नई दिल्ली। उत्तराखंड में लिपूलेख दर्रें से इस बार भी भारत-चीन के बीच कारोबार शुरू नहीं हो पाएगा। इस अंतरराष्ट्रीय कारोबार से कई स्थानीय कारोबारियों की आजीविका जुड़ी हुई है। चौथे साल भी कारोबार शुरू नहीं होने से व्यापारी निराश हैं।
समुद्र तल से 17 हजार फीट की ऊंचाई पर लिपूलेख दर्रें से भारत-चीन के बीच कारोबार प्राचीन समय से होता आ रहा है। वस्तु विनिमय आधारित इस कारोबार में समय के साथ मुद्रा का चलन प्रारंभ हुआ। इस व्यापार ने भारत और चीन दोनों देशों के सीमा के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को जरूरत का सामान देने के साथ ही उनकी आजीविका विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
25 अक्तूबर 2019 में इस अंतराष्ट्रीय कारोबार में शामिल भारतीय दल के वापस लौटने के बाद यह कारोबार अब तक शुरू नहीं हो सका है। 2020 में चीन में कोरोना के कहर के बाद यह व्यापार अब तक शुरू करने की कोशिश भी नहीं हुई है।
यह स्थिति तब है जब भारत और चीन के बीच अन्य मार्गों से अरबों का कारोबार हो रहा है। सीमांत के कारोबारियों ने कहा कि इस बार भी अंतरराष्ट्रीय कारोबार शुरू करने को केन्द्र सरकार ने कोई प्रयास नहीं किए।
जनवरी से ही इस कारोबार की अन्य सालों में तैयारी शुरू हो जाती थी। इस बार अब तक कोई तैयारी नहीं है। वैसे ही पिछले चार साल से कारोबार नहीं होने से व्यापारियों के सामने आजीविका का गंभीर संकट है। उच्च हिमालयी गांवों के लोगों के लिए यह कारोबार साल भर की आजीविका का प्रमुख स्रोत रहा है।
कारोबारियों पर दोहरी मार
पिथौरागढ़। अंतरराष्ट्रीय व्यापार में जाने वाले भारतीय व्यापारी तकलाकोट में स्थाई तौर पर दुकान और गोदाम किराए पर लेते थे। माह जून से अक्तूबर तक चलने वाले व्यापार की समाप्ति के बाद कारोबारी 2019 में अपना बचा सामान गोदामों में रखकर वापस आए।
इसके बाद उन्हें वहां अब तक जाने का मौका नहीं मिला है। अब दुकानदारों को वहां गोदामों के किराए की मार के साथ वहां रखे सामान की उपयोग अवधि समाप्त होने से भी नुकसान झेलना पड़ रहा है।
निर्यात
गुड़, एल्यूमीनियम के बर्तन, कॉफी, सुर्ती, ऊन, मिश्री (शुगर कैंडी) आदि।
आयात
तिब्बती चाय, छिरबी, याक की पूंछ, चीन निर्मित रजाइयां, इलेक्ट्रॉनिक सामान,जैकेट, कंबल, जूते आदि।