आनंद अकेला की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट
भोपाल। आने वाले कुछ दिनों में शिवराज सरकार के मंत्रीमंडल का विस्तार किया जाना है। मंत्रीमंडल विस्तार को लेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह प्रदेश के राज्यपाल लालजी टंडन से मुलाकात भी कर चुके हैं। मंत्रीमंडल में इस बार विंध्य की भूमिका अहम मानी जा रही है। यहां पर मंत्रीमंडल में स्थान पाने के लिए दो ब्राह्राण चेहरों में जमकर रस्साकसी चल रही है। सूत्रों की माने तो इस बार विंध्य में शुक्लाजी पर शुक्लाजी ही भारी पड़ रहे हैं।
शिवराज मंत्रीमंडल में एक बात तय है कि विंध्य से कम से कम एक ब्राह्मण चेहरे को अवश्य कैबिनेट में शामिल किया जाएगा। 30 में 24 सीटें भाजपा को दिलाने वाले विंध्य से मंत्रीमंडल में इसके अलावा भी दो चेहरों को शामिल करने की संभावना है। विंध्य में कई ऐसी सीटें हैं जिसका फैसला ब्राह्मण वोटर ही करते हैं। पिछले लंबे समय से विंध्य में यह वोटर बीजेपी के साथ खड़ा हुआ है। ब्राह्मण वोटर नाराज न हो इसके लिए पार्टी यहां से एक ब्राह्मण चेहरे को अवश्य मंत्रीमंडल में शामिल करने को हरी झंडी भी दे चुकी है।
विंध्य के चौबीस विधायकों की सूची में दो नाम ऐसे हैं जिनको लेकर पार्टी पशोपेश की स्थिति में हैं। ये दोनों ही न केवल ब्राह्राण चेहरे हैं बल्कि अपने क्षेत्र में व्यापक जनाधार वाले नेता माने जाते हैं। इन दोनों चेहरों का अपने-अपने जिलों में खासा दबदबा भी है साथ ही ये लंबे समय से चुनाव भी जीतते आ रहे हैं। ऐसे में पार्टी के समक्ष संकट उत्पन्न हो गया है कि दो में से किसको मंत्रीमंडल में शामिल किया जाए। इसमें एक नाम रीवा से विधायक व पूर्व में दो बार कैबिनेट मंत्री रह चुके राजेंद्र शुक्ला का है तो दूसरा नाम सीधी से लगातार तीन बार विधायक चुने जा चुके केदारनाथ शुक्ला है। विधायक केदारनाथ शुक्ला चार बार विधायक का चुनाव जीत चुके हैं साथ ही अपनी सीट से लगी अन्य सीटों पर भी खासा दबदबा रखते हैं।
राजेंद्र शुक्ला का स्थानीय स्तर पर जबरदस्त विरोध
बात अगर रीवा के विधायक राजेंद्र शुक्ला की करें तो इस समय स्थानीय स्तर पर उनका जमकर विरोध हो रहा है। एक ओर जहां वो मंत्रीमंडल में स्थान पाने के लिए भोपाल में डेरा डाले हुए हैं तो वहीं उनके खिलाफ पार्टी के कई कार्यकर्ता रीवा में विरोध का बिगुल फूंक रखा है। स्थानीय कार्यकर्ताओं का कहना है कि राजेंद्र शुक्ला जमीनी स्तर पर लोगों से नहीं जुड़ते हैं और ना ही वो कार्यकर्ताओं को ज्यादा तवज्जों ही देते हैं। पीछे दो कार्यकाल में वो मध्यप्रदेश सरकार में मंत्री रहे। अपने कार्यकाल के दौरान वो हमेशा हाईप्रोफाइल ही बनकर रहे हैं। उनके इसी रवैये के कारण वर्ष 2018 में हुए विधानसभा में बड़ी संख्या में पार्टी के कार्यकर्ता कांग्रेस में शामिल हो गए। इसमें अभय मिश्रा जैसे कद्दावर और बड़े जनाधार वाले नेता का नाम भी शामिल है। विरोध करने वाले कार्यकर्ताओं का कहना है कि हम दिन रात पार्टी के लिए काम करते हैं पर उसका लाभ व्यापारी वर्ग को दे दिया जाता है। स्थानीय स्तर पर कार्य करने वाले पार्टी के कार्यकर्ताओं की कहीं कोई सुनवाई नहीं होती। यही कारण है कि स्थानीय स्तर पर भाजपा के प्रति लोगों में नाराजगी है। अगर ऐसा रहा तो आने वाले समय में पार्टी को समर्थक यह वोटर छिटक सकता है।
केदारनाथ शुक्ला को मिल रहा व्यापक जनसमर्थन
रीवा के अपेक्षा सीधी में स्थिति पूरी तरह से उलट है। यहां विधायक केदारनाथ शुक्ला समय के साथ-साथ मजबूत होते जा रहे हैं। चार बार के विधायक केदारनाथ शुक्ला को अभी तक न तो मंत्रीमंडल में स्थान दिया गया और न ही कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी। इसके बावजूद उनका स्थानीय स्तर पर कद बढ़ता जा रहा है। विधायक केदारनाथ शुक्ला न केवल अपने विधानसभा में मजबूत स्थिति में है साथ ही अपने सीट से लगे विधानसभा सीटों में भी पार्टी को मजबूती प्रदान कर रहे हैं। जिसका असर 2018 में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में स्पष्ट रूप से देखा गया। सीधी सीट से लगी दो सीटों पर कांग्रेस पूरी तरह से हावी थी। विभिन्न सर्वेक्षण में ये दोनों ही सीट कांग्रेस के खाते में दिखाई जा रही थी। पर विधायक केदारनाथ शुक्ला का असर रहा है कि अजेय मानी जाने वाली सीट चुरहट बीजेपी के खाते में चली गई। अगर यह सीट बीजेपी के खाते में आई तो इसमें अहम भूमिका सीधी से लगे पोलिंग बूथ की रही। जहां बीजेपी के पक्ष में जमकर वोटिंग हुई। कुछ ऐसी ही स्थिति धौहनी सीट की थी। अगर सीधी से लगे पोलिंग बूथ कुंवर सिंह टेकाम का समर्थन न करते तो निश्चित तौर पर यह सीट बीजेपी के हाथ से चली जाती। क्योंकि यहां से उनकी जीत का अंतर महज कुछ हजार का था।
ये आंकड़े इस बात की तस्दीक करते हैं कि सीधी के विधायक केदारनाथ शुक्ल की लोकप्रियता का ग्राफ बढ़ रहा है। इसके अलावा प्रदेश स्तर में उनका कही भी विरोध नहीं हो रहा है। सीधी के विधायक केदारनाथ शुक्ला न केवल बीजेपी में लोकप्रिय है बल्कि कांग्रेस के कार्यकर्ता और बड़े नेता भी उनका स्थानीय स्तर पर विरोध नहीं करते। कुल मिलाकर देखा जाए तो वो विरोधियों में भी उसी तरह लोकप्रिय हैं जैसे अपनों के बीच। जबकि इसके उलट राजेंद्र शुक्ला का विरोध न केवल प्रदेशस्तर में हो रहा है बल्कि स्थानीय स्तर में उनकी सीट से ही कार्यकर्ता उनके खिलाफ है।
ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि शिवराज मंत्रीमंडल में कौन सा किस पर भारी पड़ता है। क्या शिवराज सिंह दोनों ब्राह्राण चेहरों को मंत्रीमंडल में स्थान देकर विंध्य में पार्टी को मजबूती देंगे या फिर उनकी मंशा कुछ और है। इसके अलावा यह भी देखना दिलचस्प रहेगा कि क्या स्थानीय स्तर पर विरोध झेल रहे राजेंद्र शुक्ला भारी पड़ेंगे या जनसमर्थन पा रहे केदारनाथ शुक्ला। हालांकि वर्तमान गुणा भाग की गणित में अभी तक सीधी के विधायक केदारनाथ शुक्ला का पलड़ा भारी पड़ता दिख रहा है।