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तो गंगोत्री सीट का इतिहास इसलिए इस बार बदल जाएगा!

गंगोत्री सीट इस बार कांग्रेस के विजयपाल सिंह सजवाण के लिए नहीं है आसान, बीजेपी के सुरेश सिंह और आप के कर्नल कोठियाल के मैदान में आने के बाद से स्थितियां पुराने इतिहास से कुछ अलग सी नजर आ रही है।

Frontier Desk by Frontier Desk
30/01/22
in उत्तराखंड, गढ़वाल, मुख्य खबर
तो गंगोत्री सीट का इतिहास इसलिए इस बार बदल जाएगा!
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उमा शंकर तिवारी (गंगोत्री सीट लाइव)
देहरादून। उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 में इस बार गंगोत्री सीट के परिणाम पर सबकी नजरें टिकी हुई है। प्रदेश की 70 विधानसभा सीटों में गंगोत्री सीट की गिनती इस बार बेहद हॉट सीट में हो रही है। सियासी पंडितों का मानना है कि 2022 में गंगोत्री सीट में कई तरह के पुराने इतिहास बदलते हुए देखने को मिलेंगे।
राज्य बनने के बाद से गंगोत्री सीट में यह पहला मौका है जब इस सीट से टक्कर प्रतिद्वंदी गोपाल सिंह रावत का निधन हो जाने से वो मैदान में नहीं है। 2007 से इस सीट पर मुकाबला बीजेपी की तरफ से स्व. गोपाल सिंह रावत और कांग्रेस के विजयपाल सिंह सजवाण के बीच होता आ रहा था। 2002 से ही इस पर भले ही बारी-बारी से कांग्रेस और बीजेपी जीतती आ रही हो पर यहां मुकाबला हमेशा से ही त्रिकोणीय रहा है।
रोमांचक था 2002 का मुकाबला
राज्य गठन होने के दो वर्ष के भीतर ही उत्तराखंड में पहला विधानसभा चुनाव 2002 में हुआ। जिसमें गंगोत्री सीट में मुकाबला बेहद ही रोमांचक रहा। इस सीट पर मुकाबला त्रिकोणीय रहा। प्रदेश के उस वक्त के बड़े नेता रहे सीपीआई के कमलराम नौटियाल को महज 610 वोटों के अंतर से कांग्रेस के विजय पाल सिंह सजवाण से शिकस्त मिली। उस वक्त के सियासी जानकारों का कहना है 2002 में गंगोत्री सीट से कमलराम नौटियाल की जीत लगभग तय मानी जा रही थी, पर बीजेपी के बुद्दिसिंह पंवार और निर्दलीय हरिसिंह राणा के कारण कमलराम नौटियाल कुछ वोटों के अंतर से कांग्रेस के विजयपाल सिंह सजवाण से पिछड़ गए। वर्ष 2002 के विधानसभा चुनाव में कुल 14 प्रत्याशी मैदान में उतरे जिसमें कांग्रेस के विजयपाल सिंह सजवाण को 7878 वोट मिले, जबकि सीपीई के कमलराम नौटियाल को 7268 वोट, बीजेपी के बुद्धिसिंह पंवार को 6822 वोट, निर्दलीय हरिसिंह राणा को 6005 वोट तथा उजपा से चंदन सिंह को 4082 वोट मिले।
2007 में कांग्रेस के विजयपाल सिंह सजवाण से जनता का हुआ मोहभंग
वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में गंगोत्री सीट की जनता का कांग्रेस के विधायक विजयपाल सिंह सजवाण से मोहभंग हो गया। क्षेत्रीय जनता की कई ऐसी मांगे और उम्मीदें रही जिसकी कसौटियों पर विजयपाल सिंह सजवाण खरे नहीं उतर सके। 2007 के विधानसभा चुनाव में कुल 12 प्रत्याशी मैदान में उतरे। पर इस बार मुकाबला केवल बीजेपी और कांग्रेस की बीच रहा। इस बार बीजेपी के तरफ से गोपाल सिंह रावत को मैदान में उतारा गया। गोपाल सिंह रावत ने यहां से धमाकेदार इंट्री मारते हुए कांग्रेस के विजय पाल सिंह सजवाण को बड़े अंतर से शिकस्त दी। 2007 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के गोपाल सिंह रावत को 24250 वोट, जबकि कांग्रेस के विजय पाल सिंह सजवाण को 18704 वोट मिले, इस बार तीसरे नंबर पर बसपा के चैतराम रहे जिन्हें 2348 वोट मिले, हालांकि इस बार उम्रदराज हो चुके सीपीआई के कमलराम नौटियाल का जादू जनता के बीच नहीं चला और 2272 वोट के साथ वो चौथे नंबर पर रहे।
2012 में जनता ने विजयपाल पर विश्वास जताया
2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की तरफ से विजय पाल सिंह सजवाण जनता का विश्वास जीतने में कामयाब रहे। इस चुनाव ने उन्होंने बीजेपी के गोपाल सिंह रावत को बड़े अंतर से शिकस्त दी। हालांकि इस बार भी गोपाल सिंह रावत के चुनाव हारने की बड़ी वजह मुकाबले का त्रिकोणीय रहना था। इस चुनाव में कांग्रेस के विजयपाल सजवाण को 20246 वोट, बीजेपी के गोपाल सिंह रावत को 13223 वोट, निर्दलीय उम्मीदवार सुरेश सिंह को 6436 वोट तथा निर्दलीय किशन सिंह को 5595 वोट मिले।
2017 में फिर सीट बीजेपी के खाते में गई
गंगोत्री में हर बार माहौल बदलने का क्रम जारी रहा। इस बार इस सीट पर बीजेपी ने बड़ी जीत दर्ज की। 2017 में बीजेपी के गोपाल सिंह रावत को 25683 वोट मिले, जबकि कांग्रेस के विजयपाल सिंह सजवाण को 16073 वोट मिले, वहीं निर्दलीय उम्मीदवार सूरतराम नौटियाल को 9491 वोट मिले।
2022 में किसके खाते में जाएगी सीट
2022 में गंगोत्री सीट किसके खाते में जाएगी इसका पता 10 मार्च को ही पता चलेगा पर इस बार यह सीट आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री चेहरे कर्नल (रिटा.) अजय कोठियाल के आने के बाद बेहद हॉट हो चुकी है। गंगोत्री सीट का अपना इतिहास रहा है। यहां से जिस पार्टी का उम्मीदवार जीतता है राज्य में उसी पार्टी की सरकार बनती है। यही कारण है हर चुनाव में प्रदेशभर की नजरें गंगोत्री सीट पर रहती है।
बीजेपी, कांग्रेस और आप में किसका पलड़ा भारी!
गंगोत्री से बीजेपी के बड़े नेता गोपाल सिंह रावत के निधन के बाद अब सियासी गणित बदला-बदला नजर आ रहा है। स्व. गोपाल सिंह रावत के इस बार न होने के कारण अब जनता से उनकी नाराजगी का फायदा विजय पाल सिंह सजवाण को मिलता नहीं दिख रहा है। हर पांच वर्ष में जनता का यहां के विधायक से मोहभंग हो जाता था जिसका सीधा लाभ प्रतिद्वंदी को मिलता था। पर इस बार स्व. गोपाल सिंह के न होने के कारण अब क्षेत्रीय जनता की नाराजगी बीजेपी के प्रति पहले की तरह नहीं दिख रही है। वहीं वर्तमान में बीजेपी के प्रत्याशी सुरेश सिंह 2012 में निर्दलीय के रूप में ताल ठोक चुके हैं, जिसमें वह तीसरे नंबर पर थे। कुल मिलाकर देखा जाए तो बीजेपी के अलावा उनका अपना एक बड़ा जनाधार रहा है। ऐसे में अब वह अगर बीजेपी की तरफ से मैदान में है तो निसंदेह रूप से इसका बड़ा लाभ उन्हें मिलेगा।
कर्नल कोठियाल के कारण बदलेगा सियासी समीकरण
आम आदमी पार्टी के सीएम फेस कर्नल कोठियाल के कारण बीजेपी से नाराज जनता आप पार्टी की तरफ रुख कर सकती है। इसके अलावा युवाओं में कर्नल कोठियाल को लेकर खासा क्रेज है। ऐसे में अगर यह सियासी समीकरण फिट बैठते हैं तो इस सीट पर कर्नल कोठियाल बाजी मार लेंगे।
कांग्रेस के लिए राह आसान नहीं
गंगोत्री सीट का इतिहास देखा जाए तो इस बार कांग्रेस के विजयपाल सजवाण का पलड़ा पूरी तरह से भारी दिख रहा है। पर जमीनी हकीकत कुछ अलग ही कहानी बयां कर रही है। इस बार मैदान में बीजेपी की तरफ से गोपाल सिंह रावत के स्थान पर सुरेश सिंह मैदान में रहे जिनके पास पार्टी के अलावा अपना स्वयं का बड़ा जनाधार है। सुरेश सिंह जिस इलाके से आते हैं वहां से कमलराम नौटियाल समेत कई बड़े नेता हुए पर आज तक कोई भी विधायक नहीं बन पाया, ऐसे में क्षेत्रीय जनता इस सीट के अपने क्षेत्र की जनता को विधानसभा में भेजने की तैयारी कर रही है। वहीं दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी के आने के कारण युवा और आंदोलनकारी नेता समेत नाराज जनता को कर्नल अजय कोठियाल के रूप में एक बड़ा विकल्प मिला है। ऐसे में कांग्रेस के विजय पाल सिंह सजवाण की राहें आसान नहीं दिख रही हैं।

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