प्रहलाद सबनानी
सेवा निवृत्त उप महाप्रबंधक
भारतीय स्टेट बैंक
भारतीय सनातन संस्कृति की अपनी
हाल ही में, अंतरराष्ट्रीय रेटिंग संस्थान “फिच” ने अमेरिका की रेटिंग को AAA से घटाकर AA+ कर दिया है। किसी भी देश की क्रेडिट रेटिंग के कम होने का आश्य यह है कि निवेशक उस देश में निवेश करने के बारे में पुनर्विचार करने लगते हैं क्योंकि उस देश में निवेश करने में जोखिम बढ़ जाता है अतः उस देश को निवेश आकर्षित करने के लिए निवेशकों को अधिक ब्याज की दर का प्रस्ताव देना होता है। इस प्रकार, अमेरिका में विदेशी निवेश विपरीत रूप से प्रभावित हो सकता है। साथ ही, अंतरराष्ट्रीय ब्रोकरेज संस्थान “मॉर्गन स्टैनली” ने चीन, ताइवान और ऑस्ट्रेलिया पर आउटलुक को घटा दिया है। जबकि, भारत पर आउट्लुक को बढ़ाकर ‘ओवरवेट’ कर दिया है। मॉर्गन स्टैनली का मानना है कि भारत में जारी आर्थिक सुधार कार्यक्रम का असर देश की बढ़ती विकास दर पर दिखाई देने लगा है।
मैक्रो-स्टेबिलिटी, मजबूत पूंजीगत व्यय और वित्तीय संस्थानों की बढ़ती लाभप्रदता भारत की अर्थव्यवस्था और अधिक मजबूती प्रदान करती दिखाई दे रही है। ओवरवेट रेटिंग का आश्य यह है कि फर्म को उम्मीद है कि भारत की अर्थव्यवस्था भविष्य में और अधिक बेहतर प्रदर्शन करेगी। फर्म ने कहा है कि भारत के मैक्रो संकेतक लचीले बने हुए हैं और वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारतीय अर्थव्यवस्था (सकल घरेलू उत्पाद) 6.2 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल कर लेगी। अब जब कुछ अन्य देशों की रेटिंग घट रही है और भारत की रेटिंग बढ़ रही है तो इससे कुछ देश भारत को अपनी प्रतिस्पर्धा में खड़ा होता देख नहीं पा रहे हैं।
अंग्रेजों ने भारत पर अपने 200 वर्षों के शासनकाल में भारतीय सनातन संस्कृति पर आक्रमण करते हुए इसको तहस नहस करने का भरपूर प्रयास किया था, हालांकि उनके प्रयास पूर्ण रूप से सफल नहीं हुए थे। परंतु, कुछ हद्द तक तो उन्हें सफलता मिली ही थी, जिसके चलते भारतीय नागरिक अपने ‘स्व’ के भाव को भूलकर पश्चिमी सभ्यता की ओर आकर्षित हुए थे और ऐसा सोचने लगे थे कि पश्चिम से आई हुए कोई भी चीज वैज्ञानिक एवं आधुनिक है। जिसका परिणाम देश आज भी भुगत रहा है। जबकि ब्रिटेन, जापान, इजराईल, जर्मनी, अमेरिका जैसे देशों ने तो अपने नागरिकों में ‘स्व’ के भाव को जगाकर ही अपने आप को विकसित देशों की श्रेणी में शामिल करने में सफलता पाई थी। अंग्रेजों ने उस खंडकाल में अपनी नीतियां ही इस प्रकार की बनाई थी कि भारतीय नागरिक आपस में जाति और पंथ के नाम पर लड़ते रहें ताकि उन्हें भारत पर शासन करने में आसानी हो। जबकि आज विश्व भर में स्थिति यह है कि सनातन भारतीय संस्कारों को वैज्ञानिक माना जा रहा है, एवं कई वैश्विक समस्याओं के हल हेतु भारत की ओर आशाभारी नजरों से देखा जा रहा है।
परंतु, आज पुनः कुछ देश, अंग्रेजों के शासनकाल के दौरान अपनाए गए हथकंडो को भारत में लागू कर भारत में शांति को भंग करने का प्रयास करते दिखाई दे रहे हैं। अभी हाल ही में मणिपुर एवं हरियाणा में पनपे दंगे इसी नीति का परिणाम दिखाई देता है। मणिपुर में जहां विस्तारवादी चर्च की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है तो वहीं हरियाणा में आतंकवादी संगठनों का हस्तक्षेप हो सकता है। कुल मिलाकर, ऐसा आभास हो रहा है कि जैसे विस्तरवादी चर्च, आतंकवादी संगठनों, नक्सलवादीयों एवं कुछ विदेशी संस्थानों ने आपस में हाथ मिला लिया हो एवं यह सब मिलकर कुछ भारतीय नागरिकों को साथ लेकर भारत में अशांति फैलाने का प्रयास कर रहे हों।
भारतीय संस्कृति पर हमला करते हुए “माई बॉडी माई चोईस”; “हमको भारत में रहने में डर लगता है”; “दीपावली पर फटाके जलाने से पूरे विश्व का वायुमंडल प्रभावित होता है”; होली पर्व पर गुलाल एवं रंग बिखेरने से पानी की बर्बादी होती है” आदि नरेटिव स्थापित करने का प्रयास किया जा रहा है। वाशिंगटन पोस्ट एवं न्यूयॉर्क टाइम्ज लम्बे लम्बे लेख लिखते हैं कि भारत में मुसलमानों पर अन्याय हो रहा है। कोविड महामारी के दौरान भी भारत को बहुत बदनाम करने का प्रयास किया गया था। वर्ष 2002 की घटनाओं पर आधारित एक डॉक्युमेंटरी को बीबीसी आज समाज के बीच में लाने का प्रयास कर रहा है।
अडानी समूह, जो कि भारत में आधारभूत संरचना विकसित करने के कार्य का प्रमुख खिलाड़ी है, की तथाकथित वित्तीय अनियमितताओं पर अमेरिकी संस्थान “हिंडनबर्ग” अपनी एक रिपोर्ट जारी करता है ताकि इस समूह को आर्थिक नुक्सान हो और यह समूह भारत की आर्थिक प्रगति में भागीदारी न कर सके। हैपीनेस इंडेक्स एवं हंगर इंडेक्स में भारत की स्थिति को झूठे तरीके से पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान जैसे देशों से भी बदतर हालात में बताया जाता है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा, भारतीय मुसलमानों की स्थिति के बारे में तब विपरीत बात करते हैं जब भारतीय प्रधानमंत्री अमेरिका के दौरे पर होते हैं। ऐसा आभास होता है कि भारत के विरुद्ध यह अभियान कई संस्थानों एवं देशों द्वारा मिलाकर चलाया जा रहा है।
दूसरी ओर कुछ देश, विशेष रूप से चीन, भारत के बाजारों को चीन में उत्पादित सस्ते मूल्य की वस्तुओं से पाट देना चाहता है। कुछ वर्ष पूर्व तक चीन को अपनी इस रणनीति में सफलता भी मिली थी और भारत का चीन के साथ व्यापार घाटा लगातार बढ़ता जा रहा था और भारत का लघु उदयोग लगभग समाप्त होने के कगार पर पहुंच गया था। इस सम्बंध में एक महत्वपूर्ण उदाहरण का उल्लेख यहां किया जा सकता है। फोलिक एसिड नामक एक दवाई भारत में ही बनाई जाती थी, इस दवाई को भारतीय कम्पनियां 6,000 रुपए प्रति किलोग्राम की दर पर बेचती थी, परंतु चीन ने भारत में यह दवाई 4000 रुपए प्रति किलोग्राम की दर पर बेचना शुरू कर दिया था। इस दवाई का भारत में निर्माण करने वाली कम्पनियों को इससे घाटा होने लगा और उन्होंने भारत में इस दवाई का उत्पादन बंद कर दिया। जब भारत में चीन के लिए इस दवाई की प्रतिस्पर्धा समाप्त हो गई तो कालांतर में चीन इसी दवाई को भारत में 50,000 रुपए प्रति किलोग्राम की दर पर उपलब्ध करने लगा।
इस कार्य को उत्पाद की “डम्पिंग” का नाम भी दिया जाता है। परंतु, भारत अब अन्य देशों के इन हथकंडों को पहिचान चुका है और उत्पादों की डम्पिंग को रोकने के लिए इन उत्पादों के आयात पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय लेने लगा है। अभी हाल ही में भारत सरकार ने देश में लैपटॉप, टैबलेट, ऑल-इन-वन पर्सनल कंप्यूटर, अल्ट्रा स्मॉल फॉर्म फैक्टर कंप्यूटर आदि के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है। यह प्रतिबंध तत्काल प्रभाव से लागू कर दिया गया है। विदेश व्यापार महानिदेशालय द्वारा जारी अधिसूचना में कहा कि शोध एवं विकास, परीक्षण, बेंचमार्किंग और मूल्यांकन, मरम्मत और वापसी तथा उत्पाद विकास के उद्देश्य से प्रति खेप अब 20 वस्तुओं तक आयात लाइसेंस की छूट रहेगी। यह उत्पाद अभी तक भारत में बिक्री के लिए चीन जैसे देशों से आयात किए जाते थे। भारत सरकार के इस निर्णय से इन उत्पादों का भारत में ही निर्माण करने को बढ़ावा मिलेगा और इस क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भरता हासिल होगी।
अतः अब समय आ गया है कि भारतीय नागरिक कुछ विदेशी संस्थानों एवं कुछ देशों के भारत के विरुद्ध चलाए जा रहे अभियान को गहराई से समझने का प्रयास करें एवं भारत के विश्व के पटल पर एक चमकते सितारे के रूप में स्थापित होने में बाधा नहीं बनते हुए, अपना महती योगदान देने का प्रयास करें।