मुंबई : सुप्रीम कोर्ट के फैसले से मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की सरकार बच जरूर गई हो, मगर उनके सामने चुनौतियां किसी तरह से कम नहीं हुई हैं। मंत्री बनने को उत्सुक समर्थक और निर्दलीय विधायकों की महत्वाकांक्षा से उन्हें निपटना है। मुख्यमंत्री पद संभालने के लिए फिलहाल समय तो मिल गया है, मगर सुप्रीम कोर्ट की बर्खास्तगी की तलवार अभी सिर से हटी नहीं है। सत्ता की चौपड़ पर दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री का आशीर्वाद पाकर शिंदे खुलकर खेल रहे थे, अब शायद ऐसा न हो पाए। महाराष्ट्र विधानसभा के स्पीकर राहुल नार्वेकर के माध्यम से उनकी नकेल पूरी तरह से उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के हाथ आ गई है।
सुप्रीम तलवार कायम है
शिंदे सरकार फिलहाल तो बच गई है, मगर उन पर और 15 विधायकों पर विधानसभा सदस्यता खोने का खतरा अभी बना हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट संकेत दिया है कि उद्धव अगर इस्तीफा न देते तो सरकार ही पलट दी जाती। देश की सबसे बड़ी अदालत ने यों तो उन्हें बक्श दिया है और बीजेपी के स्पीकर नार्वेकर के हाथ फैसला देते हुए यह साफ कर दिया है बर्खास्तगी से बचने के लिए पार्टी टूटने का तर्क कतई स्वीकार्य नहीं होगा। संविधान की 10वें शेड्यूल में अब यह प्रावधान ही नहीं बचा है। संविधान विशेषज्ञों का मानना है कि, स्पीकर के सामने शिंदे समेत 16 विधायकों को लेकर जो सुनवाई चलेगी, उसमें शिंदे का पूरी तरह बचकर निकल पाना आसान नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट ने स्पीकर को ‘टाइम-फ्रेम’ में फैसला देने को कहा है, इसलिए कई महीने इसका लटकाना संभव नहीं दिखता। अगर पहले ही तरह स्पीकर नार्वेकर ने दोबारा फैसला शिंदे के पक्ष में दे भी दिया, तो सुप्रीम कोर्ट में सात न्यायाधीशों की बैंच के सामने इसी मामले की समानांतर सुनवाई चल रही होगी। उसी में चुनौती दी जा सकेगी। मतलब शिंदे के ऊपर से कोर्ट कचहरी का फेरा जल्दी हटेगा, ऐसे संकेत नहीं हैं।
मंत्री बनाने का दबाव
बीते बजट सत्र में सदन में मंत्री ने होने को लेकर विपक्ष ने सत्तापक्ष की काफी किरकिरी की थी। 18 जुलाई से फिर वर्षाकालीन सत्र शुरू हो रहा है। मंत्रियों की जरूरत तो बहुत है, मगर मंत्री किसे बनाया जाए, कम से कम शिंदे के लिए यह काम बेहद पेचीदा बना हुआ है। बीजेपी की लिस्ट दिल्ली के आलाकमान से आएगी, तो फडणवीस को अपने हिस्से के 114 विधायकों को कोई जवाब नहीं देने होंगे। शिंदे के साथ शिवसेना तोड़कर आए 40 विधायकों और बाहर से उन्हें समर्थन दे रहे 10 निर्दलीयों को संतुष्ट करना उनके लिए आसान काम नहीं होगा। पिछली उद्धव ठाकरे सरकार में मंत्री रहे बच्चू कडू मंत्री पद खोने की खीज सार्वजनिक तौर पर व्यक्त कर चुके हैं। एक और विधायक संजय शिरसाट ने सुप्रीम कोर्ट का फैसला आते ही खुद यह घोषणा कर डाली कि अब मंत्रिमंडल विस्तार होगा।
शिरसाट मुख्यमंत्री की परछाई की तरह उनके साथ बने हुए थे। विधायकों की एक फौज रोजाना उनके मंत्रालय के कार्यालय को वैसे भी घेरे रहती है। विधायकों के अलावा, कई नेता सरकारी बोर्डों में ओहदे पाने की आस में साथ बने हुए हैं। ‘तुम्ही तर आमचेच’ (आप तो हमारे ही हैं), इस शाब्दिक आश्वासन से आगे बढ़कर मुख्यमंत्री कुछ ठोस देंगे, यह आस बनाए और बचाए रखना शिंदे गुट की मजबूरी बन गई है।
फडणवीस की पकड़ बढ़ी
महाराष्ट्र सरकार के लगभग साढ़े 11 महीने के शुरुआती कार्यकाल में इच्छा के विरुद्ध उपमुख्यमंत्री बनाए गए फडणवीस खुद मुख्यमंत्री को आगे करते नजर आए। शिंदे और फडणवीस के काम करने के तौर तरीके में जमीन-आसमान का फर्क है। शिंदे के निर्णय अक्सर भावना के प्रवाह में तात्कालिक होते हैं, वहीं फडणवीस की स्टाइल सोच-समझकर आगे-पीछे की रणनीति आंकने के बाद चीजें अमल में लाने की होती है। सूत्रों के अनुसार, हाल के दिनों में सरकार चलाने को लेकर दोनों के बीच तनाव के बिंदू उभरे हैं। शिंदे की सीधे केंद्रीय मंत्री शाह तक पहुंच होने की वजह से उनकी चलती रही है। अब उनकी गेंद स्पीकर नार्वेकर के हाथ हैं, जो फडणवीस के बेहद करीबी माने जाते हैं। फडणवीस वैसे भी सरकार के संकटमोचक रहे हैं, पर अब तो शिंदे जब तक स्पीकर के कोर्ट की सुनवाई में उलझे रहेंगे, उनका हाथ पहले से सरस होगा, इसमें किसी को शक नहीं होना चाहिए।