नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश पुलिस की जांच की आलोचना करते हुए मौत की सजा पाए एक व्यक्ति को बरी कर दिया। कोर्ट ने 2012 में अपने भाई, भाभी और उनके चार बच्चों की हत्या के लिए मौत की सजा पाए एक व्यक्ति को यह कहते हुए बरी कर दिया कि जांच में कई खामियां हैं जिसे सुधारना असंभव है।
आरोपी गंभीर सिंह को बरी करते हुए जस्टिस विक्रम नाथ, संजय करोल और संदीप मेहता की पीठ ने 28 जनवरी को फैसला सुनाया कि अभियोजन पक्ष आरोपी के अपराध को साबित करने के लिए मकसद, आखिरी बार देखे जाने की स्थिति जैसी परिस्थितियों को साबित करने में विफल रहा है। पीठ ने कहा, “अभियोजन पक्ष ने उपरोक्त कहानी को साबित करने के लिए कोई भी विश्वसनीय सबूत रिकॉर्ड पर नहीं लाया है, जिससे अपीलकर्ता-आरोपी के मकसद को साबित किया जा सके।”
पीठ ने कहा, “रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री पर पूरी तरह से विचार करने के बाद, हम पाते हैं कि वर्तमान मामला जांच एजेंसी के साथ-साथ अभियोजन पक्ष की ओर से पूरी तरह से उदासीन दृष्टिकोण से जुड़ा हुआ है। 6 निर्दोष व्यक्तियों की जघन्य हत्याओं से जुड़े मामले की जांच बेहद लापरवाही से की गई।”
यूपी पुलिस की जांच में अदालत ने बताई खामियां
जांच की आलोचना करते हुए पीठ ने कहा, “जांच अधिकारी ने घटना के समय के अनुसार अपराध स्थल पर या उसके आसपास आरोपी की मौजूदगी स्थापित करने के लिए अपराध स्थल के आस-पास रहने वाले एक भी ग्रामीण से पूछताछ नहीं की। मकसद के उचित सबूत जुटाने के लिए कोई भी प्रयास नहीं किया गया। जांच अधिकारी बरामद वस्तुओं/भौतिक वस्तुओं की सुरक्षा के बारे में कोई भी सबूत इकट्ठा करने में विफल रहे, जब तक कि वे फोरेंसिक साइंस लैबोरेटरी में नहीं पहुंच गए। जांच करने में इस घोर लापरवाही ने आरोपी के खिलाफ अभियोजन पक्ष के मामले की विफलता में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।”
“हमें यह भी लगता है कि मुकदमा चलाने वाले सरकारी वकील और साथ ही ट्रायल कोर्ट के पीठासीन अधिकारी ने भी मुकदमा चलाने में पूरी तरह लापरवाही बरती। चार मासूम बच्चों सहित 6 लोगों की जघन्य हत्याओं से जुड़े मामले में अभियोजन पक्ष के मुख्य गवाह की गवाही को साक्ष्य अधिनियम की अनिवार्य प्रक्रिया का पालन किए बिना, बेहद लापरवाही से दर्ज किया गया।”
फैसले में कहा गया, “अगर तर्क के लिए हथियारों की बरामदगी के साक्ष्य को स्वीकार भी कर लिया जाए तो भी तथ्य यह है कि एफएसएल रिपोर्ट हथियारों पर पाए गए ब्लड ग्रुप के बारे में कोई संकेत नहीं देती है।”
सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को किया बरी
पुलिस ने 8-9 मई 2012 की रात को सत्यभान, उसकी पत्नी पुष्पा और उनके बच्चों की हत्या के सिलसिले में गंभीर सिंह, एक महिला गायत्री को गिरफ्तार किया और एक नाबालिग को पकड़ा। एक आरोपी पर नाबालिग के तौर पर मुकदमा चलाया गया। मार्च 2017 में, ट्रायल कोर्ट ने गायत्री को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया और गंभीर सिंह को दोषी ठहराते हुए मौत की सजा सुनाई। बाद में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने गायत्री को बरी करने और गंभीर की दोषसिद्धि और मौत की सजा को बरकरार रखा।
उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली उनकी अपील पर निर्णय लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “हाई कोर्ट के फैसले का सावधानीपूर्वक अध्ययन करने पर हम पाते हैं कि उच्च न्यायालय अभियोजन पक्ष के मामले में इन अंतर्निहित असंभवताओं और कमियों पर ध्यान देने में विफल रहा है। अभियोजन पक्ष के मामले का ताना-बाना खामियों से भरा हुआ है, जिन्हें सुधारना असंभव है। इस प्रकार, आरोपित निर्णय जांच के दायरे में नहीं आते हैं और उन्हें रद्द किया जाना चाहिए। परिणामस्वरूप, अपीलकर्ता-अभियुक्त की दोषसिद्धि और उसे दी गई मृत्युदंड की सजा भी बरकरार नहीं रखी जा सकती है।”