लखनऊ: यूपी में राज्यसभा चुनाव को लेकर मुकाबला दिलचस्प हो गया है. राज्य की 10 राज्यसभा सीटों पर मुकाबला सपा और बीजेपी के बीच है. बीजेपी ने 8 उम्मीदवारों को उतारा है. जबकि सपा ने तीन. बीजेपी के 7 उम्मीदवारों का जीतना तय माना जा रहा है. जबकि सपा के 2 प्रत्याशी राज्यसभा जाएंगे. लेकिन सपा के तीसरे और बीजेपी के आठवें उम्मीदवार को लेकर लड़ाई अब जोड़-तोड़ तक पहुंच गई है. एक सीट को जीतने के लिए 37 विधायकों के वोट की जरूरत है.
यूपी विधानसभा में कुल 403 सीटों में से 4 सीटें खाली हैं, यानी अभी कुल 399 विधायक हैं. सबकी निगाहें जनसत्ता दल लोकतांत्रिक (जेडीएल) पर टिकी हुई थीं. इस बीच जेडीएल प्रमुख रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया से सुहैलदेव भारतीय समाज पार्टी के मुखिया ओपी राजभर ने मुलाकात की और राजा भैया अब राज्यसभा में बीजेपी को वोट देने को तैयार हो गए हैं. उन्होंने कहा कि सपा के लोगों से हमारी मुलाकात हुई थी लेकिन हम बीजेपी के उम्मीदवार के पक्ष में वोट करेंगे.
इससे पहले सपा के प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम और इसके बाद यूपी बीजेपी चीफ भूपेंद्र सिंह चौधरी भी राजा भैया को मनाने में जुटे हुए थे. लेकिन बाजी हाथ लगी बीजेपी को. दरअसल सपा और बीजेपी दोनों ही पार्टियों के नेताओं से लोकसभा सीटों को लेकर राजा भैया ने मुलाकात की थी. जबकि राजा भैया यह जानना चाह रहे थे कि कौन सी पार्टी उनको लोकसभा में ज्यादा सीटें दे सकती है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, राजा भैया कौशांबी और प्रतापगढ़ सीटें अपनी पार्टी के लिए चाह रहे हैं. ये दोनों सीटें सपा देने को तैयार भी हो गई थी. जबकि बीजेपी की तरफ से कोई वादा नहीं किया गया.
फिर भी बीजेपी का क्यों पकड़ा साथ?
जब सपा नेताओं से राजा भैया ने मुलाकात की तो उनके अखिलेश की पार्टी के साथ जाने के कयास लगाए जाने लगे. लेकिन वोट बैंक के मैथ्स को लेकर वह पसोपेश में थे. जेडीएल नेताओं का मानना था कि सपा के साथ जाने से न सिर्फ पार्टी को पॉलिटिकल माइलेज मिलेगी बल्कि दो सीटें भी मिल जाएंगी. साथ ही सपा और राजा भैया के पुराने रिश्ते भी हैं ही. लेकिन राजा भैया की पकड़ राजपूत वोट बैंक पर है. और राजपूत वोट बैंक इस वक्त बीजेपी के साथ है. कई मौके ऐसे आए जब राजा भैया की पार्टी ने बीजेपी का समर्थन किया. इसके पीछे यही वजह मानी जा रही है. राजा भैया और उनकी पार्टी के नेता यही टटोलने में लगे हैं कि अगर वह साइकिल पर सवार होते हैं, तो राजपूत वोट बैंक भी उनका साथ देगा या नहीं. अखिलेश यादव के साथ जाने पर उनको दो लोकसभा सीटें भी मिल जाएंगी लेकिन क्या उनके खड़े किए उम्मीदवार जीत भी पाएंगे. शायद इन बातों को ध्यान में रखकर उन्होंने कमल पर सवार होने का फैसला लिया.
यूपी में राज्यसभा की लड़ाई
गौरतलब है कि बीजेपी को अपने आठवें प्रत्याशी को जिताने के लिए 9 विधायकों के वोटों की और जरूरत है. NDA के पास बीजेपी+आरएलडी+अपना दल (एस)+निषाद पार्टी+SBSP+जनसत्ता दल के कुल 288 विधायक हैं. लेकिन इसमें भी सुभासपा के एक विधायक अब्बास अंसारी जेल में हैं, यानी बीजेपी के पास 287 विधायक हैं. हालांकि बीएसपी सांसद रितेश पाण्डेय के बीजेपी में शामिल होने के बाद उनके पिता राकेश पाण्डेय का वोट बीजेपी प्रत्याशी को जा सकता है. राकेश पाण्डेय सपा विधायक हैं. यानी बीजेपी को 8 MLA के वोटों की जरूरत और है.
तो सपा को अपने तीसरे प्रत्याशी को जिताने के लिए 1 वोट की जरूरत है. सपा और कांग्रेस के कुल 110 विधायक हैं. इसमें सपा के 2 विधायक रमाकान्त यादव और इरफान सोलंकी जेल में हैं. यानि सपा को अपने तीसरे 3 वोटों की जरूरत है. और सपा विधायक राकेश पाण्डेय अगर बीजेपी प्रत्याशी को वोट करते हैं, तो फिर 4 विधायकों के वोट की ज़रूरत और पड़ेगी. अब देखना यह होगा कि क्रॉस वोटिंग कितने बड़े पैमाने पर होती है? क्योंकि बिना क्रॉस वोटिंग के दोनों ही दलों के प्रत्याशियों का जीतना मुश्किल है.
विधायकों को मिले दिशा-निर्देश
राज्यसभा चुनाव में वोट देने के लिए विधायकों को दिशानिर्देश दिए गए हैं. इसमें कहा गया कि जिस विधायक को जिस भी प्रत्याशी को वोट देना है, उसे प्रत्याशी के नाम के आगे 1 लिखना होगा. राज्यसभा चुनाव में वरीयता के आधार पर वोटिंग का प्रावधान है. ऐसे में जितने प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे हैं, उतनी वरीयता देकर वोट दिया जा सकता है. जैसे यूपी में कुल 11 प्रत्याशी हैं. ऐसे में एक विधायक 1 से लेकर 11 तक कि वरीयता में वोट दे सकता है. हालांकि एक से ज्यादा वरीयता पर वोट देने से वोट की वैल्यू कम हो जाती है. इसलिए राजनैतिक दल अपने अपने विधायकों को बता देते हैं कि उन्हें किसको वोट देना है और किसको एक से ज़्यादा वरीयता के आधार पर वोटिंग करनी है. इस चुनाव में सिर्फ विधानसभा के विधायक वोट दे सकते हैं. विधान परिषद के सदस्य वोट नहीं दे सकते.