वॉशिंगटन l आपका मोबाइल, टीवी, जहाज, ट्रांसपोर्ट, इंटरनेट सबकुछ एक ही चीज की वजह से चलते हैं. इस वस्तु का नाम है सैटेलाइट. यह बेहद तेजी से बढ़ रहे हैं. धरती के चारों तरफ एक जाल बना रहे हैं. इनसे फायदा तो है लेकिन इनसे नुकसान भी है. होता आया है और आगे भी होगा ही. दुनिया का पहला सैटेलाइट 64 साल पहले छोड़ा गया था. तब से लेकर अब तक धरती के चारों तरफ करीब 7500 सैटेलाइट्स मौजूद हैं. यानी हर साल करीब 117 सैटेलाइट छोड़े गए. आइए समझते हैं इनसे किस तरह का नुकसान हो सकता है? फायदे तो आप जानते ही हैं.
यूनिवर्सिटी ऑफ मैसाचुसेट्स में फिजिक्स की प्रोफसर सुप्रिया चक्रबर्ती ने बताया कि ये बात है साल 1957 की जब सोवियत यूनियन ने पहला इंसान द्वारा निर्मित सैटेलाइट स्पुतनिक (Sputnik) अंतरिक्ष में लॉन्च किया था. इसके बाद से साल 2010 तक दुनियाभर के देशों द्वारा हर साल करीब 10 से 60 सैटेलाइट लॉन्च किए जा रहे थे. लेकिन 2010 के बाद तो जैसे सैटेलाइट्स की बाढ़ आ गई.
प्रो. सुप्रिया के मुताबिक 2010 के बाद 2020 तक धरती की निचली कक्षा में 1300 से ज्यादा सैटेलाइट्स पहुंचाए गए. सिर्फ इसी साल यानी 2021 में सितंबर तक 1400 से ज्यादा सैटेलाइट्स लॉन्च किए गए. तो कुल मिलाकर इस समय धरती की निचली कक्षा में सितंबर 2021 तक 7500 से ज्यादा उपग्रह चक्कर काट रहे हैं. यह आंकड़ें संयुक्त राष्ट्र के आउटर स्पेस ऑब्जेक्ट्स इंडेक्स में दर्ज हैं.
अगले कुछ दशकों में धरती के निचली कक्षा में सैटेलाइट्स की मात्रा कई गुना तेजी से बढ़ने की संभावना है. निचली कक्षा की अधिकतम ऊंचाई 2000 किलोमीटर है. क्योंकि अब निजी कंपनियां अपना खुद का बड़ा सैटेलाइट नेटवर्क बनाने की व्यवस्था में लग गई हैं. सबके पास अपने हजारों सैटेलाइट्स लॉन्च करने की योजना है. ताकि ज्यादा तेज इंटरनेट नेटवर्क और अन्य सुविधाएं मिलें. जैसे- क्लाइमेट चेंज पर नजर रखी जा सके.
द यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया के एस्ट्रोनॉमर आरोन बोले ने कहा कि धरती के चारों तरफ सैटेलाइट्स भेजने की होड़ इसलिए ज्यादा हो गई क्योंकि कीमतें कम होती जा रही हैं. स्पेसएक्स, वनवेब, अमेजन और स्टारनेट/जीडब्ल्यू ने मिलकर 65 हजार सैटेलाइट्स लॉन्च करने की योजना बना रखी है. स्पेसएक्स और वनवेब ने लॉन्च करना शुरु कर दिया है. इस समय कुल मिलाकर निजी कंपनियों और देशों के द्वारा कुल मिलाकर 1 लाख सैटेलाइट्स लॉन्च करने का प्लान दे रखा है.
अक्टूबर 2021 में रवांडा ने खुद के सैटेलाइट्स का नक्षत्र बनाने की योजना बनाई है. जिसे वहां की सरकार ने सिनामॉन (Cinnamon) रखा है. ये 3.20 लाख सैटेलाइट्स छोड़ना चाहते हैं. हालांकि, यह बात स्पष्ट नहीं हुई है कि रवांडा का प्रोजेक्ट असल में कब सामने आएगा. लेकिन रवांडा स्पेस एजेंसी ने इस प्रोजेक्ट को शुरु करने की अनुमति अंतरराष्ट्रीय संस्था ने मांगी हैं. इसकी जानकारी रवांडा की सरकार ने ट्वीट करके दिया भी है.
अंतरिक्ष में बढ़ते सैटेलाइट्स की वजह से ट्रैफिक जाम होगा. आपस में टकराने समेत कई तरह के खतरे होंगे. जिसके बारे में आरोन बोले और उनके साथी वैज्ञानिकों ने मई 2021 में एक रिपोर्ट दी थी, जो साइंटिफिक रिपोर्टस नाम के जर्नल में प्रकाशित हुई थी. आरोन ने कहा कि हमें अंतरिक्ष के लिए ट्रैफिक मैनेजमेंट सिस्टम को अत्याधुनिक बनाना होगा. दूसरी दिक्कत वैज्ञानिकों को ही होगी. उन्हें सुदूर अंतरिक्ष में नजर रखने के लिए इन सैटेलाइट्स की परत के उस पार देखना होगा. इसके अलावा रॉकेट लॉन्च और रॉकेट रीएंट्री की वजह से वायुमंडल में प्रदूषण फैलेगा.
लंदन स्थित नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम के अनुसार धरती के निचली कक्षा में इस समय 12.8 करोड़ सैटेलाइट के टुकड़े घूम रहे हैं. जिसमें से 34 हजार टुकड़े तो 4 से 10 इंच के हैं. ज्यादा सैटेलाइट्स जाने से अंतरिक्ष में कचरा जमा होने का खतरा और बढ़ जाएगा. ऐसे में किसी भी सैटेलाइट के सुरक्षित संचालन में दिक्कत आएगी. कचरे से टकराने से सैटेलाइट्स टूट सकते हैं. निचली कक्षा में ज्यादा देर तक रहने की वजह से सैटेलाइट्स पर अल्ट्रावॉयलेट किरणों का दुष्प्रभाव होगा, जिससे वह फट सकते हैं.
द गार्जियन वेबसाइट के अनुसार स्पेस इंडस्ट्री का विमानन उद्योग जैसे अन्य उद्योंगो की तुलना में कार्बन फुटप्रिंट बहुत कम है. एक रॉकेट लॉन्च के समय 220 से 330 टन कार्बन धरती के वायुमंडल में छोड़ता है. जबकि, एक बड़ा कॉमर्शियल विमान 2 से 3 टन कार्बन प्रति यात्री के हिसाब से छोड़ता है. यहां तो दुनिया में हर दिन लाखों उड़ानें होती हैं. सोचिए ये कितना प्रदूषण फैला रहे हैं, अगर ऐसे में ज्यादा रॉकेट छोड़े गए तो दिक्कत होगी.
इसके अलावा लाइट पॉल्यूशन होगा यानी रोशनी का प्रदूषण. कुछ दशकों बाद जब लाखों सैटेलाइट्स अंतरिक्ष में स्थापित होंगे तब आपको ये खुली आंखों से दिखाई देंगे. इनकी वजह से सूरज की रोशनी बाधित होगी. साथ ही इनके धातु और सोलर पैनल्स पर पड़ने वाली सूरज की तेज किरणें परावर्तित होकर धरती पर गिरेंगी. जिससे प्रकाश प्रदूषण होता है. आरोन बोली द्वारा लिखी गई एक रिपोर्ट के मुताबिक भविष्य में रात में मिलने वाली रोशनी का 8 फीसदी हिस्सा सैटेलाइट्स की चमक से मिलेगी.
खबर इनपुट एजेंसी से