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कमलनाथ के फॉर्मूले पर चुनाव लड़ते शिवराज तो बीजेपी के 16 में से 9 नहीं 15 मेयर होते

Jitendra Kumar by Jitendra Kumar
21/07/22
in राज्य, समाचार
कमलनाथ के फॉर्मूले पर चुनाव लड़ते शिवराज तो बीजेपी के 16 में से 9 नहीं 15 मेयर होते

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भोपाल : मध्य प्रदेश नगर निकाय चुनाव में बीजेपी को तगड़ा झटका लगा है. सूबे की कुल 16 नगर निगम में से बीजेपी के 9, कांग्रेस के 5, आम आदमी पार्टी एक और एक निर्दलीय मेयर बने हैं. अभी तक सभी नगर निगमों पर काबिज रही बीजेपी के हाथ से 7 नगर निगम निकल गए हैं जबकि कांग्रेस जीरो से बढ़कर 5 पर पहुंच गई है. हालांकि, सीएम शिवराज सिंह चौहान अगर कमलनाथ सरकार के फैसले को न पलटते और उसी फॉर्मूले पर निगम चुनाव लड़ते तो आज बीजेपी के 9 नहीं बल्कि 15 मेयर होते.

बीजेपी को लगा शहरों में बड़ा झटका

प्रदेश के नगर निगम में सीधे जनता से मेयर का चुनाव कराने का दांव बीजेपी को उलटा पड़ गया जबकि कांग्रेस को सियासी लाभ मिला है. बीजेपी के हाथों से रीवा, कटनी, मुरैना नगर निगम भी हाथ से निकल गए जबकि छिंदवाड़ा, ग्वालियर, सिंगरौली और जबलपुर में मेयर का चुनाव वो पहले ही हार चुकी है. इस तरह से बीजेपी ने 16 में से 7 नगर निगम गंवा दिए. यहां तक कि दो अन्य नगर निगम वह किसी तरह से जीत पाई है.

बीजेपी को बड़े शहरों में मेयर का सीधा चुनाव कराने से भारी नुकसान उठाना पड़ा. वहीं, अगर शिवराज सरकार पार्षदों के जरिए महापौर का चुनाव कराती तो बीजेपी सभी नगर निगमों में अपना महापौर बैठा सकती थी. नगर निगम के पार्षदों के नतीजे को देखें तो 16 में से 14 नगर निगम बोर्ड में बीजेपी पूर्ण बहुमत के साथ कब्जा जमा सकती है. इसके अलावा बीजेपी मुरैना नगर निगम में निर्दलीय पार्षदों को मिलाकर अपना मेयर बना सकती थी जबकि कांग्रेस सिर्फ छिंदवाड़ा ही मेयर बना पाती.

कमलनाथ के फैसले को पलटना महंगा पड़ा

बता दें कि कमलनाथ सरकार महापौर, नगर पालिका और नगर परिषद अध्यक्ष के चुनाव को अप्रत्यक्ष तरीके यानि पार्षदों के जरिए कराने का अध्यादेश लेकर आई थी, जिसका बीजेपी ने खूब विरोध किया था. कमलनाथ के इस निर्णय को बीजेपी ने लोकतंत्र की हत्या तक बताया था.

नगर निकाय में सीधे अध्यक्ष के चुनाव कराने के फैसले के खिलाफ उस समय के महापौर तत्कालीन राज्यपाल लालजी टंडन से मिले थे. बीजेपी ने इसे लेकर मोर्चा तक खोल रखा था और काफी समय तक चुनाव टल गए थे. बीजेपी ने निर्णय लिया था कि महापौर का चुनाव प्रत्यक्ष तरीके से होगा.

वहीं, साल 2020 में सूबे में सत्ता परिवर्तन के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कमलनाथ सरकार के फैसले को पलट दिया था. शिवराज सरकार ने नगर निकाय में सीधे अध्यक्ष के चुनाव कराने का अध्यादेश ले आई और पार्षदों के जरिए चुने जाने वाले नियम को बदल दिया. इस तरह से जनता के जरिए मेयर के चुनाव कराने का फैसला हुआ.

शिवराज के फैसले से बीजेपी को नुकसान

शिवराज सरकार के फैसले पर नगर निकाय चुनाव कराए गए हैं, जिसमें बीजेपी को महानगरों में झटका लगा. बीजेपी के 16 में 7 महापौर प्रत्याशी चुनाव हार गए हैं जबकि इन शहरों में पार्षदों का बहुमत बीजेपी का ही है. इस तरह नगर निगम पार्षद के जरिए चुनाव हो रहे होते तो बीजेपी सभी शहरों में अपना महापौर भी बना लेती, लेकिन सीधे जनता के द्वारा चुनाव कराने का दांव बीजेपी को महंगा पड़ा.

नगर निगम के पार्षद के आंकड़े देखें तो बीजेपी ने जिन शहरों में मेयर का चुनाव हारी है, वहां पर उसके पार्षदों की संख्या कांग्रेस से कहीं ज्यादा है. ऐसे में अगर पार्षदों के जरिए मेयर के चुनाव होते हैं तो कांग्रेस जिन पांच नगर निगमों में कब्जा जमाया है, वहां पर बीजेपी का महापौर होता.

वहीं, आम आदमी पार्टी ने जिस सिंगरौली में महापौर का चुनाव जीतने में कामयाब रही है, वहां पर भी बीजेपी के सबसे ज्यादा पार्षद जीते हैं. ऐसे ही कटना में निर्दलीय मेयर बना है, लेकिन पार्षद बीजेपी के जीते हैं. कटनी नगर निगम की 45 पार्षद सीटों में से बीजेपी के 27, कांग्रेस के 15 और 3 अन्य को जीत मिली. ऐसे में साफ है कि बीजेपी अपना किला बचाए रखने में कामयाब रहती.

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