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Home साहित्य

व्यंग्य : साहित्यिक मंच और पुरस्कार का गणित

Jitendra Kumar by Jitendra Kumar
22/05/20
in साहित्य
व्यंग्य : साहित्यिक मंच और पुरस्कार का गणित

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सीमा "मधुरिमा"सीमा ”मधुरिमा”
लखनऊ


आज डिजिटल युग है l जिससे सोशल नेटवर्किंग पर तमाम साहित्यिक समूह उग आये हैं l कितना समय ही लगता है इन समूहों को उगने में, न खाद की जरूरत और न ही पानी सूरज की… बस जरूरत है कुछ लेखकों की जिनकी आजकल तो भरमार है… बस जरूरत है इन रातों रात उगे समूहों की सदस्य बनने की …फिर क्या कुछ लिखकर डालो कुछ इधर उधर से चेप कर …जल्द ही साहित्यिक पुरुष / स्त्री कहलाए जाने लगोगे…यकीन मानिये …जैसे आपको उत्सुकता है अपने नाम की इसी प्रकार इन समूहों को भी आवश्यकता है l इनके अपने नाम की…और फिर इस नाम की भाग दौड़ में शामिल ये समूह चार पांच माह बाद ही आपकी झोली में पुरस्कारों की बारिश करने लग जाते हैं …एवं आपके इनबॉक्स में तमाम तरह के लुभावने ऑफ़र जिसमें कुछ साँझा संकलनों छपने पर आपको सर्टिफिकेट देकर सम्मानित भी किया जाने का वादा ….बदले में एक छोटी से राशि …जो सहयोग के तौर पर ली जाने का दावा किया जाएगा l

आजकल के साहित्यिक समूह जी हुजूरी भी करवाने लगे हैं ….अगर उनकी हाँ में हाँ मिलाओ …तो आपका चयन करेंगे अन्यथा आपकी लेखनी में कितनी भी धार हो उनको कूड़ा ही दिखती हैं ….उस धार से आप अपने घर की सब्जियाँ चाहें तो काट लें ….आपकी कलम पर पकड़ कितनी भी मजबूत हो उनके किसी काम की नहीं आप …..अभी हाल ही में एक साहित्यिक सम्मान समारोह में सम्मिलित होने का सुअवसर मिला ….या कह सकते हैं मेरे लिए एक नया अनुभव हासिल करने का बहाना भी जिसमें तमाम दिग्गज साहित्कार का भी नाम था ……हुआ यह की उस समूह के संचालक का कहना था अगर आप समय से नहीं आओगे तो आपको सम्मानित नहीं किया जाएगा l

मेरे लिए ये एक धमकी जैसा लगा .पर क्या करूँ …साथ की कुछ दिग्गज महिला रचनाकार जिनकी लेखनी धूम मचा रही थी जो मेरी सखियाँ भी थीं सभी को सम्मानित होने का अवसर मिल रहा था और हमें उन्हें सम्मानित होते देखना लिखा था इसलिए जाने के मोह का परित्याग न कर सकी और अपने ऑफिस से थोड़ी जल्दी समय लेकर निकली ….पर कार्यक्रम स्थल तक पहुंचते पहुंचते देर हो गयी !
मेरे साथ जो जो रचनाकार गयी थीं उसे समूह संचालक ज्यादा जानते न थे हालाँकि सम्मानित उन्हें भी होना था ….उनका सम्मान तो सुरक्षित रहा ..पर मेरा उनके वादे के मुताबिक गोल हो गया …उफ्फफ्फ्फ़ मेरी धारदार लेखनी का यूँ अपमान मुझे बर्दास्त तो नहीं हो पा रहा था ….पर इसके पूर्व भी मेरी लेखनी कई स्तरीय पुरस्कार पा चुकी थी इसलिए मुझे ज्यादा परवाह नहीं थी … फिर एक एक कर सभी दिग्गज रचनाकारों को पुकारा गया ….और जैसा की उनका वादा था मेरा पुरस्कार गोल हो गया था इसलिए मेरा नाम रह ही गया …जब लिस्ट खत्म हो गयी तो मेरे साथ गयी रचनाकार जो मेरी सखी भी थी उसने जाकर संचालक से शिकायत कर दिया ….फिर क्या था …आनन फांनन में मेरी धारदार लेखनी को बिना नाम लिखा सर्टिफिकेट ही सौपते हुए फोटो खींच ली गयी ….और इस प्रकार मेरे लेखनी का सम्मान पूर्ण हुआ ….और फिर एक बार फिर से मुझे मेरी लेखनी में ब्लेंड से ज्यादा धार दिखने लग गया ….लगा की क्या क्या लिख डालू ये रामायण महाभारत को भी फेल कर दूँ कुछ ऐसा महाकाव्य लिख डालूँ क्योंकि एक और पुरस्कार के बोझ तले दब जो चुकी थी l

थोड़ी देर ही बाद ज़ब चाय नास्ता हो रहा था तब लोगों से पता चला की …मैं तो जबरिया सम्मानित भी हो गयी पर ऐसे कई लोग थे जो समय से नहीं पहुँचे तो उनके पुरस्कार रोक लिए गए थे …उनलोगों ने समूह के संचालक से प्रार्थना भी की और देर से आने के कारण माफ़ी भी मांगी ..वो लोग जो अपने घरों से पुरस्कार प्राप्ति का बताकर आये थे वो अब जाकर क्या एक्सप्लेन करेंगे …..पर वो टस से मस नहीं हुए … पर मेरे मन में कुछ प्रश्न उठने लगे …वो ये की अब समय आ गया हैं …ज़ब साहित्यकारों को अपने मान का ध्यान रखना ही होगा …समूह संचालक किसी को भी सम्मान तभी दे पाते हैं ज़ब उसे लेने वाले मौजूद होते हैं ….अगर सम्मान लेने वाले भी यूँही भागते दौड़ते किसी का भी सम्मान लेने नहीं जाएंगे तब उनको सम्मानित करने के लिए संचालक को भी दस बार सोचना पड़ेगा …सच तो ये हैं की सम्मान का सम्मान इन साहित्यकारों से ही हैं इसलिए इनका मान तो किसी भी तरह से कम नहीं होना चाहिए …आये दिन छोटे से छोटे साहित्यिक समूह भी बड़े से बड़े साहित्यकारों को सम्मानित करने लग जाते हैं इन मंचों को तो ये गर्व होना चाहिए की साहित्यकार अपना समय और पैसा खर्च करके आपका सम्मान लेने पहुँच रहा हैं ऐसे में इस प्रकार की मूर्खता पूर्ण शर्त की समय पर न आने पर सम्मान जब्त कर लिया जाएगा ….कोई नासमझ व्यक्ति ही कर सकता हैं ….और अगर सम्मान देना ही नहीं तो पहले ही उनके नामों की घोषणा वाल पर करके उनको आमंत्रित करके फिर बेइज्जती जैसी बात हैं और अगर समय की वाध्यता रखनी हैं तो इन सम्मानों का नाम साहित्यिक सम्मान न रखकर अर्ली बर्ड सम्मान रख देना चाहिए ….जो आजकल किसी भी सामाजिक उत्सव में दिए जाते हैं l

लेकिन अंतिम और सत्य बात तो ये हैं की साहित्यकारों में भी सम्मानित होने की भूख इतनी तीव्र गति से बढ़ती जा रही हैं जिसके कारण निष्पक्ष होकर रचना करना अवरुद्ध हो गया हैं …..तरह तरह की चाटुकरिता एव जोड़ तोड़ की राजनीती करने से वो बाज नहीं आ रहे हैं l

 

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