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‘दायरा-अ पिंच ऑफ़ वर्मेलियन’

Jitendra Kumar by Jitendra Kumar
31/07/24
in मुख्य खबर, राष्ट्रीय, साहित्य
‘दायरा-अ पिंच ऑफ़ वर्मेलियन’
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गति उपाध्याय


नई दिल्ली: नई दिल्ली की त्रिवेणी कला संगम की ‘त्रिवेणी कला दीर्घा’ में युवा चित्रकार खुशबू उपाध्याय सोनी की एकल चित्रकला प्रदर्शनी दायरा 22 जुलाई से 31 जुलाई तक आयोजित की जा रही है। युवा चित्रकार के चित्रों की विषयवस्तु अपने नाम के अनुसार नारी जीवन का ‘दायरा’ है। स्त्री कहीं की कहीं पहुंच जाए पर उसके होने पर गृहस्थी के दैनिक कार्यों की जिम्मेदारी अधिकतर घरों में उन्हीं के कंधों पर होती है।

ऐसा लगता है सभी व्यवस्थाकार मिले हुए हैं, सारी व्यवस्था ही इस तरह से रची गई है,बुनी गई है कि औरतें अपने नियत किये दायरे में ही रहें , जिन स्त्रियों को अंतरिक्ष पर जाना चाहिए था,लाख-लाख शब्द लिखने चाहिए थे,जिनको पहाड़ों को जीत लेना था जिनको अद्भुत चित्र बनाने चाहिए थे वो सब अपने रोज़ के कामों में इस तरह उलझी हुई हैं कि इनकी अधिकतम ऊर्जा गैर रचनात्मक कामों मसलन खाना बनाने , सफाई करने और कपड़े सूखाने जैसे कामों में ही खर्च हो जाती है, जो उनकी रचनात्मकता को सीमित करने के साथ बौद्धिकता को भी संकुचित करती है-

जब निकलेंगी खुद की तलाश में स्त्रियां
तो जरुर ढूंढ लेंगी वो,एक दिन खुद को
-खुशबू

चित्रकार आकार प्रकार में दैनिक इस्तेमाल के उपकरणों प्रेशर कुकर, कुशन, बर्डनेट और सिंक आदि का प्रयोग बिम्ब के रूप में करती हैं।इनके चित्र बताते हैं ‘मातृत्व’ जिसे प्रकृति का एक सुखद वरदान माना गया है,जिसके बाद हुए शारीरिक और मानसिक बदलाव कैसे किसी स्त्री के अवचेतन पर गहरा असर डालते हैं बदला हुआ शरीर आत्मा पर दुःखद निशान छोड़ता है ।ये चित्र अभिव्यक्ति के साथ ही चित्रकार के शांत होने की प्रक्रिया भी हैं। दिन-ब-दिन कठिन होते इस समय में ‘दायरा’ चित्रकार के साहस का परिणाम है जिन्हें किसी खास खांचे में ना रख कर फिगरिस्टिक और रियलिस्टिक वर्क के फ्यूजन के तौर पर विकसित किया गया है। इन चित्रों में छटपटाहट है,उड़ान है,पंख है, इन चित्रों के रंगों में जीवन है, रोशनी है जिनके मूल में है पारंपरिक और आधुनिक स्त्रियों के संघर्ष।

उत्तर प्रदेश के मथुरा शहर में रहकर कलाकर्म करने वाली चित्रकार की इस प्रदर्शनी के चित्रों को स्त्रियों के (विशेषतः) गृाहस्थ संतुलन समझने का यथेष्ट माध्यम भी बनाया जा सकता है।इस अभिव्यक्ति की सार्थकता तभी है जब कला प्रेमी इस गैलरी तक पहुंचे उसके मर्म को समझने की कोशिश करें जो हमारे समाज के विवाहित साथियों की है।

खुशबु की कलाकृतियों में घरेलू स्त्री के संसार के कई स्तर उद्घाटित हुए हैं। रोजमर्रे का श्रमसाध्य जीवन और उसकी कई आकांक्षाएं। ये प्रदर्शनी 31जुलाई तक ही है। अगर अपने नहीं देखी है और कला से प्रेम है तो जरूर देखें।

समकालीन युग में कला नित नए आयामों, नए माध्यमों में विचरित एवं संचरित हो रही है।फ्रीलांस के इस दौर में कलाकारों की अभिव्यक्ति का कोई तयशुदा स्थायी मानक,निकष नहीं।कला के अन्य माध्यमों की भांति चित्रकार भी इस छूट का लाभ उठाते हुए अभिनव प्रयोग कर रहे हैं कभी यह कलाकार की आत्मिक खोज होते हैं कभी आंतरिक दृष्टि,जो कलाकार के साहस और अंतर्मन की प्रेरणा के रूप में रंगों, रेखाओं और आकृतियों के संयोजन से चित्रों का आकार लेकर स्वतः ही कैनवास पर उतर आते हैं।

इसी क्रम में,नई दिल्ली के ‘त्रिवेणी कला संगम’की ‘त्रिवेणी कलादीर्घा’में युवा चित्रकार खुशबू उपाध्याय ‘सोनी’ की एकल चित्रकला प्रदर्शनी ‘दायरा’ का आयोजन 22जुलाई से 31 जुलाई तक किया जा रहा है। कलाकार ने आसपास के वातावरण और लोगों के जीवन के अनछुए पहलुओं को छुआ है जो दृश्य में सहज ही उपलब्ध होते हैं पर चित्रों का केंद्र कभी नहीं होते।

खुशबू की प्रतिबद्धता अभिव्यक्ति के लिए है। युवा चित्रकार में जोखिम उठाने का साहस दिखता है।इनकी कलाकृतियां बाजार नियमों के अनुरूप न होकर अभिव्यक्ति के अनुरूप होती हैं।समाज के उन चुनौतियों के लिए है जिन पर कभी बात नहीं होती। घर बनाए रखने के क्रम में घरवालों को नगण्य लगने वाले अवैतनिक,बोझिल, उबाऊ, अरचनात्मक कामों को करने में जिस तरह सृजनात्मकता का ह्रास होता रहता है – यही ‘दायरा-अ पिंच ऑफ़ वर्मेलियन’ की थीम है।

इस एकल प्रदर्शनी में कलाकार की सृजन की एक यात्रा दृष्टिगत होती है जो अपने चित्रों में अपने तथा अपने आसपास के लोगों की यात्रा के अनुभवों की श्रृंखला दिखाने में सफल रही हैं। चित्रों को देखकर लगता है कि कला विशेष रूप से भावनात्मक जीवन से जुड़ी होती है। दृश्य तत्वों के मूर्त चित्रों में अमूर्त भावनाओं को प्रदर्शित करना खुशबू का रचना संसार है जो इन्हें नए अर्थ प्रदान करता है।
उत्तर प्रदेश के मथुरा शहर में रहकर कलाकर्म करने वाली चित्रकार की इस प्रदर्शनी के चित्रों को गृहस्थ संतुलन समझने का यथेष्ट माध्यम माना जा सकता है।

खुशबु की कलाकृतियों में घरेलू जीवन के कई स्तर उद्घाटित हुए हैं। रोजमर्रा का श्रमसाध्य जीवन और उसकी कई आकांक्षाएं। इन चित्रों में छटपटाहट है,उड़ान है,पंख है, इन चित्रों के रंगों में जीवन है, रोशनी है। प्रदर्शनी का आज अंतिम दिन है।

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