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सती… एक राक्षसी प्रवृति

Jitendra Kumar by Jitendra Kumar
27/04/20
in साहित्य
सती… एक राक्षसी प्रवृति
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सीमा "मधुरिमा"सीमा ‘मधुरिमा’
लखनऊ


वो चिल्ला रही थी
शायद भयभीत थी l
उस मृत्यु से,
जो उसे वरण करना पड़ रहा था l
या कहिये जबरन दिया जा रहा था l
उस बूढ़े व्यक्ति की लाश के साथ,
जिसे पिछले कुछ वर्षो से उसका पति बताया गया था l
उसे बस इतना याद ज़ब छोटी थी,
कुछ लोग आये थे उसके बाबा के घर l
ढ़ोल बाजे के साथ,
और फिर कुछ मंत्रोच्चार के उपरांत उसे भेज दिया गया नए घर l
फिर कभी नहीं मिलना हुआ था उसका उस पति से,
उसे उसका चेहरा भी नहीं याद l

महल में घिरी रहती अनेकों दासियों से,
जो बन गयी थीं उसकी सखियाँ भी l
वो खुश थी गहने नए कपड़े सब कुछ तो था,
पर आज ….आज उसे बताया गया उसका पति मर गया l
और उसे उसके साथ ही सती होना हैं,
उसे बताया गया …वो मुक्त हो जायेगी जन्म मरण के चक्र से सदा के लिए l
वो पूजी जायेगी सती मैया के नाम से,
वो बेबस थी l
सभी से कर रही थी प्रार्थना हाथ जोड़ते हुए,
उसका विलाप बढ़ता जा रहा था l

पर उस भीड़ मेँ कोई इंसान नहीं था.
जो सुनता उसका रुदन l
सभी शायद देव पुरुष थे,
जो अप्रभावित थे उसकी पुकार से l
उसे उसके पति की चिता के साथ बाँध दिया गया,
और पढ़े गए बड़े बड़े मंत्र उच्च स्वरों में l

एक अजीब सा उत्सव जैसा माहौल,
और फिर मुखाग्नि दी गई l
एक मृतक को और एक जीवन को,
उसका विलाप करुण होता गया l
मंत्रोच्चार का स्वर और सती मैया की जय …सती मैया अमर रहें के जयघोष से वातावरण गूंज उठा,
आज फिर समय हुआ साक्षी इंसान के राक्षस होने का !

 

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