गौरव अवस्थी
नई दिल्ली: युग प्रवर्तक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के समकालीन लेखक/पत्रकार/विचारक/कुरीति-कुनीति संहारक पंडित माधवराव सप्रे का नाम जगप्रसिद्ध है। पद्मश्री विजयदत्त श्रीधर ने उनके नाम पर मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में समाचार पत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान स्थापित किया है। देश और दुनिया में महत्वपूर्ण स्थान बना चुके अपने इस संस्थान की परामर्श समिति में श्रीधरजी ने इस अकिंचन को भी शामिल होने का सुअवसर प्रदान किया है।
इस संबंध में कल ही प्राप्त एक पत्र में सहमति मांगी गई है। हम सहमति क्यों दें? हम तो आभार प्रकट करेंगे, वह भी हार्दिक। बताइए भला! जिनसे खुद हमें मार्गदर्शन मिलता रहता है, उन्हें हम परामर्श देंगे? आप सहजता के साथ समझ तो गए ही होंगे। ऐसी महत्वपूर्ण संस्था से जुड़ने के घर बैठे आए सुयोग से भला कौन असहमत हो सकता है।
आइए, सप्रे संग्रहालय को जानें…
सप्रे संग्रहालय की स्थापना के पांच सूत्र हैं-
1- शोध संदर्भ के लिए महत्वपूर्ण राष्ट्रीय बौद्धिक धरोहरों का संकलन और संरक्षण।
2- शोधकर्ताओं पत्रकारों एवं पत्रकारिता के विद्यार्थियों तथा रचना कार्यों के लिए संदर्भ सेवाएं।
3- पत्रकारिता और जनसंचार में शिक्षक प्रशिक्षण की श्रृंखला विज्ञान लेखन को बढ़ावा एवं पत्रकारिता अभिषेक प्रमाणिक साहित्य का प्रकाशन।
4- पत्रकारिता और जनसंचार पर बहुआयामी शोध गतिविधियां
5- लेखक एवं पूर्वज पत्रकारों की स्मृति रक्षा के साथ बुजुर्ग और युवा पीढ़ी के बीच संवाद एवं अनुभवों की साझेदारी
सप्रे संग्रहालय की वर्ष-पर्यंत चलने वाली गतिविधियों में इन उद्देश्यों की झलक आप देख सकते हैं।
संग्रहालय में क्या है
- लगभग 30000 शीर्षक समाचार पत्र पत्रिकाएं
- 150000 से अधिक संदर्भ ग्रंथ और पुस्तकें
- 1000 हस्तलिखित पांडुलिपियां
- 2000 पोथियां
- 1934 अन्य दस्तावेजी प्रकाशन
- लब्ध प्रतिष्ठ साहित्यकारों, पत्रकारों और शिक्षाविदों के
- 10000 पत्र
- 5000 संदर्भ फाइलें
- 200 पुराने रेडियो, ग्रामोफोन, कैमरे, टाइपराइटर आदि
- बर्रू की कलम से लेकर आधुनिक पेनों का संकलन
सप्रे संग्रहालय मध्यप्रदेश के चार विश्वविद्यालयों के शोध केंद्र के रूप में मान्यता प्राप्त है। 40 वर्षों के इस सफर में संग्रहालय की संदर्भ संपदा से 1238 शोधार्थियों का शोध संपन्न हो चुका है। इन शोधार्थियों को पीएचडी और डी.लिट् की उपाधियां भी प्राप्त हो चुकी हैं।
ऐसे बना अपना संपर्क
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी स्मृति संरक्षण अभियान को अपना सदेव सहयोग और संरक्षण देने वाले देश के प्रतिष्ठित पत्रकार और श्री अरविंद कुमार सिंह (पूर्व एसोसिएट एडिटर राज्यसभा टेलीविजन पूर्व संपादक हरिभूमि) जब-तब सप्रे संग्रहालय और विजयदत्त श्रीधर जी की चर्चा करते रहते थे। बेटे शिखर की पढ़ाई के सिलसिले में 6 वर्ष पहले इंदौर जाने का कार्यक्रम बना। ट्रेन भोपाल तक ही थी। इंदौर की बस पकड़ने के पहले श्रीधर जी से मिलने की इच्छा बलवती हुई और ऑटो पकड़ कर चल पड़े सप्रे संग्रहालय की ओर। वहीं अपने कक्ष में बैठे आधुनिक कर्मयोगी से मुलाकात हुई। संक्षिप्त बातचीत के बीच ‘आचार्य पथ’ स्मारिका और आंचलिक पत्रकार एवं कर्मवीर पत्रिका का आदान-प्रदान हुआ और मीटिंग ओवर। इसके बाद बात-मुलाकात का सिलसिला शुरू रहा। वह रायबरेली आए और हम भोपाल गए।
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी स्मृति संरक्षण अभियान के रजत पर्व पर ही जब हम फूले नहीं समाए। अपनी पीठ ठोंकने से खुद को रोक नहीं पाए, तब सप्रे संग्रहालय की स्थापना का 40वां वर्ष हमें नया मार्ग दिखाता है। नई ऊर्जा देता है और पूरी विनम्रता लेकिन जोश के साथ अपने रास्ते पर सतत चलते रहने की प्रेरणा भी! यह भी कि कैसे अपने लक्ष्य का संधान करना है? 70 पार श्रीधर जी के खाते में अपार लोकप्रियता दर्ज है लेकिन उनमें अपने कार्य के प्रति जोश, जुनूं, निष्ठा और समर्पण आज भी जवान है। यही उनकी सफलता और सार्थकता का कारण भी। श्रीधर जी हम जैसे सामान्य पत्रकारों के पुरखा और दिग्दर्शक हैं।
ऐसे पुरखे को हमारा सागर प्रणाम