गौरव अवस्थी
आज जन्माष्टमी है। भगवान के कृष्णावतार की कथा आज से ही शुरू होती है। ऋषियों मुनियों, विद्वानों और दार्शनिकों ने अलग-अलग तरह से कृष्ण की कथा गाई और सुनाई है। शंकराचार्य, रामानंद, ज्ञानदेव और महात्मा गांधी ने गीता के भाष्य लिखे हैं। विद्वान एवं दार्शनिक विनोबा भावे भी गीता के भाष्यकारों में से एक माने जाते हैं। संत विनोबा भावे कृष्ण अवतार को कई मामलों में रामावतार से श्रेष्ठ मानते हैं। वह कहते हैं कि भगवान राम ने सेवा ली लेकिन कृष्ण ने सेवा की। भावे ने भगवान कृष्ण की मूर्तियां (विशेषताएं) अपने शब्दों की शिलाओं पर बाणों की छेनी से अंकित करते हुए उन्हें ऐसा अद्वितीय महापुरुष बताया जो भारत की जनता को एक साथ परमप्रिय और परमपूज्य हैं। वह कहते हैं-कुछ लोग पूज्य होते हैं और कुछ लोग प्यारे लेकिन भगवान कृष्ण हमारे पूज्य और प्यारे दोनों हैं।
सेवा मूर्ति कृष्ण:
भावी कहते हैं कि जब भगवान राम सेवा लेकर लेकर अप गए तो उन्होंने नया कृष्ण अवतार लिया और उसमें सत्य की सेवा करने का व्रत लिया। उन्होंने गाय घोड़ा तक की सेवा की। राम अवतार में बड़े भाई बने थे कृष्ण अवतार में छोटे भाई बने। अभी अपना राज्याभिषेक नहीं होने दिया। कंस को मारकर अग्रसेन को राज्य सौंप दिया। द्वारिका नगरी बसाई मगर उसका राजा भाई बलराम को बनाया। राम से सेवा लेने की किसी की मजाल नहीं थी लेकिन अर्जुन कृष्ण से कहता है- मेरे रथ का सारथी बनोगे। महाभारत की लड़ाई शाम को बंद होने पर अर्जुन संध्योपासना करने चले जाते थे और कृष्ण घोड़े की सेवा करते थे। उसे नहलाते-धुलाते थे। यह सेवा का एक उदाहरण है। युद्ध की समाप्ति पर युधिष्ठिर ने यज्ञ किया। यज्ञ में तरह-तरह के कम उन्होंने बड़े-बड़े लोगों को सौंपें। कृष्ण ने कहा- हमें भी कोई काम दीजिए। तब युधिष्ठिर ने कहा हम आपको क्या काम दे सकते हैं? अपना काम आप खुद ही ढूंढ लें। कृष्ण ने अपने लिए काम ढूंढा- भोजन की जूठी पतलें उठाने का, सफाई करने और लीपने का। कृष्ण अपना स्थान सेवक का मानते थे। इससे बड़ी बात यह है कि लोगों ने उनका स्थान सेवक का माना। जिसे जो सेवा लेनी थी उसने नि:संकोच उनसे सेवा ली।
प्रेममूर्ति कृष्ण:
भावे कहते हैं कि नर-नारी, आवास-युद्ध सबकी सेवा करने वाले कृष्ण का प्रेम अद्भुत था पर उनकी अभेद भावना का गलत अर्थ लगाया गया। गोपियों से उनके संबंधों को लेकर हिंदुस्तान में गलत धारणा बिठाई गई । कवियों ने कृष्ण के चरित्र का विकृत वर्णन किया है। गोपियों से कृष्ण के संबंध का एक उदाहरण दिखाते हुए भावे कहते हैं-भरी सभा में द्रौपदी का चीरहरण होने लगा। जब कुछ नहीं बचा। किसी से भी मदद नहीं हो सकी। तब उसने भगवान कृष्ण को याद किया। सतीत्व और चरित्र की रक्षा के लिए द्रौपदी प्रार्थना करती है- हे कृष्ण! गोपीजन प्रिय! कृष्ण के लिए द्रौपदी ने गोपीजन प्रिय शब्द प्रयोग किया है। अगर कृष्ण के गोपियों से अंतरंग संबंध होते तो क्या वह ऐसा कहती? नारीत्व की रक्षा के लिए उन्हें पुकारती? यह है उनका चरित्र। ऐसे मौके पर उसने कृष्ण को याद किया। जहां कोई काम नहीं आया, वहां कृष्ण काम आए। कवियों ने लिखा है कि भगवान ने भक्तों के लिए 10 अवतार लिए। भावे कहते हैं कि कृष्ण ने अंबरावतार के रूप में 11वां अवतार लिया। आजकल कहा जाता है कि स्त्रियों को रक्षा के लिए पिस्तौल रखनी चाहिए पर द्रौपदी ने पिस्तौल नहीं रखी। उसने बस भगवद प्रेम रखा और उस प्रेम के आगे दुशासन की कुछ न चली।
ज्ञानमूर्ति कृष्ण:
भावे कहते हैं कि कौरव और पांडवों की सेनाओं के बीच में कृष्ण ने रथ लाकर खड़ा कर दिया और अद्वितीय वीर अर्जुन मोहग्रस्त हो गया। अर्जुन को मोह अहिंसा के कारण नहीं माया के कारण हुआ। अर्जुन अपनी माया पर कर्तव्य का सम्पुट दे रहे थे। तब कृष्ण ने गीता के रूप में वह उपदेश दिया, जिसने हिंदुस्तान की 5000 साल की विचार प्रणाली को प्रभावित किया। वह कहते हैं कि गीता वह शास्त्र है जिसे आज आप चाहते हैं। गीता वह शास्त्र है जिसे कल आप चाहेंगे। कृष्ण ने समत्व और साम्य योग का जो उपदेश गीता में दिया, वह अद्वितीय है।
क्षमा मूर्ति कृष्ण:
संत विनोबा भावे के शब्द हैं -महाभारत के समय में कौरवों का संहार हो गया। पांच पांडव और कृष्ण बचे हैं। भगवान कृष्ण गांधारी से मिलने जाते हैं। गांधारी कहती है कि यह सब तुमने किया है? भगवान श्रीकृष्ण हंसे और कहा- जो होने वाला था, सो हो गया। कृष्ण का अंत भी कैसा आया? यादव लड़ रहे हैं। मर रहे हैं। बलराम चले गए हैं। भगवान कृष्ण वृक्ष के नीचे एक पांव के ऊपर दूसरा पांव रखे आराम से बैठे हैं। ध्यानावस्थित और शांत। उनके पांव का आरक्त रंग देखकर जरा ब्याध को हिरण का भ्रम हो जाता है। वह तीर मारता है, फिर पास आता है। भगवान कृष्ण उफ़! कहां बाण मारा? दुखी हो जाता है। भगवान कृष्ण उसे कह रहे हैं- हे जरे, महावीर तूने मेरी इच्छा पूरी की। मुझे शरीर छोड़ने ही था। तू स्वर्ग में जाएगा। भावे कहते हैं कि प्रभु ने अपने अंतिम समय में हमें क्षमा का आदर्श दिखाया।
उनके मुताबिक, सूली पर लटकाए जाते समय ईसा को याद आया और उन्होंने कहा- मेरी इच्छा नहीं तेरी इच्छा होगी। अपने मारने वाले के लिए उन्होंने भगवान से प्रार्थना की- भगवान तू इन्हें क्षमा करना, क्योंकि वह जानते नहीं कि क्या कर रहे हैं? ऐसा क्षमा का आदर्श ईसा मसीह ने दिखाया, मगर भगवान कृष्ण ने जरा व्याध से कहा-तूने कोई पाप नहीं किया है। मेरी तो इच्छा ही थी जाने की। यह भगवान कृष्ण ने हमारे सामने क्षमा का परम आदर्श प्रस्तुत किया।
संत विनोबा भावे द्वारा दिखाई गई भगवान श्री कृष्ण की यह चार मूर्तियां हमें कृष्ण अवतार को सरल शब्दों में समझाती और उन पर चलने को प्रेरित करती हैं। उनकी यह व्याख्या समस्त मानव जाति के लिए आदर्श भी उपस्थित करती है।
(प्रख्यात पत्रकार प्रभाष जोशी की विनोबा के साथ 39 दिन की रिपोर्टिंग पर आधारित पुस्तक विनोबा दर्शन से साभार)