलता था। वे उन्हें प्रायः मूल्य लिए बिना जूते भेंट कर दिया करते थे। उनके इस स्वभाव के कारण उनके माता-पिता अक्सर उनसे अप्रसन्न रहते थे।
संत श्री रविदास जी महाराज भारत के उन चुनिंदा महापुरुषों में से एक हैं जिन्होंने अपने वचनों से सारे संसार की एकता और समरसता पर ज़ोर दिया। असमानता की भावना और समाज में जाति पंथ और सम्प्रदाय की मुश्किल परिस्थितियों में अपने अनुयायियों को और समाज बंधुओं को हिन्दू बनाए रखना उनके लिए बड़ी चुनौती थी। वह भारत में इस्लाम के आक्रमण का काल था साथ ही हिन्दू समाज को प्रताड़ित करने का भी वह कालखंड था ऐसे समय में महान संत श्री रामानन्द जी महाराज की प्रेरणा व आशीर्वाद प्राप्त कर समाज में समरसता की बहार लाने का काम संत श्री रविदास जी महाराज ने बख़ूबी किया। आपने समाज में फैली कुरीतियों जैसे जात-पात के अंत के लिए जीवन भर काम किया। संत श्री रविदास जी महाराज की अनूप महिमा को देख कई राजा और रानियां आपकी शरण में आकर भक्ति मार्ग से जुड़े। संत श्री रविदास जी महाराज के भक्ति मार्ग पर आगे बढ़ते हुए निर्गुण धारा के उपासक होने के बाद भी सगुण धारा की उपासक मीराबाई ने आपको अपना गुरु मानकर अपनी आध्यात्मिक उन्नति की एवं मोक्ष प्राप्त किया।
संत श्री रविदास जी महाराज को लेकर कई कहानियां मशहूर हैं। एक कथा के अनुसार, एक बार उनके एक मित्र की मौत हो गई थी। जब ये बात उनको पता चली तो वे बहुत दुखी हो गए उन्होंने अपने दोस्त के शव के पास आकर कहा उठो मित्र ये समय सोने का नहीं है, मेरे साथ खेलने चलो। इतना सुनकर उनका मृत साथी उठकर खड़ा हो गया। बताया जाता है कि संत श्री रविदास जी महाराज के पास बचपन से ही कई अलौकिक शक्तियां थीं। इसी प्रकार, एक और प्रचिलित कथा के अनुसार एक बार एक सदना कसाई उनकी हत्या करने के उद्देश्य से उनके पास आया था परंतु संत श्री रविदास जी महाराज के पद और वाणी सुनकर उस कसाई का हृदय परिवर्तन हो गया और वह उनका शिष्य बन गया और उसने अपना मुस्लिम धर्म छोड़कर रविदास जी का अनुयायी बनना स्वीकार कर लिया और जीवन भर इसका पालन भी किया। संत श्री रविदास जी महाराज के निर्मल मन और वाणी का इतना व्यापक प्रभाव था कि सभी अनुयायी उसे बड़े भक्ति के साथ सुनकर अपने को कृत कृत धन्य मानते थे।
भगवान श्री राम और श्री कृष्ण की भक्ति में लीन संत श्री रविदास जी महाराज धीरे धीरे लोगों की भलाई करते गए और संत बन गए। आपको विद्वानों की संगत में रहने एवं साधुओं के साथ वक़्त बिताने में बड़ा आनंद आता था। एक बार आस पास के लोग गंगा स्नान के लिए जा रहे थे तो किसी ने आपको भी गंगा स्नान के लिए चलने को कहा। अपने काम में मग्न संत श्री रविदास जी महाराज ने उन्हें एक सुपारी दी और कहा कि मेरी तरफ से ये मां गंगा को अर्पित कर देना। जैसे ही उस शख़्स ने वह सुपारी मां गंगा को अर्पित की उसे सोने का एक कंगन मिल गया। उस व्यक्ति के मन में लालच आ गया उसने कंगन संत श्री रविदास जी महाराज के बजाय, इनाम की लालसा में, राजा को दे दिया। रानी ने उस शख़्स से वैसा ही एक और कंगन लाने को कह दिया। राजा ने आदेश दिया कि यदि ये इच्छा पूरी नहीं हुई तो उसे दंड मिलेगा। परेशान व्यक्ति ने जब पूरी कहानी संत श्री रविदास जी महाराज को बताई तो उन्होंने नाराज़ होने के बजाय पूरे मन और शक्ति से मां गंगा को याद किया, अपनी कठौती में हाथ डाला और एक कंगन उसमें से नकालकर उस व्यक्ति को दे दिया और कहा कि मन चंगा तो कठौती में गंगा।
संत श्री रविदास जी महाराज का विश्वास था कि ईश्वर की भक्ति के लिए सदाचार, परहित भावना तथा सदव्यवहार का पालन करना अत्यावश्यक है। अभिमान त्याग कर दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करने और विनम्रता तथा शिष्टता के गुणों का विकास करने पर आपने बहुत बल दिया। आपके मत के अनुसार, ईश्वर की भक्ति बड़े भाग्य से प्राप्त होती है। अभिमान शून्य रहकर काम करने वाला व्यक्ति जीवन में सफल रहता है जैसे कि विशालकाय हाथी शक्कर के कणों को चुनने में असमर्थ रहता है जबकि लघु शरीर की चींटी इन कणों को सरलतापूर्वक चुन लेती है। इसी प्रकार, अभिमान तथा बड़प्पन का भाव त्यागकर विनम्रता पूर्वक आचरण करने वाला मनुष्य ही ईश्वर का भक्त हो सकता है। संत श्री रविदास जी महाराज की वाणी भक्ति की सच्ची भावना, समाज के व्यापक हित की कामना तथा मानव प्रेम से ओत प्रोत होती थी। इसलिए आपके वचनों का श्रोताओं के मन पर गहरा प्रभाव पड़ता था। आपके भजनों तथा उपदेशों से लोगों को ऐसी शिक्षा मिलती थी जिससे उनकी शंकाओं का संतोषजनक समाधान हो जाता था और लोग स्वतः उनके अनुयायी बन जाते थे। उनकी वाणी का इतना व्यापक प्रभाव पड़ा कि समाज के सभी वर्गों के लोग उनके श्रद्धालु बन गए।
आज भी संत श्री रविदास जी महाराज के उपदेश समाज के कल्याण तथा उत्थान के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। आपने अपने आचरण तथा व्यवहार से यह प्रमाणित कर दिया है कि मनुष्य अपने जन्म तथा व्यवसाय के आधार पर महान नहीं होता है। विचारों की श्रेष्ठता, समाज के हित की भावना से प्रेरित कार्य तथा सदव्यवहार जैसे गुण ही मनुष्य को महान बनाने में सहायक होते हैं। इन्हीं गुणों के कारण संत श्री रविदास जी महाराज को अपने समय के समाज में अत्यधिक सम्मान मिला और इसी कारण आज भी लोग इन्हें श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हैं। संत श्री रविदास जी महाराज के 40 पद गुरु ग्रंथ साहब में भी मिलते हैं जिसका सम्पादन गुरु श्री अर्जुनसिंह देव जी महाराज ने 16वीं सदी में किया था।
संत श्री रविदास जी महाराज का जीवन प्रेरणा का एक बेमिसाल स्त्रोत है। उनका जीवन प्यार, सच्चाई और सद्भाव की सीख देता है। संत श्री रविदास जयंती पर उनके अनुयायी पवित्र नदियों में स्नान कर उन्हें याद करते हैं। प्रति वर्ष उनके जन्म स्थान पर एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन होता है। जिसमें लाखों लोग अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं, उनके द्वारा रचित दोहों का गान करते हैं और भजन कीर्तन करते हैं। आज आपके करोड़ों अनुयायी भारत के साथ साथ विदेशों में भी निवासरत हैं। आपके विचारों ने लोगों के दिलों में आपको हमेशा हमेशा के लिए अमर कर दिया है।
प्रहलाद सबनानी,
सेवा निवृत उप-महाप्रबंधक,
भारतीय स्टेट बैंक