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पहले अपना जीवन बदला और अब दूसरों की जिंदगी सवारने में लगीं हैं प्रथम भारतीय ट्रांसजेंडर स्टूडेंट एमएक्स धनंजय चौहान

Manoj Rautela by Manoj Rautela
22/10/20
in घर संसार, नई मंजिले, मुख्य खबर
पहले अपना जीवन बदला और अब दूसरों की जिंदगी सवारने में लगीं हैं प्रथम भारतीय ट्रांसजेंडर स्टूडेंट एमएक्स धनंजय चौहान

एमएक्स धनंजय चौहान,प्रथम भारतीय ट्रांसजेंडर स्टूडेंट

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पहले अपना जीवन बदला और अब दूसरों की जिंदगी सवारने में लगीं हैं-प्रथम भारतीय ट्रांसजेंडर स्टूडेंट एमएक्स धनंजय चौहान-

पंजाब यूनिवर्सिटी की प्रथम भारतीय ट्रांसजेंडर स्टूडेंट एमएक्स धनंजय चौहान ने पहले अपना जीवन बदला और अब दूसरों की जिंदगी सवारने में लगीं हैं। ये पंजाब यूनिवर्सिटी से दो मास्टर डिग्री करने के बाद अब ट्रांसजेंडर पर शोध कर रही है। आज ट्रांसजेंडर से जुड़े मुद्दों पर उन्हें देश ही नहीं विदेशों में होने वाले सेमिनार,कॉन्फ्रेंस और अन्य बड़े आयोजनों में सम्मान के साथ बुलाया जाता है। उनके द्वारा शिक्षा के लिए किए कड़े संघर्ष को फिल्म ‘एडमिटेड’ में दिखाया गया है ।बदलाव की लड़ाई लड़ने वाली ट्रांसजेंडर वुमन धनंजय से स्वतंत्र पत्रकार श्रीकृष्ण यादव ने की बातचीत।

आपके जीवन पर फिल्म बनी और बेहद पसंद की जा रही है। इसे आप कैसे देखती हैं ?

मुझे खुशी होती है कि लोगों ने मुझे प्यार दिया और फिल्म बनी।सीखने सिखाने का प्रोसेस लाइफ में चलता रहता है, फिल्में भी हमें सिखाती हैं। लोग देखें और आने वाली पीढ़ियों को भी बताएं,यह मेरे लिए और खुशी की बात होगी।

आप लिखती हैं कि ‘राह कठिन है, बात जटिल है’ इस कांटो भरी राह में आपका सफर कैसा रहा?

कांटों को कुचलने के लिए पत्थर की जरूरत पड़ती है, मैंने अपने पैरों को पत्थर बना डाला। खुद को जानने में ही लंबा वक्त लगा। मुझे खुद को पुरुष समझने के लिए दबाव डाला गया । अंधविश्वास के चलते गर्म चिमटे से दागा गया, यूनिवर्सिटी में अकेलापन, अनैतिक कमेंट और रैंगिंग, यूनिवर्सिटी और पढाई का छूटना, टीचिंग की नौकरी छूटना, नौकरी के लिए भटकना, लंबी कहानी रही है, लेकिन मैं लड़ती रही ।15 अप्रैल 2014 को सुप्रीम कोर्ट के फैसले द्वारा ट्रांसजेंडर को थर्ड जेंडर का दर्जा दिया जाने पर चेहरा खुशी से भर आया।

आज डिप्रेशन की वजह से सुसाइड के मामले बढ़ रहे हैं । आप भी डिप्रेशन में रहीं हैं ,कैसे गुजरा वह वक्त ? –

डिप्रेशन में दो ही बातें सूझती हैं, प्रॉब्लम से लड़ो और उसे हराओ या फिर जीना नहीं आता तो चुपके से मर जाओ । मैंने भी उस परिस्थितियों में कोशिश की, लेकिन मुझे लगा कि नहीं ! मुझे जीना है,मुझे लड़ना है।उस समय प्रकृति और संगीत मेरा सहारा बनी।मैं खुद को  उत्साहित करती रही कि ये पेड़ पौधे , जानवर, पक्षियां,कुत्ते-बिल्लियां ….यह तो तुझे कुछ नहीं कहते ।इस तरह मैंने बुरे वक्त को भुलाने का प्रयास किया और खुद को उन व्यक्तियों से दूर रखी जिनसे मेरी मानसिक प्रताड़ना होती थी।

आप गीत और नृत्य कला में भी निपुण हैं। किताबें, कम्युनिटी और यह सांस्कृतिक कलाएं इसे एक साथ कैसे मैनेज कर लेतीं हैं? 

वक्त आपका  है, इसका यूज कैसे करना है यह आप पर डिपेंड करता है। गायकी तो मेरे तो मेरे खून में है। संगीत प्रकृति है,और प्रकृति मेरा साथी। मैं खुद के लिए गाती हूं। क्लासिकल में खयाल, ध्रुपद धमार गायन मुझे ज्यादा पसंद है।मैं चलते-चलते गा लेती हूं, कमरे में अकेले भी नाच लेती हूं, किताबें तो मेरा स्वास रहीं हैं । कम्युनिटी वर्क से बचा कार्य किताबों पर ही जाता है। और सब कुछ मैनेज हो जाता है।

जब आपको कनाडा के प्रधानमंत्री ने डिनर के लिए इनवाइट किया, तब आपको बेहद आश्चर्य हुआ होगा? –

आश्चर्य तो खूब हुआ। ई-मेल को दसों बार चेक की, एक-एक शब्दों को बार-बार पढ़ रही थी ,मुझे लग रहा था कि गलत तो नहीं पढ़ रही! फिर कॉल किया तब जाकर विश्वास हुआ।जब मैं कनाडा के प्रधानमंत्री से मिली तब उन्होंने हाथ मिलाकर  कहा “मुझे बहुत खुशी हुई कि आप यहां आई….” यह मेरे लिए आश्चर्य की बात थी।उन्होंने मुझे अपने देश में पढाई और सुविधाओं का ऑफर किया, लेकिन हमने इंकार कर दिया ।

कई देशों ने आपको विभिन्न कार्यक्रमों में आमंत्रित किया है,कौन से देश को ज्यादा मिस करती हैं ?

मैं नीदरलैंड्स को खूब मिस करती हूं।वहां के लोगों से जो प्यार मिला उसे भुलाया नहीं जा सकता ।वहां मैं प्रकृति के ज्यादा नजदीक रही हूं,वहां के लोग पैदल या साइकिल से ज्यादा चलते हैं और उनके उनके साथ में छाता होता है । न भीड़भाड़,न शोर, पक्षियों की चहचहाहट खूब भाती है।

स्त्री सुरक्षा को लेकर हमारी सरकारें संदेह के घेरे में हैं। ट्रांसजेंडर की सुरक्षा को लेकर आपका क्या कहना है?

भारत में जिस तरह से रेप के केसेज बढ़ रहें हैं, वाकई में स्त्रियों के लिए भय बना हुआ है। और जहां रही ट्रांसजेंडर की सुरक्षा की बात, ट्रांस की सुरक्षा न के बराबर है। हमारे सुरक्षा के बारे में कोई सोचता भी नहीं। लोग कहते हैं कि यह तो खुद आक्रामक होते हैं। पुलिस वाले हम लोगों का जल्दी केस रजिस्टर नहीं  करते । सरकार को चाहिए की ट्रांस सुरक्षा पर ध्यान दे!

शेल्टर होम कितना आवश्यक है ट्रांसजेंडर के लिए? 

ट्रांस के लिए शेल्टर होम बहुत आवश्यक है,क्योंकि जब ट्रांसजेंडर को घर से निकाला जाता है तब उन्हे कहीं पनाह नहीं मिलती। अगर कहीं कुनबे वाले पकड़ लेते हैं ,उसे भीख भी मांगने के लिए मजबूर होना पड़ता है, कहीं-कहीं सेक्स वर्क  के लिए भी दबाव डाला जाता है।

कोरोना के चलते प्राइड इवेंट कैसा रहा? 

लॉकडाउन के चलते प्राइड इवेंट रद्द करना पड़ा। हालांकि हम लोगों ने ऑनलाइन कार्यक्रम किया । गाना-बजाना ,नृत्य, वार्तालाप आदि उसी पर हुआ।

25 किन्नरों का समूह ‘फ्रेंडशिप पीक’ की चढ़ाई के लिए निकला है, इसका उद्देश्य क्या है? 

इसका उद्देश्य दुनिया को दिखाना है कि ट्रांसजेंडर भी किसी भी मामले में किसी से कम नहीं है।

आपका एनजीओ ‘सक्षम’ इन दिनों कौन सा सा विशेष कार्य कर रहा है? 

इन दिनों हमारा फोकस लाइवलीहुड पर है । जिस समय पूरा देश बेरोजगारी से जूझ रहा हो उस समय रोजगार पर ध्यान देना आवश्यक है। इस पर सक्षम छोटी छोटी मदद करता है, जैसे कि बेरोजगार ट्रांस को कोई छोटा धंधा करवा देना, किसी को दुकान के लिए सहयोग देना, ब्यूटी पार्लर खोलने के लिए सहयोग आदि……।

इस बदलाव की लड़ाई में आपको ऊर्जा कहां से मिली? 

ऊर्जा तो खुद से मिलती है। ज्वालामुखी जब फटती है  तब उसमें बहुत सी चीजें उबल रही होती हैं…टीचर्स ने मुझे खूब हौसला दिया,एक टीचर ने कहा “धनंजय! ख़ाक भी बनाना तो सोने की बनना”….इसी तरह पब्लिक का प्यार मिला और हौसला बढ़ता गया।

आने वाले समय में ट्रांसजेंडर को कैसे देख रही है? 

ट्रांसजेंडर हर क्षेत्र में उभर कर सामने आ रहे हैं ,आने वाले समय में यह भेदभाव बहुत कम होगा…।हमारा देश पुरुष प्रधान है, इसलिए ट्रांस पुरुष के एक्सेप्टेंस ज्यादा हैं।ट्रांस महिलाओं की स्थिति दूसरे पायदान पर रहेगी जैसे महिलाओं के साथ होता आया है । हालांकि ट्रांसजेंडर की उड़ान अन्य जेंडर के मुकाबले के मुकाबले कम नहीं होगी ।

पाठकों से आपको क्या कहना है? 

पाठकों से सिर्फ यही कहना है कि हमें कोई स्पेशल राइट नहीं चाहिए हमें समाज में इंसान की तरह एक्सेप्ट किया जाए।

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