भोपाल। देश में नवाचारों के लिये जाना जाने वाला मप्र चिकित्स शिक्षा के क्षेत्र में इतिहास रचने जा रहा है। देश के गृहमंत्री अमित शाह द्वारा एमबीबीएस की प्रथम वर्ष की पुस्तकों के विमोचन के साथ ही न केवल कल के विद्यार्थियों के लिये मातृभाषा में चिकित्सा शिक्षा के द्वार खुल जाएंगे, बल्कि इसके बाद विश्व के दूसरे देशों की तरह स्थानीय भाषा में चिकित्सा शिक्षा की डिग्री देने वाला मप्र देश का अग्रणी राज्य भी बन जाएगा। यही कारण है कि हिन्दी को लेकर प्रदेश के मुख्यंत्री शिवराज सिंह चौहान व मंत्री मंडल में उनके सहयोगी चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग की इस पहल को जमकर सराहा जा रहा है। इसमें प्रदेश के वरिष्ठ चिकित्सक ही नहीं चिकित्सा शिक्षा की पढ़ाई के बाद देश की राजनैथ्तक व्यवस्था से जुडे लोग भी शामिल हैं।
खास बात यह है कि इनमें अधिकांश की स्कूली शिक्षा का माध्यम हिन्दी रहा और बाद में अंग्रेजी की चुनौत्ी को स्वीकार करते हुए एमबीबीएस की डिग्री कर चिकित्सक बने। चिकित्सा के वैश्विक युग में इनकी कुछ शंकाओं को यदि छोड़ दिया तो इनको यह कहने से परहेज नहीं है कि हिन्दी में चिकित्सा शिक्षा की पढ़ाई शुरु होने के बाद अंग्रेजी ज्ञान की अनिवार्यता जहां समाप्त हो जाएगी। देवास स्थित अमलताश मेडिकल कॉलेज में प्रोफेसर डॉ. मधुरेंद्र राजपूत के शब्दों में इसकी सार्थकता तब और बढ़ जाएगी जब पुस्तकों में अंग्रेजी और हिन्दी का प्रावधान ठीक उस तरह रखा जाय जैसा की कानून की पुस्तकों के प्रकाशन के मामले में रहा है।
मप्र सरकार ने लगभग साढ़े चार साल के एमबीबीएस पाठ्यक्रम के लिये जरुरी सभी 19 विषयों में पहले वर्ष के लिये जरुरी विशय एनाटॉमी, बायोकेमिस्ट्री और फिजियोलॉजी को हिन्दी में पढ़ाने जा रहा है। पुस्तकों का हिन्दी में अनुवाद कराया गया है। इसका विमोचन लाल परेड मैदान में रविवार को देश के गृह मंत्री अमित शाह करेंगे। पायलट प्रोजेक्ट के रूप में यह पहले वर्ष भोपाल के गांधी मेडिकल कॉल्ेज से शुरु होगा। इसके बाद आगामी सत्र में राज्य के सभी 13 सरकारी मेडिकल कॉलेजों में इसका विस्तार करने की योजना बनाई गई है।