आनंद अकेला की रिपोर्ट
भोपाल l सालों से पदोन्नति में आरक्षण को लेकर चल रहे विवाद की वजह से सरकार से प्रदेश के कर्मचारी नाराज चल रहे हैं। इस नाराजगी की वजह है पदोन्नति न मिल पाना। अब नाराज चल रहे कर्मचारियों को खुश करने के लिए राज्य सरकार ने कवायद शुरू कर दी है। इसके तहत कर्मचारियों को समय से पहले पदोन्नत करने की तैयारी शुरू कर दी गई है। पदोन्नति के लिए पूर्व की तरह वरिष्ठता का तो पैमाना रहेगा ही, लेकिन यदि किसी शासकीय सेवक की कार्यप्रणाली सर्वाधिक बेहतर रहती है, तो उसे आउट आॅफ टर्न प्रमोशन भी मिल सकेगा। इसके लिए सामान्य प्रशासन विभाग ने नियम तैयार करने का काम शुरू कर दिया है। इसके साथ ही सरकार स्तर पर इस पर भी मंथन किया जा रहा है कि किस तरह से पदोन्नति में आरक्षण का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित रहने के बाद भी इस पर अमल किया जा सकता है।
संभावना है कि तैयार किए जा रहे नए नियमों पर अमल अगले साल से शुरू हो सकता है। बनाए जा रहे नियमों में इस बात का भी प्रावधान किया जा रहा है कि आउट आॅफ टर्न प्रमोशन पाने वाले शासकीय सेवकों को भी वहीं सुविधाएं मिलें, जो कि वरिष्ठता के आधार पर पदोन्नति होने वाले अन्य शासकीय कर्मचरियों को मिलती हैं। दरअसल वर्तमान में राज्य सरकार के पदोन्नति के नियम लकीर के फकीर की तरह है। यही वजह है कि कर्मचरी का काम अच्छा नहीं होने के बाद भी वह वरिष्ठता की वजह से पदोन्नति पा जाता है। इसके चलते विभागों में कार्य संचालन में भी परेशानियां बनी रहती हैं। इनमें कई कर्मचारी तो ऐसे होते हैं जो न तो ठीक से नोटशीट तैयार कर पाते हैं और न ही जरूरी निर्णय ले पाते हैं। जिसकी वजह से ऊपर के अफसरों पर काम का दबाव बढ़ जाता है। गौरतलब है कि मौजूदा समय में सिर्फ गृह विभाग में आउट ऑफ टर्न प्रमोशन के नियम हैं। इसके तहत पुलिसकर्मी को अपराधिक गतिविधियों को नियंत्रित करने में या किसी संगठित अपराधिक गिरोह के खिलाफ कार्रवाई में अदम्य साहस और वीरता का प्रदर्शन करने पर आॅटट ऑफ टर्न प्रमोशन दिया जाता है।
अभी इन मामलों में ही प्रभावित होती है पदोन्नति : मौजूदा समय में लागू नियमों के तहत सिर्फ किसी शासकीय सेवक के खिलाफ कदाचरण, भ्रष्टाचार की शिकायतें हैं या फिर उनके खिलाफ विभागीय जांच लंबित रहने पर ही पदोन्नति प्रभावित होती है। इसके तहत विभागीय पदोन्नति समिति की बैठक में या तो ऐसे नामों पर विचार ही नहीं किया जाता है या फिर पदोन्नति के मामले लिफाफे बंद कर दिये जाते हैं। यानी जब शासकीय सेवक दोषमुक्त होंगे, तब उनको पदोन्नति का लाभ मिल सकता है,लेकिन कमतर प्रदर्शन के आधार पर पदोन्नति को बाधित करने का कोई नियम नहीं है।
बढ़ती है लापरवाही : फिलहाल लागू नियमों के मुताबिक कर्मचारी को पता रहता है कि उसके खिलाफ कोई कार्रवाई की जाना आसान नहीं है , जिसकी वजह से वह न केवल लापरवाह बना रहता है, बल्कि उसकी यही लापरवाही बढ़ती ही जाती है। सरकारी कार्यालयों में आमतौर पर शासकीय सेवक सेवा को लेकर निश्चिंत बने रहते हैं, उन्हें पता होता है कि उन्हें सेवा से बर्खास्त करना तो छोड़ों उन्हें निलंबित करना भी आसान नहीं रहता है। ऐसे में काम के प्रति लापरवाही जारी रहती है। यही वजह है कि अब सरकारी कार्यालयों में प्रतिस्पर्धी और स्वस्थ कार्य प्रणाली लागू करने के लिए दक्ष शासकीय कर्मचरियों को पदोन्नत देने पर मंथन किया जा रहा है।
असमंजस में सरकार : वर्तमान में पदोन्नति में भी आरक्षण के नियम लागू हैं। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने पदोन्नति में आरक्षण के नियमों को समाप्त करने के निर्देश दिये थे, लेकिन वोट बैंक की राजनीति के चलते चार वर्ष पूर्व राज्य सरकार ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटीशन दायर कर दी थी, जिस पर सुनवाई हो रही है। इस पर निर्णय आने तक पदोन्नति पर रोक लगी हुई है। इस मामले में सरकार असमंजस की सिथति में है। जिसकी वजह से हर साल हजारों कर्मचारी बगैर पदोन्नति के ही सेवानिवृत्त होने पर मजबूर हो रहे हैं। पदोन्नति में आरक्षण के नियम लागू होने के कारण भी कई बार योग्य और दक्ष शासकीय सेवक समय पर पदोन्नति से वंचित रह जाते हैं। जिसकी वजह से उनकी दक्षता का फायदा विभागों को नहीं मिल पाता। इसे देखते हुए ही नया नियम बनाने पर विचार जारी है। इसके लिए राज्य सरकार को आत्मनिर्भर मप्र बनाने के मंथन के दौरान भी सुझाव मिले थे, उसके बाद ही सामान्य प्रशासन विभाग ने इसके लिये नियम तय करने की कवायद शुरू की है।