“नहीं नारों के दम पर एक भी सीढ़ी चढ़ेगी
नतीजे हम दिखाएंगे तभी हिंदी बढ़ेगी।”
दिनांक 26 अक्टूबर को हिंदी विभाग, श्री वेंकटेश्वर महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय ने अपनी हीरक जयंती के उपलक्ष्य में हिंदी और प्रौद्योगिकी विषय पर प्रसिद्ध तकनीक और भाषाविद एवं राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित बालेंदु शर्मा ‘दाधीच’, माइक्रोसॉफ्ट, निदेशक-स्थानीय भाषाएँ और सुगम्यता का व्याख्यान आयोजित किया। व्याख्यान का केन्द्र हिंदी भाषी समाज और हिंदी भाषा का उपयोग करने वाले विद्यार्थियों को भाषा प्रौद्योगिकी से परिचित कराना तथा उसके विशाल व्यावसायिक फलक से अवगत कराना था। डॉ. बालेंदु शर्मा दाधीच ने सबसे पहले हिंदी के महान कवि सर्वेश्वर की कविता “वो आये हैं ” को याद करते हुए उसकी कुछ पंक्तियां सुनाई- “और आज छीनने आए हैं वे/हमसे हमारी भाषा/यानी हमसे हमारा रूप/ जिसे हमारी भाषा ने गढ़ा है/और जो जंगल में/ इतना विकृत हो चुका है/कि जल्दी पहचान में नहीं आता।” और कहा कि आज के समय में भाषा के प्रति यह सोच नहीं चलेगी।अब मनुष्य का रूप बदल रहा है तो भाषा तो बदल के रहेगी और भाषा बदलेगी तभी जिंदा रहेगी ।परिस्थिति बदल गयी है।
कलम- कागज और अखबार की जगह कंप्यूटर, लैपटॉप और एंड्रॉयड मोबाइल के जमाने में हम प्रवेश कर चुके हैं। माध्यम बदलते ही सबका रूप और व्यवहार बदल जाता है। हिंदी को आज कोरी भावुकता या सिर्फ दिल से नहीं बचाया जा सकता है।अगर हम तकनीक के साथ आगे नहीं बढ़े तो डिजिटल डायनासोर बन कर रह जाएंगे।उन्होंने अपनी कविता की पंक्तियों के माध्यम से समझाते हुए कहा कि-
“ठहर जाती हैं भाषाएं जो नयेपन से डरती हैं
नवाचारों को अपनाए तभी हिंदी बढ़ेगी।
ये तकनीक कारोबार औ विज्ञान की दुनियां
जो इनके साथ चल पाएगी तो हिंदी बढ़ेगी।”
इसके साथ ही बालेंदु जी ने यह बताया कि तकनीक भाषा को रोकने की जगह उसे सक्षम बनाने की बात करती है।आज तकनीक के सहयोग से रीमोट कार्य करते हैं। दूर-दूर रहते हुए हम अपने सभी कार्यों को ठीक समय पर करते हैं। इसके लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और क्लाउड कंप्यूटिंग का सहारा लिया जाता है।अनजाने में और अप्रत्यक्ष रूप में आज हम सब इस तकनीक का फायदा उठा रहे हैं। हमारा आज का यह कार्यक्रम भी दोनों के जरिये हो रहा है। हम क्लाउड के जरिये आपस में जुड़े हैं। अतीत की कल्पना आज हकीकत में बदल चुकी हैं।अलेक्सा और कुलटाना जैसे सॉफ्टवेयर हमारे अधिकतम कार्यों को करने में सक्षम हैं।और यह सब हिंदी में भी हो रहा है।
उनका कहना था कि आज हिंदी की सबसे बड़ी चुनौती जागरूकता का अभाव है। हम फॉन्ट, कीबोर्ड और ट्रांसलेशन की चर्चा में ही सीमित हैं अंग्रेजी नए सॉफ्टवेयर और प्रोग्रामिंग की बात करती है।हमें अपनी भाषा और तकनीक संबंधी दायरे को बढ़ाना होगा।तकनीक भाषा की प्रयोग क्षमता और हमारी कार्य कुशलता को बढ़ाती है। ये दोनों आज के समय हमारे व्यावसायिक और अकादमिक विकास के लिए अनिवार्य हैं। उन्होंने टेक्नोलॉजी के माध्यम से भाषा के विभिन्न प्रयोगों और उपयोगों को स्क्रीन शेयर के माध्यम से करके दिखाया।इस तरह हिंदी भाषा और प्रौद्योगिकी के विशाल फलक और उसकी व्यावसायिकता से जुड़े अनेक पहलुओं को सबके सामने प्रस्तुत किया।कार्यक्रम का संचालन विभाग प्रभारी डॉ. ऋचा मिश्र ने किया। उन्होंने कॉलेज की प्राचार्या प्रोफेसर सी.शीला रेड्डी को स्वागत वक्तव्य के लिए आमंत्रित करते हुए डॉ. बालेंदु शर्मा दाधीच जी का श्रोताओं से परिचय कराया तथा धन्यवाद ज्ञापन किया।
विभाग की एक अन्य सदस्य डॉ.अर्चना -जो इस ऑनलाइन कार्यक्रम का तकनीक संचालन कर रही थीं-ने विद्यार्थियों की तरफ से प्रश्न आमंत्रित किये जिनमें मुख्य रूप से बी.ए. प्रोग्राम की छात्रा आमना हिंदी ऑनर्स के विद्यार्थियों राम किशोर चौधरी, अभयंक आयुष भदुडिया ने प्रश्न पूछे।छात्रों के प्रश्न का केंद्र महाविद्यालयों में भाषा और प्रौद्योगिकी संबंधी शिक्षण व्यवस्था,भाषा लैब की आवश्यकता तथा हिंदी में हार्डवेयर की खोज से सम्बंधित थे। डॉ. बालेंदु जी ने विद्यार्थियों के प्रश्नों और जिज्ञासाओं के उत्तर बहुत ही व्यावहारिक और वर्तमान संदर्भों से जोड़कर दिए।
कार्यक्रम में कॉलेज के विभिन्न विभागों, दिल्ली विश्वविद्यालय के विभिन्न कॉलेजों एवम देश -विदेश के विभिन्न विश्वविद्यालयों के शिक्षक , विद्यार्थी एवम शोधार्थी शामिल हुए। श्री वेंकटेश्वर कॉलेज का हिंदी संकाय बहुत ही सक्रिय है निरन्तर हिंदी भाषा एवम साहित्य सम्बन्धी कार्यक्रम आयोजित करता रहता हैं।