नई दिल्ली: मुकेश अंबानी (Mukesh Ambani) की कंपनी रिलायंस जियो (Reliance Jio) ने साल 2016 में टेलिकॉम सेक्टर में धमाकेदार एंट्री की थी। इससे कई कंपनियों का बोरिया बिस्तर बंद हो गया और कई कंपनियां अब भी इस झटके से नहीं उबर पाई हैं। लेकिन भारती एयरटेल (Bharti Airtel) ने लगातार खुद को कंप्टीशन में बनाए रखा। आखिर यह चमत्कार कैसे हुआ? कंपनी के चेयरमैन सुनील मित्तल (Sunil Mittal) जियो को बड़ी चुनौती मानते हैं लेकिन उनका कहना है कि इसमें कंपनी के अस्तित्व पर खतरा नहीं था। उनके लिए 2003 और 2020 के संकट ज्यादा बड़े थे जिनके कारण कंपनी का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया था। मित्तल ने इकनॉमिक टाइम्स के साथ एक इंटरव्यू में विस्तार से इस बारे में बात की।
मित्तल ने कहा कि 2003 उनकी कंपनी के लिए सबसे खराब दौर था। तब कंप्टीशन बहुत रफ हो गया था। तब हमारी कंपनी नई थी। हम उस स्थिति से मजबूती से निकले और हमने आईबीएम, नोकिया और एरिक्सन के साथ डील की। 2008-10 का संकट सरकार की नीतियों के कारण आया। सरकार ने बिना दिमाग लगाए 10-12 नए लाइसेंस दे दिए। इससे पहले से मौजूद टेलिकॉम कंपनियों की मुश्किलें बढ़ गई। हमारा रेवेन्यू, प्रॉफिट प्रभावित हुआ। लेकिन यह स्थिति 2003 की तरह नहीं थी। तब तक हमारी स्थिति मजबूत हो चुकी थी।
कैसे बची एयरटेल
उन्होंने कहा कि साल 2016 में जियो की सूनामी में एयरटेल ने खुद को बचाए रखा। बाकी कंपनियां इसमें डूब गईं। इससे साफ है कि एयरटेल ने सही मायनों में खुद को एक इंस्टीट्यूशन के रूप में बदला है। अगर 2016 में जियो की एंट्री नहीं होती तो कुछ और कंपनियां होती। संभव है कि देश में पांच या छह टेलिकॉम कंपनियां होती। 2008 में भी कई नई कंपनियां आई थीं लेकिन यह हमारे लिए वजूद बचाने का सवाल नहीं था। हमारे लिए 2008 या 2016 की तुलना में 2003 और 2020 ज्यादा बड़ा संकट था। 2020 में एजीआर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसला आया था।
यह पूछने पर कि 2016 की घटनाओं को वह किस प्रकार देखते हैं, मित्तल ने कहा कि इससे कुछ अच्छा भी हुआ है। इससे डेटा रिवॉल्यूशन में तेजी आई, डेटा की कीमत में गिरावट आई और नेटवर्क का विस्तार हुआ। इसमें खराब बात यह थी कि उस समय पॉलिसी को सही तरीके से हैंडल नहीं किया गया। इससे कई कंपनियां कंप्टीशन से बाहर हो गईं। एयरटेल एकमात्र सरवाइवर है। एयरटेल एक मजबूत इंस्टीट्यूशन बन चुकी है। एक ऐसी कंपनी जिसे मार्केट का गहरी समझ है और जो कस्टमर्स से मजबूती से जुड़ी है। यह अब कंज्यूमर सेंट्रिक कंपनी बन चुकी है।