-प्रेमचंद की कहानी ‘सवा सेर गेहूं का मंचन, रो उठे दर्शक-
जहां कोरोना के चलते नाट्य प्रस्तुतियां स्वप्न हो गई थी वही इस नाटक की प्रस्तुति से नाटक जगत में उम्मीद की किरण दिखाई देती है। इस नाटक को देखने के लिए भारी मात्रा में लोग इकट्ठा हुए सोशल डिस्टेंसिंग के साथ मास्क और सैनिटाइजर की व्यवस्था थी। वहां पर उपस्थित सभी लोग मास्क लगाकर और सामाजिक दूरी के नियमों का पालन करते हुए दिखाई दिए। साहूकारों ,महाजनों द्वारा किसानों के शोषण का आईना दिखाती कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की कहानी ‘सवा सेर गेहूं’ का मंचन ‘इंसा सामाजिक साहित्यिक सांस्कृतिक संस्था’ की तरफ से सोमवार शाम 8:00 बजे ‘उत्तर मध्य सांस्कृतिक केंद्र’ प्रयागराज में किया गया। जिसका निर्देशन पंकज गौंड़ और नाट्य रूपांतरण अनुज ने किया।
प्रयागराज : यह कहानी अज्ञान के चलते महाजनों, साहूकारों द्वारा किसानों पर किए जा रहे शोषण को हमारे सम्मुख रखती है। यह गांव के दो भोले-भाले किसानों की कहानी है ।दो सगे भाई है शंकर( पंकज गौड़) और मंगल (ज्ञानेंद्र कुमार यादव) जिनकी जिंदगी का गुजर-बसर किसी तरह चल रहा था। घर में शंकर की पत्नी कमला (शीला) और शंकर का बेटा था। एक रात्रि घर में एक महात्मा आते हैं, उनके आथित्य में गेहूं की रोटी खिलाने के लिए शंकर विप्र महाजन के यहां सवा सेर गेहूं उधार लेते हैं और उसी के कर्ज में डूब जाते हैं । आगे चलकर मंगल और शंकर को षड्यंत्र द्वारा अलग करवा दिया जाता है। मंगल किसान से मजदूर हो जाता है और शंकर का दिन-ब-दिन कर्ज बढ़ता चला जाता है अंत में बंधुआ मजदूरी के लिए बाध्य होता है और तमाम समस्याएं देखने को मिलती है । अंततः शंकर कर्ज में डूबा मर जाता है। इसका नाट्य रूपांतरण अनुज कुमार ने बहुत ही धैर्य के साथ किया है । शुरू में नाटक में बैलगाड़ी में कुछ ग्रामीण लोगों को आंचलिक गीत के साथ यात्रा दिखाया गया है और यही लोग एक कहानी सुनाने के उद्देश्य से इस नाटक का मंचन करते हैं और अंत में भी यही लोग उसी गाड़ी से चले जाते हैं।
इस नाटक का निर्देशन पंकज गौड़ ने बड़े ही सावधानी से किया और खुद इस नाटक में शंकर के रूप में अभिनय भी किया । शीला ने ग्रामीण महिला कमला के के रूप में जबरदस्त अभिनय किया और ग्रामीण बोली, वेशभूषा, हाव भाव को प्रकट करने में कामयाब रही। सूत्रधार अभिषेक गिरी और शुभम सिंह ने दर्शकों पर प्रभाव डाला ।विप्र महाजन के रूप में अंकित कश्यप महाजनी व्यवस्थ ,उनकी अकड़ ,क्रोध ,कूटनीति आदि दिखाने में कामयाब रहे। उनका लठैत रोहित राज यादव ने अपने काम को ईमानदारी से निभाया । शंकर का छोटा भाई मंगल के रूप में ज्ञानेंद्र यादव ने अपने अभिनय, वेशभूषा, हाव भाव, डायलॉग डिलीवरी से सबको चौंका दिया । इस नाटक में ज्ञानेंद्र एक ऐसे पात्र के रूप में हैं,जो ईश्वर और अंधविश्वासों को नहीं मानता और इसी के चलते भाई से अलग होना पड़ता है। उसकी शादी नहीं हो रही है एक बार तो महात्मा से पूछ लेता हैं कि “हमार शादी कब होई”। पूरा हाल तब तालियों से गूंज उठता है जब मंगल अपनी भाभी कमला से कहता है “भाभी आप शांत रहा! ई हमर औ भैया का मैटर है” ज्ञानेंद्र कभी हंसाते हैं कभी रुलाते है ।
मजदूर के रुप में बोरा ढोते हुए ज्ञानेंद्र को देखते ही बनता है। ज्ञानेंद्र के अभिनय की शुरूआत इलाहाबाद विश्वविद्यालय के #यूनिवर्सिटी_थिएटर से हुई और यूनिवर्सिटी थिएटर के तमाम प्रस्तुतियों और बैकस्टेज की प्रस्तुतियों के बाद ज्ञानेंद्र इस स्तर पर पहुंचे । पूरे नाटक का संवाद दर्शकों को बांधे रखता है। पूरा संवाद ग्रामीण आंचलिक है और सभी पात्रों ने उस आँचलिकता को हमारे सम्मुख रखा है। नाटक में आया गीत हमें उस दौर की याद दिलाता है । निर्देशक ने बड़े ही सावधानी से इस कहानी को प्रस्तुत किया। इन सबके अतिरिक्त मंच निर्माण श्वेतांक मिश्रा, अभिषेक सिंह ने कियाऔर प्रत्यूष बरसने ने संगीत से नाटक में जान डाल दिया। प्रकाश परिकल्पना अनुज कुमार ,प्रस्तुति नियंत्रक रोशन आरा और कार्यक्रम का संचालन इंद्रजीत यादव ने किया। इस दौरान तमाम रंग प्रेमी, यूनिवर्सिटी थिएटर और इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र उपस्थित रहे।
~श्री कृष्ण यादव~
प्रयागराज