“सैर कर दुनिया की ग़ालिब जिन्दगानी फिर कहां! जिन्दगानी ग़र रही तो, नौजवानी फिर कहां!!” इसी के साथ हम शुरुआत करेंगे बंबई नगरी के वैज्ञानिक विश्लेषण का। बंबई शब्द का प्रयोग मैं इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि ऐसा लगता है कि मुंबई एक शहर बस है, लेकिन बंबई आत्मा। ऊपर लिखा हुआ शेर न जाने कितने लेखकों ने अपने लेखनी में प्रयोग किया होगा और इसी क्रम में मैं भी ग़ालिब के इस शेर को प्रयोग करने की आज्ञा ग़ालिब की आत्मा से लेता हूँ। ये ध्यान देने वाली बात होगी की आगे जो भी लिखूंगा सत्य लिखूंगा और अपने अनुभव से प्राप्त चीजों को ही लिखूंगा। अगर आप इससे इतर सोचते हैं या आप सोचते ही नहीं हैं, ये आपकी समस्या है। धन्यवाद।
बंबई एक ऐसा शहर है जहां बहुत लोग अपने सपने संजोने आते हैं। मेरे साथ ऐसा बिलकुल भी नहीं था। सपना देखता था मैं, लेकिन सचिन तेंदुलकर बनने का, नाकी मुंबई आने का। मेरे नौकरी जीवन की शुरुआत बंबई से हुई। इस शहर की एक ही याद थी मेरे जहन में, मरीन ड्राइव पर रखे हुये बड़े-बड़े पत्थर जोकि मैंने किसी सिनेमा में आज से 10-15 वर्ष पहले देखी होगी।
बंबई आने के पश्चात मुझे ऐसा लगा की क्यूँ आ गए यहाँ। रहते वहीं अपने गाँव में, घनघोर दुपहरी में एक घने आम के पेड़ के नीचे खटिया डाल के सो रहे होते। लेकिन तभी याद आया की समाज में व्याप्त पढ़ाई-लिखाई और सामाजिक ऊहापोह से उपजे हुये अहंकार का क्या होगा? चार लोग क्या कहेंगे? लगा ठीक है।
फिर शुरू हुआ बंबई का जीवन।
जीवन कठिन है बंबई में, इसमे कोई दो राय न कभी थी और नाही कभी होगी। समस्याएँ भी ‘मोन्युमेंटल’ होतीं हैं, आप जीवन भर याद रखेंगे। लेकिन उनका समाधान भी हो जाता है। सबसे अच्छी चीज़ है बंबई के लोग। हाँ, लेकिन ये आप पर भी निर्भर करता है की आप कैसे पेश आते हैं। लेकिन अगर दूसरे शहरों से तुलना करें तो बंबई के लोग बेहतरीन होते हैं। हर समय आपके मदद के लिए आगे रहेंगे।
सबसे जरूरी एवं सबसे खतरनाक है बंबई की उपनगरीय लौह पथ गामिनी सेवा (लोकल ट्रेन)। आप अगर इससे दोस्ती कर लेते हैं तो इससे बेहतर कुछ नहीं हो सकता। एक बात जरूरी है उपनगरीय लोकल को लेकर। ये बात है की अगर आप वेस्टर्न लाइन पर बोरीवली या उससे पहले कहीं भी रहते हैं तो विरार जाने वाली लोकल कभी न लें क्योंकि आपको साक्षात हनुमान जी भी नहीं निकाल सकते ट्रेन से अगर आप उतरना चाहते हैं तो। कारण मैं नहीं बताऊंगा, आप एक बार उस ट्रेन में बैठ जाईए और आपको पता चल जाएगा।
बंबई में बारिश भी घनघोर होती है। इतनी बारिश मैंने अपने जीवन काल में कभी नहीं देखा। कभी-कभी ऐसा लगता है की जितनी बारिश पूरे उत्तर प्रदेश में पूरे मॉनसून भर होती है उतनी तो बंबई में एक हफ़्ते में हो जाती है। और अगर आप बारिश में कहीं फस गए तो बेहतर यही रहेगा की आप वहीं ठहर जाएँ नहीं तो आप बह सकते हैं। आम तौर भीषण वर्षा जब होती है तो उपनगरीय सेवा बंद हो जाती है और उस समय एक ही उपाय है– इंतजार।
बंबई में आपको खाने-पीने की असंख्य चीज़ें मिलेंगी। चाहे वो दिल्ली वाला छोला भटूरा हो, गुजरात वाली थाली हो, चेन्नई वाली इडली हो या सदाबहार वड़ा-पाव, आप बस सोचिए और आपको वो जगह बंबई में मिल जाएगी। लेकिन जो सबसे महत्वपूर्ण खाद्य पदार्थ है वो है वड़ा-पाव। इसकी कम से कम 17 प्रजातियाँ पायी जाती है। समोसा पाव, भूर्जी पाव, मिसल पाव, पाव भाजी, इत्यादि-इत्यादि। बाकी हम आप पर छोड़ते हैं, खोजिए और खाईए।
बंबई के आस पास भ्रमण करने के लिए भी तमाम बेहतरीन जगहें हैं। ‘वेस्टर्न घाट्स’ की मनमोहक पहाड़ियाँ बारिश के मौसम में आपको स्वर्ग का दर्शन भी करा सकती हैं। खंडाला, लोनावाला, माथेरन, ईगतपूरी, इत्यादि कुछ ऐसी पहाड़ियाँ हैं जहां घूमा जा सकता है।
बंबई के बारे में लिखने को बहुत कुछ है और आगे भी रहेगा, लेकिन शब्दों के दायरे में रह के लिखना है तो इसका ध्यान भी रखना होगा।
जाते-जाते मैं बंबई पर रियाज़ अहमद की कुछ पंक्तियों का उल्लेख करूंगा :
बेकाबू और बेबाक सा ये शहर
बेचैन और बेलगाम सा ये शहर
बेपरवाह और बेताब सा ये शहर
बिंदास और बेमिशाल सा ये शहर
बेरोजगारों का रोजगार है ये शहर
बेसहारों की आस है ये शहर
सपनों की परवाज़ है ये शहर
मंजिलों की उड़ान है ये शहर
बडा पाव की खुशबू से महकता ये शहर
स्टॉक मार्केट की चाल से डगमगाता ये शहर
समुंदर की लहरों से टकराता ये शहर
लोकल ट्रेन से है गड़गड़ाता ये शहर ।
बहदुरी की आला मिसाल है ये शहर
हर दर्द की दवा बांटता है ये शहर
कहते हैं रातों को भी सोता नहीं है ये शहर
बस सबके सपनों को पिरोता है ये शहर
रचनाकार शिवम तिवारी। लेखक शिवम तिवारी मूल रूप से देवरिया उत्तर प्रदेश के एक गांव कठिनहिया के निवासी हैं। वर्तमान में भारत सरकार के सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम ईसीजीसी में ग्रेड ए अधिकारी हैं। शिवम तिवारी की गिनती क्षेत्र के मेधावी छात्र में होती है। इन्हें बचपन से लिखने का शौक रहा है। अंग्रेजी एवं हिंदी, दोनों में दक्षता हैं लिखने में। बीच-बीच में कलम से हाथ अवश्य़ छूटा लेकिन मन की कलम हमेशा चलती रही। अभी सरकारी सेवा के साथ ही बम्बई में लोकल ट्रेन में सफर करते हैं, इस बीच समय निकाल कर कागज पर अपनी बातों को उकेरते रहते हैं।