नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने इजराइल को हथियारों के निर्यात को रोक लगाने के लिए केंद्र को निर्देश देने की मांग करने वाली याचिका खारिज कर दी है। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कोर्ट देश की विदेश नीति के क्षेत्र में दखल नहीं दे सकता है। कोर्ट ने कहा कि इस तरह की कोई रोक कोर्ट द्वारा नहीं लगाई जा सकती क्योंकि ऐसे फैसले सरकार आर्थिक और भू-राजनीतिक स्थिति को देखते हुए करती है। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि इस तरह की याचिका स्वीकार नहीं की जा सकती है क्योंकि इजरायल एक संप्रभु देश है और भारतीय अदालतों के अधिकार क्षेत्र में नहीं आ सकता। गौरतलब है कि अशोक कुमार शर्मा और अन्य लोगों ने प्रशांत भूषण के माध्यम से एक जनहित याचिका दायर की थी जिसमें केंद्र को यह निर्देश देने की मांग की गई थी कि वह इजरायल को हथियार और अन्य सैन्य उपकरण निर्यात करने वाली भारतीय फर्मों के लाइसेंस रद्द कर दे और उन्हें नए लाइसेंस न दे।
चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड की अगुवाई में जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा है कि भारतीय कंपनियों ने इजराइल को हथियारों और सैन्य उपकरणों के निर्यात में लिए अनुबंध किए हैं। अब इन कॉन्ट्रैक्ट का उल्लंघन के लिए उन पर मुकदमा चलाया जा सकता है। इसलिए उन्हें आपूर्ति करने से नहीं रोका जा सकता। मामले की सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा, “हम देश की विदेश नीति के क्षेत्र में दखल नहीं दे सकते हैं।” इजरायल और हमास में बीते एक साल से संघर्ष जारी है। गाजा पर इजरायल के युद्ध में हजारों फिलिस्तीनियों की मौत हो चुकी है। गाजा के मुताबिक यह आंकड़ा 40 हजार के पार पहुंच गया है। इससे पहले एक हमले में हमास के लड़ाकों ने गाजा की सीमा पार करके इजरायल में हमला किया था और 7 अक्टूबर 2023 को लगभग 1,200 लोगों की हत्या कर दी।
प्रशांत भूषण ने दिए ये तर्क
याचिका पर वकील प्रशांत भूषण ने तर्क दिया कि भारत सरकार ने UN समझौते कर हस्ताक्षर किए हैं इसलिए वह अंतरराष्ट्रीय समझौते से बंधी हुई है जो नरसंहार और युद्ध अपराध में लिप्त किसी देश को हथियार आपूर्ति की अनुमति नहीं देता। उन्होंने कहा कि इजरायल स्कूलों और अस्पतालों पर बमबारी करके निर्दोष लोगों की हत्या कर रहा है और ऐसे समय में जब गाजा में युद्ध चल रहा है भारत द्वारा हथियारों की आपूर्ति नरसंहार संधि का उल्लंघन होगा। इस पर पीठ ने कहा, “आप मान रहे हैं कि इसका इस्तेमाल नरसंहार के लिए किया जा सकता है। आपने एक नाजुक मुद्दा उठाया है लेकिन अदालतों को इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। सरकार यह मूल्यांकन कर सकती है कि भारतीय कंपनियों पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा क्योंकि वह स्थिति से अवगत है।”
‘रूस से तेल आयात करना बंद कर दे?’
कोर्ट ने कहा कि रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे संघर्ष में भी ऐसी ही स्थिति पैदा हो सकती है जिसमें रूस से तेल आयात न करने की दलील दी जा सकती है। “भारत रूस से तेल आयात करता है। क्या सर्वोच्च न्यायालय यह कह सकता है कि आपको रूस से तेल आयात करना बंद कर देना चाहिए? ये निर्णय विदेश नीति का मामला है और देश की जरूरतों पर निर्भर करता है।” कोर्ट ने बांग्लादेश या मालदीव के साथ आर्थिक संबंधों की स्थिति से संबंधित अन्य उदाहरण भी दिए।
ऐसी याचिकाओं का समर्थन ना करे कोर्ट- सॉलिसिटर जनरल
केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को सूचित किया कि याचिकाकर्ताओं ने एक संप्रभु देश की कार्रवाइयों के खिलाफ आक्रामकता और नरसंहार जैसे शब्दों का उपयोग करना चुना है जो कूटनीतिक चर्चा में स्वीकार नहीं हैं। उन्होंने आगे कहा कि कोर्ट को ऐसी याचिकाओं पर नोटिस जारी करके याचिका में लगाए गए आरोपों का समर्थन नहीं करना चाहिए।