काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार, इन पांच मन के विकारों द्वारा मनुष्य दुःख पाता है। पूजा तभी सफल मानी जाती है जब मन के विकारों से व्यक्ति मुक्त हो जाए और निर्मल मन से ईश्वर की आराधना करे। मन को निर्मल करने के लिए प्रत्येक पूजा में पंचामृत का प्रयोग बताया गया है। शिवलिंग एवं अन्य देवमूर्तियों के स्नान से लेकर प्रसाद के रूप में पंचामृत ग्रहण करने की परंपरा अनादिकाल से चली आ रही है। सफलता के लिए धर्मशास्त्र में मन का निर्मल एवं बलवान होना आवश्यक बताया गया है।
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार चन्द्रमा का संबंध मानव मन और सफेद वस्तुओं से है, पंचामृत में दूध, दही, शक्कर आदि सफेद वस्तुएं चन्द्रमा का प्रतिनिधित्व करती हैं। जब चन्द्र प्रधान दूध, दही इत्यादि से शिवलिंग को स्नान कराया जाता है तो व्यक्ति के मन के अन्दर की नकारात्मक ऊर्जा, शुभ ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है। इसलिए श्रावण मास में शिव आराधना में रुद्राभिषेक का सर्वाधिक महत्व है। मन निर्मल हो जाने पर शिव की अपने भक्तों पर उतनी ही प्रीति होती है, जितनी कि भक्त की शिव पर क्योंकि शिव अन्तर्यामी हैं। उनकी उपासना यदि भक्त सच्चे मन से करता है तो शिव नित्य और अनित्य भाव से अपने भक्तों पर निश्चित ही कृपा करते हैं।
पंचतत्व का समन्वय है शिवोपासना
सृष्टि की रचना करते समय ईश्वर ने अपने संपूर्ण अंश में से पांच तत्वों को मिलाकर मानव के भौतिक शरीर की रचना की है इसलिए सुख-शांति से जीवन निर्वाह करने के लिए मनुष्य को पंचतत्व के समन्वय की आवश्यकता पड़ती है। प्राचीन काल से ऋषि-महर्षियों को ज्ञात था कि पंचतत्व के समन्वय और पंचामृत के सेवन से मानव की रोग-प्रतिरोध क्षमता का विकास होता है जिससे रोगों के सक्रमण से बचा जा सकता है। शरीर में किसी कारणवश एक भी तत्व कमजोर पड़ जाए तो शरीर अस्वस्थ हो जाता है। अग्नि, पृथ्वी, वायु, जल, आकाश, पंचतत्वों में असंतुलन से प्राकृतिक आपदा आती है, मानव शरीर में मौजूद पंचतत्वों में असंतुलन होने पर रोगों का सृजन होता है और मन के पंच विकारों के कारण व्यक्ति दु;ख पाता है। सावन माह में जब जनमानस शिव को प्रकृति से उत्पन्न वस्तुओं को अर्पण कर पूजा करता है, तो पंचतत्व और वायुमंडल के संतुलन के साथ सभी को जीवनोपयोगी ऊर्जा प्राप्त होती है, जो विश्व कल्याण के लिए अति आवश्यक है।
शिव की पंचामृत पूजा है फलदायी
दूध, दही, मधु, घृत और शक्कर, इन पांचों को मिलाकर पंचामृत का निर्माण किया जाता है। सावन में भगवान शिव को पंचामृत स्नान कराने का विशेष महत्व है। सर्वप्रथम शिवलिंग पर जल अर्पण करें और उसके बाद दूध, दही, घी, शहद और शक्कर चढ़ाऐं। प्रत्येक वस्तु अर्पण के बाद शिवलिंग को जल से स्नान कराऐं। तत्पश्चात् दूध, दही, घी, शहद और शक्कर, पांचों को मिलाकर एक साथ शिवार्पण करें। पूजा के दौरान पंचाक्षर अथवा षडाक्षर मंत्र का उच्चारण करते रहें। धर्मशास्त्र अनुसार श्रावण मास में पंचामृत से शिवजी को स्नान कराने से मनुष्य की सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं, जैसे, धन-सम्पदा के लिए पंचामृत स्नान, संतान प्राप्ति के लिए गाय के दुग्ध से अभिषेक, भवन, वाहन, ऐश्वर्य के लिए दही से, धन प्राप्ति के साथ दु;ख-कष्ट निवारण के लिए शहद से, रोगों के शमन, कल्याण एवं मोक्ष प्राप्ति हेतु घी से, बौद्धिक क्षमता को बढ़ाने एवं सर्वकल्याण के लिए शक्कर मिश्रित जल से अभिषेक करना चाहिए। पंचामृत से शिव स्नान लोभ, मोह, अहंकार आदि पंच विकारों का नाश कर मनुष्य का मन निमृल कर मनोकामनाओं की पूर्ति करता है।