नई दिल्ली: देश की शीर्ष अदालत ने आज एक कानूनी सवाल पर अपना फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सड़क एक्सीडेंट के लिए केवल लाइट मोटर व्हीकल लाइसेंस रखने वालों को आरोपी नहीं बनाया जा सकता। रोड एक्सीडेंट की और भी दूसरी वजह हो सकती है। सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की पीठ ने लाइट मोटर व्हीकल (LMV) लाइसेंस धारकों के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा कि ये लोग 7500 किलो से हल्के ट्रांसपोर्ट वाहन भी चला सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने ही 2017 में दिए फैसले को बरकरार रखा है। इस समय कोर्ट ने LMV लाइसेंस रखने वालों को 7500 किलो से कम परिवहन वाहनों को चलाने की अनुमति प्रदान की थी। कोर्ट के इस फैसले से LMV लाइसेंस रखने वालों को राहत मिला है। वहीं बीमा कंपनियों को बड़ा झटका लगा है।
बीमा कंपनियों ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि सड़क पर होने वाले मोटर एक्सीडेंट को लेकर होने वाले मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (एमएसीटी) और कोर्ट की अपील और आपत्तियों को अनदेखी करते हुए कंपनियों पर बीमा के लिए किए गए दावे का भुगतान का आदेश दे रही है। बीमा धारकों ने आगे कहा कि इंश्योरेंस को लेकर हमेशा कोर्ट बीमा धारकों के पक्ष में ही फैसला देती है।
कोर्ट ने सुरक्षित रख लिया था फैसला
बीते 21 अगस्त को ही सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पी एस नरसिम्हा, जस्टिस पंकज मित्तल, जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस मनोज मिश्रा ने इस मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस मामले पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार के अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा था कि मोटर वाहन (एमवी) एक्ट 1988 में संशोधन का विचार-विमर्श लगभग हो चुका है। जो आगामी संसद के शीतकालीन सत्र पेश किया जा सकता है।
आर वेंकटरमणी की दलीलों को सुनकर कोर्ट ने कहा था कि देवांगन केस के फैसले के आधार पर देश में लाखों ड्राइवर काम कर रहे हैं। यहां कानून के सामाजिक असर को समझा जरूरी है। कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि वर्तमान समय में सड़क सुरक्षा एक बहुत ही गंभीर मामला बन चुका है।
सड़क दुर्घटना की वजह से 2023 में 1.7 लाख लोगों की मौत हुई है। इन एक्सीडेंटों के बारे में कहना कि ये सब हल्के वाहनों के चालकों की वजह से हुए है तो ये पूरी तरह से निराधार है। जबकि इसके पीछे मुख्य वजह सीट बेल्ट नियमों का पालन न करना, ड्राइविंग के समय मोबाइल का प्रयोग करना, नशे के हालात में वाहन चलाना इत्यादि हैं।