नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने आज धारा 6ए को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। धारा 6ए नागरिकता अधिनियम, 1955 का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जिसे असम समझौते के तहत लागू किया गया था। यह प्रावधान 24 मार्च, 1971 से पहले असम में प्रवेश करने वाले अप्रवासियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करता है। असम में लंबे समय से अवैध अप्रवासियों की समस्या रही है, विशेषकर पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से। 1985 में ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU) और भारत सरकार के बीच हुए असम समझौते के बाद धारा 6ए को कानून में जोड़ा गया था। इसका उद्देश्य असम में रहने वाले “विदेशियों” की पहचान और उनके नियमन को स्पष्ट करना था।
इस धारा के तहत दो प्रमुख कट-ऑफ तिथियां निर्धारित की गईं
इस धारा के तहत दो प्रमुख कट-ऑफ तिथियां निर्धारित की गईं। पहला 1 जनवरी 1966 से पहले असम में प्रवेश करने वाले सभी भारतीय मूल के व्यक्तियों को नागरिकता प्रदान की जाएगी। दूसरा 1 जनवरी 1966 से 24 मार्च 1971 तक असम में प्रवेश करने वाले व्यक्तियों को नागरिकता दी जाएगी, लेकिन इन्हें 10 साल तक चुनाव में मतदान करने का अधिकार नहीं होगा। 24 मार्च 1971 के बाद आने वालों को अवैध अप्रवासी माना जाएगा।
धारा 6ए को सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाओं द्वारा चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि असम के लिए नागरिकता की एक अलग कट-ऑफ तिथि निर्धारित करना संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन करता है। उन्होंने कहा कि इससे असम की जनसांख्यिकी में बदलाव हुआ है और असम के मूल निवासियों को अपने ही राज्य में अल्पसंख्यक बना दिया है। इसके अलावा याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि यह प्रावधान असम के स्वदेशी लोगों के सांस्कृतिक और राजनीतिक अधिकारों को कमजोर करता है।
इस प्रावधान के बचाव में केंद्र सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 11 का हवाला दिया, जिसमें संसद को नागरिकता से संबंधित मामलों में विशेष प्रावधान करने का अधिकार दिया गया है। इसके अलावा, धारा 6ए को हटाने से बड़ी संख्या में लोग राज्यविहीन हो जाएंगे और कई वर्षों तक नागरिकता के अधिकारों का आनंद लेने के बाद उन्हें विदेशी माना जाएगा, जो असम की सामाजिक स्थिरता के लिए हानिकारक हो सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने 17 अक्टूबर, 2024 को अपने ऐतिहासिक फैसले में धारा 6ए की वैधता को बरकरार रखा। इस फैसले ने न केवल असम के लिए नागरिकता की कट-ऑफ तिथि को सही ठहराया, बल्कि राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) की प्रक्रिया को भी एक कानूनी आधार दिया। इससे राज्य में नागरिकता की स्थिति और स्वदेशी लोगों के अधिकारों को लेकर एक संतुलन स्थापित करने का प्रयास किया गया है।
धारा 6A को क्यों चुनौती दी गई?
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि धारा 6A में दी गई कट-ऑफ तिथि भेदभावपूर्ण है और समानता के अधिकार (संविधान के अनुच्छेद 14) का उल्लंघन करती है क्योंकि यह भारत के बाकी हिस्सों की तुलना में असम में प्रवेश करने वाले अप्रवासियों के लिए नागरिकता के लिए एक अलग मानक प्रदान करती है – जो जुलाई 1948 है। मामले में प्रमुख याचिकाकर्ताओं में से एक, असम संमिलिता महासंघ (ASM) ने तर्क दिया कि यह प्रावधान “भेदभावपूर्ण, मनमाना और अवैध” है।
एनआरसी के लिए इस फैसले का क्या मतलब है?
नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए द्वारा निर्धारित तिथियां वह आधार बनती हैं जिस पर 2019 में असम में अंतिम राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) तैयार किया गया था। याचिका में मांग की गई थी कि नागरिकता निर्धारित करने के लिए 1951 को कट-ऑफ तिथि के रूप में निर्धारित किया जाए। पिछले पांच सालों से एनआरसी अधर में लटकी हुई है, ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने उस आधार को बरकरार रखा है जिस पर इसे तैयार किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का भारत की राजनीति और विदेशी लोगों को नागरिकता देने के मामले में गहरा प्रभाव डालेगा। भारत में रह रहे पड़ोसी देशों के नागरिकों को लेकर यहां लंबे समय से विवाद होता रहा है।