देहरादून : कभी कांग्रेस का गढ़ रही टिहरी लोकसभा सीट के लिए अब पार्टी जद्दोजहद कर रही है। इस सीट पर पार्टी की आस अब वर्ष 2024 के आम चुनाव पर टिकी है। पार्टी के किसी भी नेता ने अब तक इस सीट के लिए दावेदारी पेश नहीं की है, लेकिन, कुछ वरिष्ठ नेताओं के नाम संभावित तौर पर सामने आ रहे हैं।
इनमें वर्तमान चकराता विधायक व पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह, पूर्व कैबिनेट मंत्री नव प्रभात व शूरवीर सिंह सजवाण का नाम प्रमुखता से लिया जा रहा है। हालांकि अब तक इनमें से किसी भी नेता की ओर से दावेदारी सामने नहीं आई है। इधर, पार्टी ने संगठन स्तर पर बूथ से लेकर जिला स्तर पर तैयारियां शुरू कर दी है। वर्ष 2012 से अब तक इस सीट पर लगातार भाजपा का कब्जा है।
बड़े फलक पर बड़ी तैयारी के साथ मैदान में उतरना होगा
राज्य गठन के बाद वर्ष 2004 में हुए आम चुनाव में इस सीट पर मानवेंद्र शाह ने बीजेपी के टिकट पर जीत दर्ज की। मानवेंद्र शाह के निधन के बाद वर्ष 2007 में हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने बाजी मारी। कांग्रेस उम्मीदवार विजय बहुगुणा ने लंबे अर्से बाद कांग्रेस को यहां से जीत दिलाई। इसके बाद वर्ष 2009 के आम चुनाव में भी कांग्रेस प्रत्याशी विजय बहुगुणा जीते।
उन्होंने बीजेपी के जसपाल राणा को हराया। हालांकि वर्ष 2012 के उपचुनाव में बीजेपी ने फिर इस सीट पर कब्जा कर लिया और पार्टी के टिकट पर महारानी माला राज्यलक्ष्मी शाह यहां से चुनाव जीतीं। इसके बाद वर्ष 2014 और 2019 में भी राज्यलक्ष्मी शाह ने भाजपा के टिकट पर जीत दर्ज की। अब कांग्रेस वर्ष 2012 से चल रहे सूखे को वर्ष 2014 में खत्म करना चाहेगी, जिसके लिए उसे बड़े फलक पर बड़ी तैयारी के साथ मैदान में उतरना होगा।
राजशाही परिवार के कब्जे में रही अधिकतम समय तक यह सीट
देश में पहली बार वर्ष 1952 में हुए आम चुनाव में टिहरी सीट पर राज परिवार से राजमाता कमलेंदुमति शाह ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीत दर्ज की। इसके बाद वर्ष 1957 में पहली बार स्वतंत्र रूप से हुए चुनाव में यहां कांग्रेस के टिकट पर कमलेंदुमति शाह के बेटे मानवेंद्र शाह ने जीत दर्ज की। इसके बाद कांग्रेस के टिकट पर ही मानवेंद्र शाह ने वर्ष 1962 और 1967 में भी लगातार दो बार जीत दर्ज की। वर्ष 1962 के चुनाव में तो कांग्रेस ऐसी पार्टी थी, जो अकेले यहां से चुनाव लड़ी थी। वर्ष 1971 में कांग्रेस ने नए उम्मीदवार पर दांव खेला और अपने टिकट पर परिपूर्णानंद पैन्यूली को यहां से उतारा। उन्होंने भी कांग्रेस को निराश नहीं किया और जीत दिला दी। इस चुनाव में उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार मानवेंद्र शाह को हराया।
नई पार्टी ने पहली बार दर्ज की जीत
वर्ष 1977 में पहली बार ऐसा हुआ जब किसी नई पार्टी ने यहां जीत दर्ज। कांग्रेस उम्मीदवार हीरा सिंह बिष्ट को पछाड़ते हुए बीएलडी उम्मीदवार त्रेपन सिंह नेगी यहां से विजयी रहे। इसके बाद वर्ष 1980 में कांग्रेस के त्रेपन सिंह नेगी ने फिर से इस सीट पर जीत दर्ज की। वर्ष 1984 के चुनाव में त्रेपन सिंह कांग्रेस का साथ छोड़कर लोकदल में शामिल हो गए और कांग्रेस ने यहां से नए उम्मीदवार बृह्मदत्त को मैदान में उतारा। ब्रह्मदत्त ने त्रेपन को 14 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से हराकर यहां से बड़ी जीत पाई और सांसद चुने गए। इसके बाद वर्ष 1989 में भी वह दोबारा जीते।
भाजपा ने पहली बार 1991 में खोला यहां से अपना खाता
वर्ष 1991 में टिहरी सीट का चुनावी गणित उस वक्त बदला, जब पहली बार भाजपा ने अपने पैर जमाए और इस सीट पर जीत का खाता खोला। कांग्रेस का गढ़ बन चुकी टिहरी गढ़वाल सीट पर बीजेपी में शामिल हो चुके मानवेंद्र शाह ने कांग्रेस प्रत्याशी बृह्मदत्त को हराया। इसके बाद वर्ष 1996, 1998, 1999 और 2004 में भी मानवेंद्र शाह ने बीजेपी के टिकट से लगातार जीत दर्ज की और कांग्रेस लगातार हारती चली गई।