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Home साहित्य

श्रमिक हूं मैं

Frontier Desk by Frontier Desk
18/07/20
in साहित्य
श्रमिक हूं मैं

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नागेंद्र प्रसाद
नागेंद्र प्रसाद (एन.पी.सिंह)

तमाम अभिजात्य पहचान का मूल

स्वयं स्वाधीन अस्मिता को तड़पता,

‘लघु’ और ‘महामानव’ की वीथियों में उलझता

भाव शून्य हो सिसकता

कौन हूँ मैं?

उलझी बौद्धिक  परिभाषाओं

प्रमेयों, शाब्दिक जाल को

निरीह बन निहारता

अपनी परिभाषा को गढ़ता

कौन हूँ मैं?

संसद के गलियारों की खोखली दहाड़ में

तलाशता अपना निरर्थक अभीष्ट,

खोयी ‘निजता’ के रक्त से

राजनीतिक पिपासा का अविराम सिंचक

कौन हूँ मैं?

चिंतकों के बौद्धिक  एहसास की कारा में बंद,

तंत्र के मकड़ा जाल में पिसता

संगोष्ठियों में पाता नकारा सहानुभूति,

मनोरंजक मानसिक जुगाली का प्याला,

कौन हूँ मैं?

व्यवस्था- परिवर्तन के फलसफों की गूँज,

सत्याग्रहों का मूल

सशक्त क्रांतियों का त्रासद शूल,

कुकरमुत्ते की तरह उभरते

उदारवादी संगठनों की नपुंसक आस्था

कौन हूँ मैं?

हूँ दार्शनिकों का दर्शन

साहित्यकर्मियों की अंतर्वस्तु,

नक्सलियों का उर्वरक हूँ,

नितांत समाज सेवा हूँ स्वयंसेवियों की,

नियोक्ता पूँजीपतियों का

कामचोर आवारा हूँ।

नौकरशाहों के संवेदनहीन

कँटीले दंश को सहता

अशक्त बेसहारा हूँ,

बुद्धिजीवियों का बौद्धिक सहारा हूँ,

हूँ समाजसेवियों का बेचारा,

राजनेताओं का सहज सुलभ चारा,

कोरे आँसुओं के छलावे में

‘निज’ को भुलाता,

परिवर्तन की तड़पन से दूर

गीता के किसी अवतारी

महामानव की प्रतीक्षा में डूबा

सर्पिल मानव के मानवतावादी

गुंजलक में उलझा,

वही चिरस्थायी

अंतहीन यातना का सहज भोक्ता

आपका ही पीड़ित ‘लघुमानव’,

हाँ! अदना -सा श्रमिक हूँ मैं।

 

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