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इसलिए है हिंदू धर्म में मकर संक्रांति जितना खास कर्क संक्रांति, जानिए महत्व, पूजा विधि और उपाय

Jitendra Kumar by Jitendra Kumar
08/07/22
in कला संस्कृति, धर्म दर्शन
इसलिए है हिंदू धर्म में मकर संक्रांति जितना खास कर्क संक्रांति, जानिए महत्व, पूजा विधि और उपाय
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कर्क संक्रांति को उत्तरायण काल का अंत माना जाता है क्योंकि सूर्य 6 महीने के लिए उत्तरायण और 6 महीने के लिए दक्षिणायन में रहते हैं। कर्क संक्रांति से दक्षिणायन की शुरुआत होती है, जो मकर संक्रांति तक चलती है। दक्षिणायन के समय रातें लंबी होना शुरू हो जाती हैं और दिन छोटे होने लग जाते हैं।

कर्क संक्रांति 16 जुलाई 2022
कर्क संक्रांति का पर्व 16 जुलाई दिन शनिवार को है। सूर्य जब किसी राशि में प्रवेश करते हैं, तब उस तिथि को संक्रांति के नाम से जाना जाता है। 16 जुलाई को सूर्य मिथुन राशि से निकलकर कर्क राशि में गोचर करने वाले हैं इसलिए इस तिथि को कर्क संक्रांति कहा जा रहा है। सूर्य सभी 12 राशियों में प्रवेश करते हैं, इस तरह साल में कुल 12 संक्रांति होती हैं। इनमें मकर और कर्क संक्रांति का विशेष महत्व है। कर्क संक्रांति पर पूजा-पाठ, जप-तप और दान आदि करना विशेष फलदायी माना जाता है। साथ ही इस दिन की गई पूजा-पाठ से सभी दोष दूर होते हैं और ग्रह-नक्षत्रों का शुभ फल प्राप्त होता है।

उत्तरायण से दक्षिणायन की ओर
कर्क संक्रांति को उत्तरायण काल का अंत माना जाता है क्योंकि सूर्य 6 महीने के लिए उत्तरायण और 6 महीने के लिए दक्षिणायन में रहते हैं। कर्क संक्रांति से दक्षिणायन की शुरुआत होती है, जो मकर संक्रांति तक चलती है। दक्षिणायन के समय रातें लंबी होना शुरू हो जाती हैं और दिन छोटे होने लग जाते हैं। इस दौरान वर्षा, शरद, हेमंत ये तीन ऋतुएं आती हैं। दक्षिणायन में सूर्य दक्षिण दिशा की ओर झुकाव के साथ गति करता है। सूर्य जब मकर से मिथुन राशि में भ्रमण करते हैं, तब उस अंतराल को उत्तरायण कहते हैं और जब सूर्य कर्क से धनु राशि तक भ्रमण करते हैं, तब उसे दक्षिणायन कहते हैं।

कर्क संक्रांति का महत्व
कर्क संक्रांति से मानसून की शुरुआत हो जाती है और चारों तरफ हरियाली बनी रहती है। दक्षिणायन के चार महीनों में कोई भी मांगलिक कार्यक्रम नहीं किया जाता और इस दौरान भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। मान्यता है कि कर्क संक्रांति के दिन सूर्यदेव की पूजा करने से सभी रोग व दोष दूर होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि का वास होता है। कर्क संक्रांति पर आदित्य हृदय स्तोत्र, सूर्य चालीसा और सूर्य मंत्रों का जप करना चाहिए। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान व दान करने से जीवन में कभी किसी चीज की कमी नहीं रहती। साथ ही पितरों के नाम का दान करने से पितर आशीर्वाद देते हैं, जिससे परिवार में प्रेम बना रहता है।

कर्क संक्रांति शुभ मुहूर्त
कर्क संक्रांति 16 जुलाई दिन शनिवार
कर्क संक्रांति पुण्य काल – सुबह 05 बजकर 34 मिनट से शाम 05 बजकर 09 मिनट तक
संक्रांति महापुण्य काल – दोपहर 02 बजकर 51 मिनट से शाम 05 बजकर 09 मिनट तक
सूर्य का कर्क राशि में गोचर का समय – रात 10 बजकर 50 मिनट पर

कर्क संक्रांति पूजा विधि
कर्क संक्रांति के दिन पवित्र नदियों में स्नान किया जाता है, अगर संभव न हो तो घर के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करना चाहिए। बहुत से व्यक्ति इस दिन उपवास करते हैं इसलिए ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान व ध्यान करने के बाद व्रत का संकल्प लें। इसके बाद सूर्योदय के समय पूर्व दिशा की ओर मुख करके और शाम के समय पश्चिम की ओर मुख करके तांबे के जल से भरे लोटे में तिल और गुड़हल का फूल मिलाकर सूर्यदेव को अर्पित करें। इसके बाद आप आदित्य हृदय स्तोत्र, सूर्य चालीसा और सूर्य मंत्रों का जप करें और फिर सामर्थ्य के अनुसार दान करें। इस दिन सूर्य देव के साथ भगवान शिव और भगवान विष्णु की पूजा का भी विशेष महत्व है। अगर आप व्रत रखते हैं तो ध्यान रखें कि बिना नमक के ही भोजन करें।

कर्क संक्रांति के दिन करें ये उपाय

  • कर्क संक्रांति के दिन पीपल या बरगद के पेड़ लगाना शुभ माना जाता है और इस दिन आदित्य हृदय स्तोत्र भी करना चाहिए।
    संक्रांति पर गुड़, तांबा, गेहूं, लाल फूल आदि का दान करना चाहिए।
  • कुंडली में सूर्य की स्थिति मजबूत नहीं है तो संक्रांति के दिन जल से भरे तांबे के लोटे में अक्षत, लाल फूल, लाल चंदन मिलाकर सूर्य देव को अर्पित करें।
  • कर्क संक्रांति के दिन स्नान आदि करने के बाद लाल कपड़े पहनने चाहिए और ‘ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नम:’ मंत्र का जप की 3, 5 या 12 माला करनी चाहिए।

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