नई दिल्ली: ऐसा लग रहा है कि युद्ध के नियमों को ताक पर रखकर इस्राइल की सख्त सैन्य कार्रवाई में पूरी दुनिया इसकी गवाह बनने जा रही है। एक पूर्व भारतीय राजनयिक कहते हैं कि 18 अक्तूबर को अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन तेल अवीव (इस्राइल) जा रहे हैं। एंटनी ब्लिंकन लगातार अरब और शिखर नेताओं के संपर्क में हैं। अमेरिका के एनएसए सुलविन की व्यस्तता काफी बढ़ी है और सभी केन्द्र में इस्राइल पर हमास के हमले के बाद पैदा हुई स्थिति है। सूत्र का कहना है कि हमास के हमले के बाद इस्राइल की बेलगाम सैन्य कार्रवाई ने इस स्थिति को अब बेहद पेचीदा बना दिया है। इसी का परिणाम है कि अमेरिका के नेता छह देशों के शिखर नेताओं से संपर्क कर चुके हैं।
इस्राइल में अपनी सेवाएं दे चुके सूत्र का कहना है कि ईरान की गतिविधि पर बारीक नजर रखिए। अभी के लिए जरूरी है। अमेरिका ने आखिर किसके डर से अपने दो सबसे शक्तिशाली जंगी बेड़े को इस्राइल की सुरक्षा में भेजा है? ईरान के विदेश मंत्री का हमास के नेता इस्माइल से मिलना और इस्माइल का संदेश इस्राइल तक पहुंचाने की उनकी कोशिश काफी अहम है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण है कि ईरान के शिखर नेता ने सऊदी अरब से संवाद किया है। कुछ ही महीने पहले चीन की पहल पर सऊदी अरब और ईरान एक टेबल पर आए हैं और दोनों देशों में संवाद हो रहा है।
असल का खेल तो पर्दे के पीछे से हो रहा है
चीन ने इस्राइल और हमास युद्ध को लेकर अपनी स्थिति साफ नहीं की है। चीन ने आत्मरक्षा के नाम पर इस्राइल की कार्रवाई की खुलकर आलोचना की है। रूस ने अमेरिका की नीतियों की आलोचना की है। उसे मध्य एशिया में इस संकट के लिए जिम्मेदार ठहराया है। चीन अमेरिका से लगातार ट्रेड वार में उलझा है और यूक्रेन-रूस के बीच में जारी युद्ध में अमेरिका खुलकर यूक्रेन का समर्थन कर रहा है। पूर्व राजनयिक का कहना है कि ऐसा पहली बार हो रहा है, जब दुनिया दो खेमे में बंटी नजर आ रही है। इस्राइल और फिलिस्तीन के आतंकी संगठन हमास के मुद्दे पर विरोधाभास साफ दिखाई दे रहा है। बताते हैं ईरान समेत दुनिया के तमाम देश इसी स्थिति की ताक में हैं। यह स्थिति तब और जटिल हो सकती है, जब जवाब में इस्राइल अपने पड़ोसी देश लेबनान और ईरान की तरफ मिसाइल दागने की हिम्मत करेगा।
अमेरिका के लिए आगे कुआं पीछे खाई
विदेश मामलों के जानकार वरिष्ठ पत्रकार रंजीत कुमार कहते हैं कि अमेरिका के लिए आगे कुआं, पीछे खाईं वाली स्थिति पैदा हो गई है। इस्राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू हमास के खिलाफ और सख्त सैन्य कार्रवाई करना चाहते हैं। इस कार्रवाई में गाजा और फिलिस्तिीनियों के अधिकार का संकट काफी बढ़ जाएगा। हालांकि अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने गाजा को लेकर अपना बयान जारी किया है। उन्होंने गाजा और क्षेत्र को फिलिस्तीनी प्राधिकरण द्वारा संचालित करने की वकालत की है। इस्राइल से युद्ध के नियमों के तहत व्यवहार करने, दवा पानी और जरूरी सहूलियतों पर ध्यान देने का संदेश दिया है। संयुक्त राष्ट्र भी लगातार इसको लेकर अपनी चेतावनी जारी कर रहा है। दूसरे अरब देश भी अब आगे की सैन्य कार्रवाई के पक्ष में नहीं हैं।
जिस तरह से सऊदी अरब ने अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन को संदेश दिया है, उसे काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इसमें भी सबसे अहम है कि सऊदी अरब, तुर्की और ईरान में इन दिनों संवाद हो रहे हैं। ईरान खुलकर फिलिस्तीन का समर्थन कर रहा है। ईरान का यह समर्थन बिना किसी आधार के नहीं हो सकता। आशंका यह भी है कि इस्राइल ने सैन्य कार्रवाई का मुंह ईरान की तरफ मोड़ा तो रूस से ईरान को सैन्य हथियारों की मदद मिल सकती है। माना जा रहा है कि यदि इस्राइल और हमास का यह युद्ध कुछ लंबा खिंचा और इसमें तीन-चार संभावित मोर्चे खुल गए तो परेशानी बढ़ सकती है। इससे अमेरिका की अर्थव्यवस्था को झटका लग सकता है और इसका असर पूरी दुनिया पर पडऩे के संकेत हैं।
अब इसके बाद आगे क्या?
इस्राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिल नेतन्याहू पूरी ताकत से युद्ध जीतने की इच्छा शक्ति रख रहे हैं। उन्होंने फिलिस्तीनी नागरिकों को उत्तरी गाजा शहर को खाली करने की चेतावनी दी थी। इसकी समयावधि पूरी हो चुकी है। लेकिन इस बीच अरब देशों ने अपना दबाव बढ़ा दिया है। सऊदी अरब समेत तमाम देश इस्राइल की सैन्य कार्रवाई रोके जाने के पक्ष में हैं। ईरान ने भी इसके बाबत साफ संदेश दिया है। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने इससे पहले हर हाल में इस्राइल के साथ खड़ा होने का संदेश दिया था। लेकिन उन्होंने अपने ताजा संदेश में संतुलित रुख अपनाने का संकेत दिया है। माना जा रहा है कि बुधवार 18 अक्तूबर को उनके तेल अवीव के दौरे के बाद क्षेत्र से कुछ शांति के संदेश सुनने को मिल सकते हैं।