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सुप्रीमकोर्ट का स्टे कुछ तीखे सवाल छोड़ गया

Jitendra Kumar by Jitendra Kumar
05/08/23
in मुख्य खबर, राष्ट्रीय
सुप्रीमकोर्ट का स्टे कुछ तीखे सवाल छोड़ गया

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अजय सेतिया


राहुल गांधी के कन्विक्शन पर सुप्रीमकोर्ट का स्टे आश्चर्यजनक नहीं है, लेकिन हैरानी यह है कि अदालत ने उनकी टिप्पणियों को अनुचित भी माना, इसके बावजूद उनके कन्विक्शन पर स्टे लगा दिया| कन्विक्शन पर स्टे इसके बावजूद हुआ कि राहुल गांधी ने अपनी अनुचित टिप्पणियों के लिए सुप्रीमकोर्ट में भी माफी नहीं मांगी| राहुल गांधी के वकील अभिषेक मनु सिंघवी पहले दिन से दावे के साथ कह रहे थे कि सुप्रीमकोर्ट से कन्विक्शन पर स्टे मिलेगा, वह हैरान थे कि सेशन कोर्ट और हाईकोर्ट ने कन्विक्शन पर स्टे क्यों नहीं दिया|

अभिषेक मनु सिंघवी की सुप्रीमकोर्ट में मुख्य दलील यह थी कि मानहानि केस में उनकी दो साल की सजा उनका राजनीतिक कैरियर खराब करने के लिए की गई, वह पिछले दो सत्रों से संसद में नहीं जा सके हैं| वह वायनाड के सांसद हैं, वायनाड के मतदाताओं का क्या कसूर है कि संसद में उनका प्रतिनिधित्व न हो| अभिषेक मनु सिंघवी की दलील बिलकुल जायज है, लेकिन सवाल यह खड़ा होता है कि क्या आम आदमी और सांसदों विधायकों के लिए क़ानून अलग अलग होना चाहिए|

कन्विक्शन पर स्टे का एक आधार सांसद होने को भी बताया गया है, लेकिन सुप्रीमकोर्ट ने कन्विक्शन पर स्टे जरुर दिया है, उन्हें बरी नहीं किया है, मुकदमा सेशन कोर्ट में ही चलेगा| लोकसभा स्पीकर सुप्रीमकोर्ट के इस फैसले के बाद राहुल गांधी की सदस्यता तो बहाल कर देंगे, लेकिन 4 अगस्त के सुप्रीमकोर्ट के फैसले का मतलब यह नहीं है कि अगर लोकसभा चुनावों तक वह बरी नहीं होंगे, तो वह लोकसभा चुनाव लड़ सकेंगे|

सुप्रीमकोर्ट के जज का यह कहना कि लोअर कोर्ट ने अधिकतम सजा क्यों दी, अदालत का वीआईपी के लिए अलग रूख की तरफ इशारा करता है| अगर सजायाफ्ता सांसद या विधायक न होता, कोई सामान्य व्यक्ति होता, जिसे दो साल की सजा होने पर उसकी सांसदी या विधायकी न जाती, तो क्या तब भी सुप्रीमकोर्ट की यह टिप्पणी होती|

सुप्रीमकोर्ट ने यह कह कर एक इशारा तो कर ही दिया कि इस मामले में अधिकतम दो साल की सजा क्यों दी गई, अगर 1 साल 11 महीनों की सजा होती, तो राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता नहीं जाती| यह सवाल भी उठ सकता है कि क्या सांसदों या विधायकों को किसी भी आपराधिक मामले में दो साल या दो साल से ज्यादा सजा देनी ही नहीं चाहिए| जन प्रतिनिधित्व क़ानून की धारा 8 (3) में प्रावधान है कि किसी विधायक या सांसद को अगर किसी आपराधिक मामले में दो साल या उससे ज्यादा सजा होती है, तो उसकी सदस्यता खत्म हो जाएगी|

इससे पहले इसी जन प्रतिनिधित्व क़ानून की धारा 8 (4) में कहा गया था कि अगर मामला अगली अदालत में लंबित है, तो धारा 8 (3) लागू नहीं होगी। इसका मतलब यह था कि सुप्रीमकोर्ट का अंतिम फैसला आने तक वे विधायक या सांसद बने रह सकते थे| सुप्रीम कोर्ट ने इसे उचित नहीं माना था, 2013 में सुप्रीमकोर्ट के दो जजों जस्टिस ए.के. पटनायक और जस्टिस एस.जे. मुखोपाध्याय की पीठ ने अधिवक्ता लिली थॉमस और एनजीओ लोक प्रहरी के सचिव एसएन शुक्ला की जनहित याचिका पर धारा 8 (4) को रद्द कर दिया था|

धारा 8 (4) इसलिए रद्द की गई थी कि कोर्ट में सालों साल मुकदमा चलता रहता है और सांसद विधायक अपने पदों पर बने रहते हैं| अब जब ऊपरी अदालतें, और यहां तक कि सुप्रीमकोर्ट भी सांसदों, विधायकों के कन्विक्शन स्टे करने लगी हैं, और मुकदमा सालों साल चलता रहेगा, तो राहुल गांधी का मुकदमा भी अब सैशन कोर्ट, हाईकोर्ट, सुप्रीमकोर्ट में सालों साल चलता रहेगा| इस तरह से सुप्रीमकोर्ट का 2013 का फैसला अर्थहीन हो गया है| हैरानी यह है कि सुप्रीमकोर्ट ने कन्विक्शन पर स्टे की दलील ही यह दी है कि वायनाड के मतदाताओं का लोकसभा में प्रतिनिधित्व कौन करेगा|

सुप्रीमकोर्ट वीवीआईपी के लिए अपने फैसले कैसे पलट देती है, यह इसका सबूत है| लेकिन यह पहला मामला नहीं है, इससे पहले लक्षद्वीप के सांसद मोहम्मद फैजल का है, जिनकी सदस्यता रद्द हो जाने के बाद बहाल की गई है| एक बार सदस्यता रद्द हो जाने के बाद लोकसभा स्पीकर, या किसी भी विधायी सदन का स्पीकर सांसद या विधायक की सदस्यता बहाल नहीं कर सकता, लेकिन लक्षद्वीप के सांसद मोहम्मद फैजल की सदस्यता बहाल कर स्पीकर ने गलत परंपरा शुरू की है| केरल हाईकोर्ट ने भी मोहम्मद फैजल के कन्विक्शन पर स्टे देते हुए उनके निर्वाचन क्षेत्र की दलील देते हुए कहा था कि उन्हें दो साल से ज्यादा सजा होने के कारण दुबारा चुनाव करवाना पड़ेगा| सवाल यह पैदा होता है कि दुबारा चुनाव को रोकने के लिए क्या एक अपराधी को संसद और विधानसभा में बैठने का अधिकार दे दिया जाना चाहिए|

सुनवाई के दौरान राहुल की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने मुकदमा दायर करने वाले भाजपा नेता पूर्णेश मोदी पर ही सवाल उठा दिए| सिंघवी ने कहा कि राहुल गांधी ने अपने भाषण में जिन-जिन लोगों का नाम लिया, उनमें से किसी ने केस नहीं किया| 13 करोड़ लोगों के समुदाय में सिर्फ़ पूर्णेश मोदी ही पीड़ित हुए और उन्होंने ही केस किया, जो भाजपा के नेता हैं| उनकी यह दलील आश्चर्यजनक थी कि वह क्योंकि भाजपा के नेता है, इसलिए उन्हें मुकदमा दायर करने का अधिकार नहीं था|

इसके अलावा उन्होंने कोर्ट में यह भी कहा कि वायनाड के लिए अब तक अधिसूचना जारी नहीं हुई, क्योंकि इन्हें (बीजेपी और केंद्र) मालूम है कि वो वहां से नहीं जीतेंगे| यह कोई कानूनी दलील नहीं थी, बल्कि राजनीतिक टिप्पणी थी, जिस पर सुप्रीमकोर्ट ने आपत्ति भी जाहिर की कि वह केस में राजनीति को न लाएं| सिंघवी ने निचली अदालतों के जजों पर भी टिप्पणी करने से परहेज नही किया| निचली अदालत के फैसले पर सवाल उठाते हुए सिंघवी ने कहा कि वहां के न्यायाधीश इसे गंभीर अपराध मानते हैं, जबकि यह अपराध समाज के विरुद्ध नहीं था| ना ही यह अपहरण या बलात्कार या हत्या का केस था|

सिंघवी ने अदालत में कहा कि लोकतंत्र में हमारे पास असहमति है, जिसे हम ‘शालीन भाषा’ कहते हैं| गांधी कोई कट्टर अपराधी नहीं हैं| लेकिन इस मामले में सवाल तो भाषा की शालीनता का ही था कि उन्होंने सारे मोदियों को चोर कह दिया था, अगर वह थोड़ी भी शालीनता बरतते तो हर कोर्ट ने उन्हें गलती सुधारने का अवसर दिया था, लेकिन सुप्रीमकोर्ट तक राहुल गांधी ने कहा कि उन्हें न तो अपनी टिप्पणी पर कोई अफ़सोस है, न वह माफी मांगेंगे|

‘आज नहीं तो कल सच्चाई की जीत होती ही है’, जानें सजा पर रोक के बाद क्या बोले राहुल गांधी?’आज नहीं तो कल सच्चाई की जीत होती ही है’, जानें सजा पर रोक के बाद क्या बोले राहुल गांधी?


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।

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