Sunday, June 8, 2025
नेशनल फ्रंटियर, आवाज राष्ट्रहित की
  • होम
  • मुख्य खबर
  • समाचार
    • राष्ट्रीय
    • अंतरराष्ट्रीय
    • विंध्यप्रदेश
    • व्यापार
    • अपराध संसार
  • उत्तराखंड
    • गढ़वाल
    • कुमायूं
    • देहरादून
    • हरिद्वार
  • धर्म दर्शन
    • राशिफल
    • शुभ मुहूर्त
    • वास्तु शास्त्र
    • ग्रह नक्षत्र
  • कुंभ
  • सुनहरा संसार
  • खेल
  • साहित्य
    • कला संस्कृति
  • टेक वर्ल्ड
  • करियर
    • नई मंजिले
  • घर संसार
  • होम
  • मुख्य खबर
  • समाचार
    • राष्ट्रीय
    • अंतरराष्ट्रीय
    • विंध्यप्रदेश
    • व्यापार
    • अपराध संसार
  • उत्तराखंड
    • गढ़वाल
    • कुमायूं
    • देहरादून
    • हरिद्वार
  • धर्म दर्शन
    • राशिफल
    • शुभ मुहूर्त
    • वास्तु शास्त्र
    • ग्रह नक्षत्र
  • कुंभ
  • सुनहरा संसार
  • खेल
  • साहित्य
    • कला संस्कृति
  • टेक वर्ल्ड
  • करियर
    • नई मंजिले
  • घर संसार
No Result
View All Result
नेशनल फ्रंटियर
Home मुख्य खबर

श्री गुरू तेग बहादुर जी, जो धर्म की रक्षा के लिए हो गए शहीद

Jitendra Kumar by Jitendra Kumar
11/05/22
in मुख्य खबर, राष्ट्रीय, साहित्य
श्री गुरू तेग बहादुर जी, जो धर्म की रक्षा के लिए हो गए शहीद
Share on FacebookShare on WhatsappShare on Twitter

डॉं. चरनजीत कौर
प्राचार्य, कॅरियर कॉलेज ( भोपाल )


शहीद फारसी का शब्द है। किसी ऊॅंचे सच्चे उद्देश्य, आदर्श, अधिकार, सत्य परायणता, धर्म या धर्म युद्ध आदि के लिए अपना जीवन कुर्बान कर देने वाले को शहीद कहते है। इतिहास गवाह है कि आध्यात्मिक सत्य की स्थापना के लिए ईसा ने बलिदान दिया। सामाजिक संतोष के लिए पैरिस कमियों ने जीवन की बली दे दी एवं बौद्धिक ज्ञान के लिये सुकरात ने विष का प्याला सहर्ष ग्रहण किया, लेकिन श्री गुरूनानक परम्परा के नौवें वारिस श्री गुरू तेग बहादुर जी ने आध्यात्मिक सत्य, सामाजिक, संतोष एवं बौद्धिक ज्ञान तीनों से ऊपर उठकर एक ऐसे आदर्श के  लिए बलिदान दिया जो शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक सम्पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान करने के लिये था।

यह आत्म सम्मान, आत्म विश्वास एवं आत्मबल को अर्जित करने के लिये था यह किसी एक कौम, धर्म, वर्ग के लिये नहीं वरन् सम्पूर्ण मानवता के लिये था। आपके जीवन की प्रसिद्ध घटना शहादत है तथा संसार के कल्याण हित दिये गये उपदेशों में महत्वपूर्ण है।

भय काहू को देत नेह, ना भय मानत आन।                                                                              
दोनो से निर्भयता का संकल्प स्पष्ट है।।

शहीद व्यक्ति निर्भय होता है उसके लिये आदर्श शरीर से अधिक महत्वपूर्ण होता है। शरीर मानव जीवन का महत्वपूर्ण अंग होता है। इसे नकारा नहीं जा सकता है, शरीर के माध्यम से ही भौतिक संसार से संबंध स्थापित होता है। उस परमपिता परमेश्वर से जुड़ाव भी शरीर के द्वारा स्थापित होता है। एक मनुष्य का दूसरे मनुष्य से सामाजिक जुड़ाव के लिये भी शरीर आवश्यक हैं। बिना शारीरिक ज्ञान के शायद हम प्रकृति के प्रति भी चैतन्य नहीं हो सकते हैं। यह स्वीकारते हुये भी यह नहीं कहा जा सकता है कि शरीर ही जीवन है। मन, बुद्धि भी आवश्यक है,। शरीर सांसारिक सुखों की मांग करता है। मन, बद्धि, ज्ञान, स्वतंत्रता चाहता है। सामाजिक उन्नति के लिये शारीरिक सुख समृद्धि से अधिक महत्वपूर्ण स्वतंत्रता है जो जीवन को उच्चतम  कीमत प्रदान करती है लेकिन इसे जीवन का केन्द्र बिन्दु नहीं मानते हैं। गुरूजी शरीर की उपयोगिता को स्वीकारते हुये कहते है।

सांसारिक इच्छाओं से उपर उठकर सत्य को खोजें एवं परम् आनन्द की प्राप्ति के लिये प्रेरित करते हुये गुरूजी फरमाते है।
आसा मनसा सगल त्यागे, जग ते रहे निरासा।
मानव यौनि अनमोल है, इसको व्यर्थ में गवाना नहीं है।।

आप फरमाते है-
मानस जन्म अमोलक पायो, बिरथा काहे गवायो।

‘‘संसार में जीवन की जिम्मेदारियों को निभातें हुये उस परम्सत्ता में मन जोड़ना है,
जग रचना सब झूठ है, जान लेयो रे मीत
कोह नानक थिर न रहे जो बालू की भीत।

बाहर भटकना है अंदर ठहराव है सांसारिक प्राप्तियों में बाह्य संघर्ष हैं जो कभी खत्म होने वाली नहीं  आन्तरिक यात्रा जैसे  उत्तरोत्तर आगे बढ़ेगी आनन्द की अनुभूति होती जायेगी। प्रसन्नता  से उपर आनन्द और अंत में परमानन्द है जो सचखण्ड में पहुॅंचा देगी। गुरूजी फरमाते है वह परम्पिता परमेश्वर हमारे अंदर है, बाहर ढूंढना व्यर्थ है।

काहे रे बन खोजन जाई, सर्व निवासी सदा अलेपा तोही संग समाई।
पुहप मध्य जियो बास बसत है, मुकर माहि जैसे छाई,
तैसे ही ही हरी वसे निरन्तर धट ही खोजो भाई।।

जतन बहुत सुख के लिये, दुःख को किया न कोए।
कोह नानक सुन रे मना, हर भावे सो होए।।

जब ऐसा महसूस हो कि मैं बलहीन हो गया हूॅं तब भी परमेश्वर हमारी रक्षा करते हैं जैसे तेंदेए से हाथी की रक्षा की थी।

बल छुटकियों बंधन परे, कछु न होत उपाए।
कोह नानक अब ओट हर, गज जियो हो सहाए।।
आवश्यकता है सम्पूर्ण समर्पण  की अटूट विश्वास की आस्था की। 

तब हृदय पुकार उठता है-
बल होआ बंधन छुटे, सब किछ होत उपाय।
नानक सब किछ तुमरे हाथ में तुम्ही होत सहाय।।

भारत में मुक्ति से मायने हैं मानवीय आत्मा को शरीर से पृथक हो जाना है। परन्तु गुरू जी के अनुसार मुक्ति अर्थात् सांसारिक दुःखो से निजात पाना है। मानवीय देह दुर्लभ है लेकिन यह दुःखों से घिरी रहती हैं। दुःख मूल का कारण आत्मा एवं शरीर का संयोग है। सम्पूर्ण सुख का साधन वह है जो संयोग को प्राप्त कर ले। इस उपलब्धि का नाम मुक्ति है। यह तभी संभव है जब हम अहंकार आदि दुर्गणों को त्यागकर इस परम्पिता परमेश्वर के नाम का स्मरण कर उसे सही मायने में पहचान लेते है।

जेह प्राणी हौमे तजी करता राम पछान
कोह नानक वो मुकत नर एह मन साची मान।

गुरूजी फरमाते है परम् सुख की प्राप्ति के लिये परमेश्वर की शरण में जाना अति आवश्यक है। समय बीतता जा रहा है आज और अभी से नाम स्मरण प्रारम्भ कर लें।

अजहूँ समझ कछु बिगरियो नाहिन, भज ले नाम मुरार।
बीत जैं हैं, बीत जैं हैं, जनम अकाज रे।
जो सुख को चाहे सदा सरन राम की लेह।
कोह नानक सुन रे मना दुर्लभ मानुख देह।

दिल्ली के तख्त पर विराजमान औरंगजेब एक पत्थर दिल सुन्नी मुसलमान शासक था वह अपने आप को खुदापरस्त होने का दाहवा करता था, लेकिन खलकत उसके जुल्म का शिकार हो रही थी। उसके मन में इस्लाम की खिदमत का जज्बा, जुनुन की हद तक पहुँच गया था। उसने अपने सगे भाईयों का कत्ल करके पिता को कारावास में बंद कर भूखे प्यासे मरने पर मजबूर कर दिया था, वह ललित कलाओं का भी दुश्मन था उसने संगीतकारों का सम्मान तो क्या कहना था वरन् उन पर हर तरह की पाबंदियों लगा रखी थी कोई रियाज नहीं कर सकता था, साजो की मीठी धुन उसे विचलित कर देती थी। उसने अपने राज्य में विशेष अधिकारी नियुक्त किये थे कि जहॉं भी कोई वाद्ययंत्र धुन छेड़ रहे हो उन्हे जला दिया जाये इस तरह यंत्रों के ढेर लगाकर अग्नि के सुपुर्द कर तबाह कर दिया गया। संगीतकार उसके राज्य में भुखमरी के शिकार हो गये। एक कथा काफी प्रचलित है कि औरंगजेब की संगीत के प्रति दुश्मनी से तंग आकर संगीतकारों ने अपने वाद्ययंत्रों को जनाजा तक निकाल दिया था ताकि उसे अपनी भूल का एहसास हो सकें। परन्तु औरंगजेब ने इसके प्रतिकूल यह कहा कि इस संगीत को इतना गहरा दफन करना है कि यह कभी बाहर न आ सकें।

औरंगजेब का केवल एक ही उद्देश्य था कि उसके राज्य में केवल एक ही धर्म का पालन होना चाहिये- वह था इस्लाम। इसकी पूर्ति के लिये वह जायज नजायज का अंतर भूल चुका था उसने हिन्दुओं के मंदिर उनकी पाठशालाओं को बंद कर देने तथा उनके स्थान पर मस्जिदें बना देने का फरमान जारी कर दिये। मंदिर की मूर्तियों से मस्जिदों के पायदान बना दिये गये जितनी भी बेईज्जती की जा सकती थी वह की तदोपरांत हिन्दुओं के तिलक व जनेऊ उतारने शुरू कर दिये गये।

धर्म परिवर्तन का यह कार्य कश्मीर की खुबसूरत प्राकृतिक वादियों से प्रारम्भ किया गया। गैर मुसलमानों की आत्मा दुःख से सिहर उठी। पण्डित कृपाराम की अगवाही में पण्डितों का एक दल सिखों के नौंवे गुरू गुरू तेग बहादुर जी के पास अपने धर्म रक्षा की फरियाद लेकर 25 मई 1675 को आया । गुरूजी ने कहा औरंगजेब को यह संदेश भेज दीजिए कि यदि गुरू नानक परम्परा के नौवें वारिस दीन कुबूल कर लेंगे तो सारे हिन्दु धर्म परिवर्तन हेतु तैयार हो जायेंगे क्योंकि गुरूजी का मिशन था-

जो सरन आवे, तिस कण्ठ लावै।
मजलूम की बॉंह पकड़नी है आपजी फरमाते हैं-
बांहि जिनां दी पकड़िए, सिर दीजै बांहि न छोड़िए।

औरंगजेब ने सोचा यह कार्य तो बहुत ही सरल हो गया एक व्यक्ति का धर्म परिवर्तन कहॉं कठिन है ? जोर, जबरदस्ती, लालच बहुत से तरीके हैं जो अपनाए जा सकते हैं। उसने सोचा मेरा सपना साकार होने का समय आ गया है। परन्तु गुरूजी की आत्मिक शक्ति उनके शान्तमयी व्यक्तित्व के प्रति वह अभिनज्ञ था। गुरूजी से कहा गया या तो दीन कबूल कर लो या चमत्कार दिखाओं या फिर मौत के लिए तैयार रहो।

गुरूजी ने मौत को चुना पहली शर्त तो मानी ही नहीं जा सकती थीं क्योंकि धर्म प्रत्येक व्यक्ति का निजी विश्वास अकीदा होता हैं। यह धर्मिक स्वतंत्रता का विषय है यह स्वअधिकार है इसमें कोई टीका टिप्पणी का प्रश्न ही नहीं उठता है। दूसरी शर्त चमत्कार करामात सिख धर्म के उसूलो के विरूद्ध है कहा गया है
करामात कहिर का नाम चमत्कार दिखाना निम्न स्तर की शोहरत से संबंधित है-
ध्रिग सिखी ध्रिग करामात-
गुरूजी यह जानते थे कि औरंगजेब की असहनीय नीतियों को केवल शहादत द्वारा ही रोका जा सकता है। उनकी आंखों के समक्ष उनके सिखों को शहीद कर दिया गया है- दिल्ली के चॉंदनी चौक पर 11 नवम्बर 1675 ई. को गुरूजी के पावन शीश को धड़ से अलग कर दिया गया। शहीद स्थल पर निर्मित सीसगंज साहिब गुरूद्वारा आपकी अद्वितीय शहादत को स्मृति चिन्ह जिस पर लाखें श्रद्धालु आज भी सिर झुकाते हैं और श्रद्धा सुमन अर्पित करते है।

मुगल सलतनत सड़क किनारे गिरे एक सुखे पत्तेे की भॅांति कहॉं उड़ गई कोई नहीं जानता हैं। शीश धड़ से अलग हो गया लेकिन झुकाया न जा सका-गुरू गोविन्द सिंह जी बचित नाटक में वर्णन करते है-

ठीकर फोर दिलीस सिर, प्रभु पुर किया प्यान।
तेग बहादुर सी क्रिया, करी न किन्हू आन
तेग बहादुर के चलत, भयो जगत में सोक
है-है-है सब जग कहो, जै-जै-जै सुर लोक।।

भारत में मुक्ति से मायने हैं मानवीय आत्मा को शरीर से पृथक हो जाना है। परन्तु गुरू जी के अनुसार मुक्ति अर्थात् सांसारिक दुःखें से निजात पाना है। मानवीय देह दुर्लभ है लेकिन यह दुःखों से घिरी रहती हैं। दुःख मूल का कारण आत्मा एवं शरीर का संयोग है। सम्पूर्ण सुख का साधन वह है जो संयोग को प्राप्त कर ले। इस उपलब्धि का नाम मुक्ति है। यह तभी संभव है जब हम अहंकार आदि दुर्गणों को त्यागकर इस परम्पिता परमेष्वर के नाम का स्मरण कर उसे सही मायने में पहचान लेते है।

जेह प्राणी हौमे तजी करता राम पछान
कोह नानक वो मुकत नर एह मन साची मान।

गुरूजी फरमाते है परम् सुख की प्राप्ति के लिये  परमेश्वर की शरण में जाना अति आवश्यक है। समय बीतता जा रहा है आज और अभी से नाम स्मरण प्रारम्भ कर लें।

अजहूँ समझ कछु बिगरियो नाहिन, भज ले नाम मुरार।
बीत जैं हैं, बीत जैं हैं, जनम अकाज रे।
जो सुख को चाहे सदा सरन राम की लेह।
केह नानक सुन रे मना दुर्लभ मानुख देह।

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

About

नेशनल फ्रंटियर

नेशनल फ्रंटियर, राष्ट्रहित की आवाज उठाने वाली प्रमुख वेबसाइट है।

Follow us

  • About us
  • Contact Us
  • Privacy policy
  • Sitemap

© 2021 नेशनल फ्रंटियर - राष्ट्रहित की प्रमुख आवाज NationaFrontier.

  • होम
  • मुख्य खबर
  • समाचार
    • राष्ट्रीय
    • अंतरराष्ट्रीय
    • विंध्यप्रदेश
    • व्यापार
    • अपराध संसार
  • उत्तराखंड
    • गढ़वाल
    • कुमायूं
    • देहरादून
    • हरिद्वार
  • धर्म दर्शन
    • राशिफल
    • शुभ मुहूर्त
    • वास्तु शास्त्र
    • ग्रह नक्षत्र
  • कुंभ
  • सुनहरा संसार
  • खेल
  • साहित्य
    • कला संस्कृति
  • टेक वर्ल्ड
  • करियर
    • नई मंजिले
  • घर संसार

© 2021 नेशनल फ्रंटियर - राष्ट्रहित की प्रमुख आवाज NationaFrontier.