एनसीपी चीफ शरद पवार के इस्तीफे को आज मुंबई में हुई एनसीपी की कोर कमेटी की बैठक में नामंजूर कर दिया गया। बैठक में शरद पवार के उत्तराधिकारी पर फैसला होने वाला था लेकिन कमेटी ने शरद पवार के इस्तीफे को नामंजूर कर दिया।
शरद पावर के इस कदम को राजनीतिक विश्लेषक एक मास्टरस्ट्रोक मान रहे हैं। जिसके जरिए पवार ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं। पवार की राजनीति को करीब से जानने वाले पहले से ही कयास लगा रहे थे कि, यह इस्तीफा उनकी प्रेशर पॉलिटिक्स का हिस्सा भी हो सकता है। जो अब सही साबित हुआ है।
काम आई प्रेशर पॉलिटिक्स
दरअसल पवार के इस्तीफे से पहले ऐसी अटकलें चल रही थीं कि, अजित पवार पार्टी छोड़कर जा सकते हैं। उनके साथ कुछ विधायक भी जाने वाले थे। पार्टी की टूट एनसीपी के लिए बड़ी क्षति होती। पवार इसे हर कीमत पर बचाना चाहते थे। जिसके लिए उन्होंने शॉक ट्रीटमेंट का सहारा लिया।
शरद पवार के आचानक इस्तीफे के बाद पार्टी छोड़ने की कोशिश कर रहे अजित पवार और उनके विधायक असहज हो गए। इस्तीफे के बाद कार्यकर्ताओं में काफी रोष था। ऐसे में कोई भी नेता बगावत का जोखिम नहीं लेना चाहेगा। इससे पार्टी के अंदर जो बगावत की खबरें आ रही है। वह इस इस्तीफे के बाद दबा गईं।
पहले से कहा जा रहा था कि, इस्तीफे के बाद पार्टी के विधायक और सीनियर नेता उन्हें इस्तीफा वापस लेने के लिए मानएंगे। अंत में पवार उनकी बात मानकर एनसीपी चीफ बने रहने पर राजी हो जाएंगे। यही सब आज बैठक में देखने को मिला।
राहुल गांधी के फोन कॉल के मायने
शरद पवार के इस्तीफे के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी और तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन ने सुप्रिया सुले को फोन किया था। सुले को पवार से इस्तीफा वापस लेने के लिए राजी करने के लिए कहा था। दरअसल महाराष्ट्र चुनावों और 2024 के चुनावों में पवार की काफी अहम भूमिका रहने वाली है।
MVA के सूत्रधार हैं पवार
शरद पवार महाविकास अघाड़ी के सूत्रधार हैं। उन्होंने ही महाराष्ट्र की राजनीति में ऐसे समीकरण गढ़े थे। जिसकी किसी को उम्मीद भी नहीं थी। पवार ने शिवसेना और कांग्रेस को एक मंच पर लाकर देश को नया गठबंधन दिया था। कांग्रेस और शिवसेना समेत विपक्ष नहीं चाहता है कि, महाराष्ट्र में बीजेपी को इस गठबंधन टूटने के बाद बढ़त मिले। अब जबकि पवार पार्टी के चीफ बने रहने पर राजी हो गए है। तो ये बीजेपी के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है।
उत्तराधिकारी की चुनाव
शरद पवार के इस्तीफे के बाद उनके उत्तराधिकारी को लेकर चर्चाएं शुरू हो गई थीं। उनके उत्तराधिकारी के तौर पर अजित पवार, शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल के नाम चल रहे थे। लेकिन जानकारों का मानना है कि, पवार अपनी बेटी के भविष्य को सुरक्षित करने की कोशिश में है। वह चाहेंगे कि कमान सुप्रिया सुले को मिले, लेकिन पार्टी की मौजूदा स्थिति को देखकर वह सही समय का इंतजार कर रहे हैं।
नीतीश की तुलना में शरद पवार लोगों को साधने में हैं माहिर
2024 के लोकसभा चुनावों के लिए कांग्रेस विपक्षी दलों को एक करने में जुटी हुई है। पार्टियों को एकजुट करने के लिए बिहार के सीएम नीतीश कुमार को ये काम सौंपा गया है। लेकिन दिल्ली की राजनीति में पवार नीतीश से अधिक असरदार हैं। वह दलों को एक साथ लाने में नीतीश से अधिक माहिर माने जाते हैं। साथ ही वह कई पार्टियों के साथ नजदीकी बॉन्ड रखते हैं।