नई दिल्ली। राजपरिवार से जुड़े होने के कारण टिहरी लोकसभा क्षेत्र का अपना इतिहास है, लेकिन यह सीट इसलिए भी ऐतिहासिक है कि आजादी के बाद से अब तक इस सीट के अस्तित्व को 72 साल हो चुके हैं। इन 72 वर्षों में टिहरी ने गोमुख से निकलती गंगा और यमुनोत्री से बहती यमुना को अविरल बहते और बड़े-छोटे बांधों में कैद होते देखा है।
इस लोकसभा सीट के लोग विकास के नाम पर एक सभ्यता को जलमग्न करने वाले विश्व के आठवें सबसे बड़े बांध के साक्षी रहे हैं। सदानीरा भागीरथी और भिलंगना की इस टिहरी लोकसभा के कंठ फिर भी सूखे हैं। यह प्यास है उस विकास की, जिनके लिए अब तक हुए 18 लोकसभा चुनावों में उतरे प्रत्याशियों ने न जाने कितने लोक लुभावने वादे किए थे। दुर्भाग्य से विकास की यह प्यास पूरी तरह से नहीं मिट पाई है।
सड़क कनेक्टिविटी 21वीं सदी में भी एक सपना
इस सीट का प्रतिनिधित्व करने वाले बेशक विकास की नई इबारत लिखने का दावा करें, लेकिन जनता के नजरिये से देखें तो टिहरी लोस क्षेत्र की तरक्की के लिए बहुत कुछ होना अभी बाकी है। खासतौर पर उन ग्रामीण और पर्वतीय क्षेत्रों में जहां सड़क कनेक्टिविटी 21वीं सदी में भी एक सपना है। टिहरी बांध विस्थापित आज भी पुनर्वास और आवंटित भूमि पर मालिकाना हक के लिए आवाज उठा रहे हैं।
टिहरी झील को पर्यटन डेस्टिनेशन के रूप में विकसित होने का इंतजार है। ऑलवेदर रोड से जुड़ने वाले संपर्क मार्गों की स्थिति में सुधार होना है। कृषि और बागवानी के लिए यह क्षेत्र प्रसिद्ध है। फल-सब्जियों लंबे समय तक सुरक्षित रखने के लिए किसानों को कोल्ड स्टोर की दरकार है। देहरादून से लेकर पर्यटन स्थल मसूरी व धनोल्टी तक पार्किंग एक गंभीर समस्या बनी हुई है।
टिहरी झील को पर्यटन डेस्टिनेशन बनाने का इंतजार
टिहरी बांध की झील 40 किमी से अधिक क्षेत्रफल में फैली है। झील में जलक्रीड़ा गतिविधियों तो शुरू हुईं, लेकिन 1200 करोड़ की लागत टिहरी झील को पर्यटन डेस्टिनेशन के रूप में विकसित करने का इंतजार है। टिहरी के साथ ही उत्तरकाशी जिले में कई ऐसे स्थान हैं, जो पर्यटन विकास के लिहाज से अनछुए हैं। प्रसिद्ध यमुनोत्री धाम जाने वाले श्रद्धालुओं के लिए खरसाली से यमुनोत्री के बीच कई साल बीत जाने के बाद भी रोपवे नहीं बन पाया। साहसिक पर्यटन के लिए खतलिंग ट्रैक आज तक विकसित नहीं हुआ। बदरी-केदार की तरह गंगोत्री और यमुनोत्री धाम में श्रद्धालुओं के लिए सुविधाओं के विकास का इंतजार हो रहा है।
सर्दी हो या गर्मी, बना रहता है पेयजल का संकट
टिहरी संसदीय क्षेत्र में गंगा, यमुना, भागीरथी, भिलंगना नदियां बहती हैं, लेकिन सदानीरा ये नदियां लाखों टिहरी वासियों की प्यास नहीं बुझा पातीं। सैकड़ों गांव ऐसे हैं, जहां गर्मी हो या सर्दी, पेयजल का संकट बना रहता है। हिंडोलाखाल, बड़ियारगढ़, कीर्तिनगर, धनोल्टी, चौरास क्षेत्र के समेत कई दूरस्थ गांवों में आज भी पेयजल संकट का समाधान नहीं हो पाया है। हर घर नल की योजना तो बन रही है, लेकिन घरों में पानी नहीं पहुंच पाया है।
नहीं है कोई बड़ा मेडिकल संस्थान
टिहरी लोस में उत्तरकाशी जिला सीमांत और दुर्गम माना जाता है। इस जिले के दूरदराज के गांवों से अकसर चिकित्सा के अभाव में गर्भवती महिलाओं के दम तोड़ देने की खबरें आती हैं। अस्पतालों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की भारी कमी है। टिहरी क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाएं एक बड़ा मुद्दा है। कई सरकारें सत्ता में रहीं, लेकिन टिहरी क्षेत्र के पर्वतीय क्षेत्रों में बेहतर चिकित्सा सुविधा देने के लिए कोई बड़ा मेडिकल संस्थान नहीं खुल पाया। केंद्र सरकार की हर जिले में एक मेडिकल कॉलेज की योजना है। अभी तक टिहरी और उत्तरकाशी जिले इस योजना में शामिल नहीं हो पाए। सरकारी अस्पतालों में विशेषज्ञ डॉक्टरों और टेक्नीशियनों की कमी है।
कोल्ड स्टोर के अभाव में बर्बाद हो रही उपज
टिहरी संसदीय क्षेत्र फल व सब्जी उत्पादन में प्रदेश का अग्रणीय है। यहां कई इलाकों मे सेब, नाशपाती, आड़ू के अलावा आलू, मटर, टमाटर, अदरक, हल्दी, लहसुन की खेती होती है। टिहरी जिले में सालाना 21476 मीट्रिक टन फल, 53213 मीट्रिक टन सब्जी, 15301 मीट्रिक टन मसालों का उत्पादन होता है। जबकि उत्तरकाशी जिले में 38837 मीट्रिक टन फल और 56551 मीट्रिक सब्जी का उत्पादन होता है। कई बार प्राकृतिक आपदा के दौरान सड़क मार्ग बंद होने की स्थिति में किसानों के उत्पाद खराब हो जाते हैं। फल व सब्जियों को लंबे समय से सुरक्षित रखने के लिए कोल्ड स्टोर का अभाव है।
शहरी क्षेत्रों में हल नहीं हुई पार्किंग की समस्या
टिहरी संसदीय क्षेत्र में देहरादून का एक बड़ा हिस्सा आता है। इसके अलावा मसूरी व धनोल्टी इसी क्षेत्र में आते हैं। यहां पर हर साल पर्यटकों की संख्या बढ़ रही है। पर्यटन सीजन के दौरान इन पर्यटन स्थलों पर ट्रैफिक का जर्बदस्त दबाव रहता है, लेकिन पार्किंग की एक गंभीर समस्या है। अब तक इसका समाधान नहीं हो पाया है।